संत कबीर दास की यह सीख हमें आत्म-सम्मान, नम्रता, और सादगी की महत्वता को समझाती है। उनके द्वारा कही गई इस वाक्यांश का अर्थ है कि हमें दिखावे के लिए अत्यंत महंगे और भव्य कपड़े नहीं पहनने चाहिए, बल्कि हमें कपड़ों की उपयोगिता और आवश्यकता के अनुसार वेशभूषा करनी चाहिए। हमारे शरीर के लिए आरामदायक, सुखद, और अनुकूल वस्त्र पहनना हमें आत्म-संतुष्टि और आत्मसम्मान का अनुभव करने में मदद करता है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोन से, यह सीख हमें अहंकार और दिखावे में नहीं फंसने का संदेश देती है। हमारे जीवन में जितने भी वास्तविक और सच्चे रिश्ते हैं, वे संपूर्णतः नम्रता, सादगी, और प्रेम पर आधारित होने चाहिए। भगवान ने हमें सभी मनुष्यों को समान रूप से बनाया है और वे हमें भाग्यशाली बनाने के लिए हमें भव्यता के बहिष्कार के मार्ग पर चलने की सलाह देते हैं।
संत कबीर के उपदेश का मूल तत्व यह है कि हमें अपने अंतरंग स्वभाव को पहचानने की आवश्यकता है और इसे समझ कर अपने जीवन को सरल, साधारण, और सच्चा बनाने का प्रयास करना चाहिए।
दिखावा और भव्यता हमारे जीवन को संकटों में डाल सकते हैं, जबकि नम्रता और सादगी हमें आनंद और समृद्धि की अनुभूति करने में मदद कर सकते हैं। इसलिए, हमें संत कबीर की सीख को अपने जीवन में अमल करके सादगी, ईमानदारी, और प्रेम के साथ जीने का प्रयास करना चाहिए।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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