बारिश में भोजन हिंदी में वर्षा ऋतु में सेहत का ध्यान कैसे रखें. रेनी सीजन में कैसी हो लाइफस्टाइल आयुर्वेद और जीवन चर्या बारिश में रखें इन बातों का ख्याल..
ऋतु चर्या और दिनचर्या पर ही हमारा स्वास्थ्य आधारित है, क्योंकि ऋतु के अनुसार आहार-विहार का सेवन करने से ही हम तन-मन से स्वस्थ रह सकते हैं.
लेकिन ऋतु के विपरीत आहार-विहार करने पर शरीर रोगों से घिर जाता है, क्योंकि ऋतु के विपरीत आचरण करने पर शारीरिक दोष कुपित हो जाते हैं जिससे शरीर की कार्यप्रणाली में बाधा पहुंचती है और शरीर विषम स्थिति में पहुंच जाता है.
इसी विषमता (दोषों की विषमता) के कारण रोग उत्पन्न होते हैं. अतः ऋतुचर्या की अवहेलना के कारण रोग स्वयं खिंचे चले आते हैं. इसलिए हमारा आहार-विहार ऋतु के अनुसार ही होना चाहिए.
गर्मी के मौसम के बाद वर्षा का आगमन सुहाना लगता है. मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षी भी गर्मी के प्रकोप से राहत की सांस लेते हैं. पेड़ हरे-भरे हो जाते हैं. चारों तरफ खुशहाली का वातावरण छा जाता है. किसान मजदूर खुश होकर खेती के काम में लग जाते हैं.
लेकिन दूसरी तरफ यही वर्षा ऋतु अनेक बीमारियों का कारण भी है, क्योंकि इस मौसम की आर्द्रता और तापमान जीवाणुओं और कीटाणुओं को पनपने में सहायक होते हैं.
यही कारण है कि बरसात में खांसी, जुकाम, आंख आना आदि बीमारियां अधिक होती हैं. यदि इस ऋतु में खान-पान पर ध्यान नहीं दिया गया तो स्वास्थ्य बिगड़ते देर नहीं लगती, क्योंकि वर्षा ऋतु में पानी गंदा होने के कारण कीटाणु अधिक होते हैं जो तरह-तरह के रोगों के उत्पादक होते हैं.
गंदे पानी के कारण खाद्य पदार्थों में अम्लता बढ़ जाती है और शरीर का पित्त दूषित हो जाता है. भारी पानी और गंदगी के कारण कफ भी दूषित हो जाता है. इस प्रकार बरसात में वात, पित्त, कफ तीनों के दूषित होने के कारण रस-रक्तादि धातुओं में विकार उत्पन्न होने लगते हैं.
इस ऋतु में धान्यादि (गेहूं, चावल, चना आदि) नम और अल्पवीर्य वाले होते हैं. ऊपर आकाश भी बादलों से आच्छादित रहता है और पृथ्वी भी जल से गीली होती है, इसके साथ-साथ हवा में भी नमी होती है.
परिणामस्वरूप जठराग्नि की मंदता के कारण खाया हुआ आहार ठीक से पचता नहीं है जिससे वायु जनित बीमारियां, विशेषकर पेटों की बीमारियां घेरे रहती हैं
'वर्षाः शीता विदाहिन्यो वह्निमान्द्या निलप्रदा।'
अर्थात् वर्षा ऋतु शीत विदाहकारक, मंदाग्निकारक और वायुर्द्धक होती है. अतः इस ऋतु में खानपान में अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए.
वर्षा में आहार-नियम:-
वर्षा ऋतु में मंदाग्नि के कारण हल्के, सादे आहार पदार्थों का सेवन करना उत्तम होता है. यदि संभव हो तो वर्षा ऋतु के चार महीने एक ही बार भोजन करना चाहिए. यदि सुबह का भोजन न पचा हो तो दुबारा न खाएं, इसी प्रकार यदि रात का किया भोजन गलीभांति न पचा हो और प्रात: काल भोजन या नाश्ता किया जाये तो इससे मंदाग्नि और अधिक मंद हो जाती है, अत: वर्षा, ऋतु में पहले किया हुआ भोजन भलीभाती पचने पर ही दोबारा भोजन करें, क्योंकि वर्षा ऋतु में वायु प्रबल और कुपित होता है, अतः इसके शमन के लिए मधुर रसौ वाले पदार्थों का विशेष रूप से सेवन करना चाहिए.
जठराग्नि की रक्षा बरसात में हल्के व पुराने अन्न से होती है, इसलिए इस ऋतु में पुराना जौ, गेहूं, साठी चावल का सेवन विशेष लाभप्रद है. साठी चावल की यह विशेषता है कि इसमें स्निग्ध तत्व बहुत कम होते हैं, अतः वर्षा में मंदाग्नि के कारण भी यह आहार आसानी से पच जाता है. लेकिन मिल में पॉलिश किए हुए चावलों का सेवन यथासंभव कम से कम करें.
हाथ से कुटे चावल उनकी अपेक्षा विशेष उपयोगी होते हैं. इस ऋतु में चावल का चिवड़ा वायुनाशक होने के कारण सेवनीय है, दालों में छिलके वाली दाल विशेषकर मूंग की दाल का सेवन उत्तम होता है.
वर्षा ऋतु में भोजन बनाते समय आहार में थोड़ी-सी मधु मिला देना चाहिए. क्योंकि यह मंदाग्नि को दूर कर भूख बढ़ाता है. इसके अतिरिक्त अजीर्ण, थकान, वायुविकारों से भी बचाव होता है. इस ऋतु में भोजन के बाद छाछ का सेवन अत्यंत हितकारी होता है.
यह जठराग्नि को प्रदीप्त कर पाचन तंत्र की कार्य क्षमता को बढ़ाता है. वैज्ञानिकों का भी मानना है कि छाछ का सेवन, विशेषकर वर्षा ऋतु में, शरीर की रोगप्रतिकारक क्षमता को बढ़ाता है. लेकिन इस ऋतु में दही खाना हानिकारक है, विशेषकर सावन-भादो के महीने में.
इस ऋतु में तेल व मसालों का सेवन कम-से-कम करें. लेकिन तेलों में तिल के तेल का सेवन गुणकारी होता है. यह वायु के रोगों को दूर करता है. अत: वर्षा ऋतु में तिल के तेल का प्रयोग प्रतिदिन करना चाहिए.
कहा गया है कि वर्षा ऋतु में प्रतिदिन खाली पेट चार तोला (लगभग 50 ग्राम) तिल चबाकर ठंडा पानी पीने से वायु का शमन होता है तथा जठराग्नि भी प्रबल होती है.
अनेक रोगों की जननी वर्षा ऋतु है, अतः इससे बचने के लिए प्रतिदिन भोजन के साथ अदरक, लहसुन, हरी मिर्च व नींबू का सेवन करना चाहिए. नींबू तो वर्षा जन्य रोगों में रामबाण औषधि है.
इस ऋतु में एक गिलास पानी में एक पके नींबू का रस निचोड़ कर उसमें थोड़ी शक्कर मिलाकर प्रतिदिन दोपहर के भोजन से आधा घंटा पहले पिएं. इससे वर्षा ऋतु के उत्तरार्द्ध में होने वाले अम्लपित्त से छुटकारा मिलता है, लेकिन भूलकर भी इसे भोजन के बाद न पीएं, क्योंकि इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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