Published By:धर्म पुराण डेस्क

ऋषि-मुनियों ने मंत्र के बल से ही ऋद्धियाँ- सिद्धियां प्राप्त की 

मनु महाराज कहते थे कि-

"जप मात्र से ही ब्राह्मण सिद्धि को पा लेता है और बड़े-में- बड़ी सिद्धि है हृदय की शुद्धि।"

भगवान बुद्ध कहा करते थे- "मंत्र जप असीम मानवता के साथ तुम्हारे हृदय को एकाकार कर देता है।" मंत्र जप से शांति तो मिलती ही है, वह भक्ति व मुक्ति का भी दाता है।

मंत्र जप करने से मनुष्य के अनेक पाप-ताप भस्म होने लगते हैं। उसका हृदय शुद्ध होने लगता है तथा ऐसा करते-करते एक दिन उसके हृदय में हृदयेश्वर का प्राकट्य भी हो जाता है।

मंत्रजापक को व्यक्तिगत जीवन में सफलता तथा सामाजिक जीवन में सम्मान मिलता है। मंत्र जप मानव के भीतर की सोयी हुई चेतना को जगाकर उसकी महानता को प्रकट कर देता है। यहाँ तक कि जप से जीवात्मा ब्रह्म-परमात्मपद में पहुंचने की क्षमता भी विकसित कर लेता है।

जपात् सिद्धिः जपात् सिद्धिः जपात् सिद्धिर्न संशयः। मंत्र दिखने में तो बहुत छोटा होता है लेकिन उसका प्रभाव बहुत बड़ा होता है। 

'गीता प्रेस' गोरखपुर के श्री जयदयाल गोयन्दका जी लिखते हैं:

"वास्तव में, नाम की महिमा वही पुरुष जान सकता है जिसका मन निरंतर श्री भगवन्नाम के चिंतन में संलग्न रहता है, नाम की प्रिय और मधुर स्मृति से जिसको क्षण-क्षण में रोमांच और अश्रुपात होते हैं, जो जल के वियोग में मछली की व्याकुलता के समान क्षणभर के नाम-वियोग से भी विकल हो उठता है, जो महापुरुष निमिषमात्र के लिए भी भगवान के नाम को नहीं छोड़ सकता और जो निष्काम भाव से निरंतर प्रेमपूर्वक जप करते-करते उसमें तल्लीन हो चुका है।

साधना-पथ के विघ्नों को नष्ट करने और मन में होनेवाली सांसारिक स्फुरणाओं का नाश करने के लिए आत्म स्वरूप के चिंतन सहित प्रेमपूर्वक भगवन्नाम-जप करने के समान दूसरा कोई साधन नहीं है।'

नाम और नामी की अभिन्नता है। नाम-जप करने से जापक में नामी के स्वभाव का प्रत्यारोपण होने लगता है। इससे उसके दुर्गुण, दोष, दुराचार मिटकर उसमें दैवी संपत्ति के गुणों का स्थापन होता है व नामी के लिए उत्कट प्रेम-लालसा का विकास होता है।

भगवन्नाम की महिमा अगाध है, अपार हे, अमाप है। किन्तु है तो बस, सच्चे हृदय से भगवन्नाम लेने की तुलसीदास जी कहते हैं:

राम नाम की औषधि खरी नियत से खाय। 

अंग रोग व्यापे नहिं महारोग मिट जाए॥


 

धर्म जगत

SEE MORE...........