Published By:धर्म पुराण डेस्क

उल्लासपूर्ण जीवन जीना सिखाती है सनातन संस्कृति

हमारी सनातन संस्कृति में व्रत, त्यौहार और उत्सव अपना विशेष महत्व रखते हैं। सनातन धर्म में पर्व और त्यौहारों का इतना बाहुल्य है कि यहाँ के लोगों में 'सात वार नौ त्यौहार' की एक कहावत ही प्रचलित हो गयी। इन पर्वों तथा त्यौहारों के रूप में हमारे ऋषियों ने जीवन को सरस और उल्लासपूर्ण बनाने की सुंदर व्यवस्था की है। प्रत्येक पर्व और त्यौहार का अपना एक विशेष महत्व है, जो विशेष विचार तथा उद्देश्य को सामने रखकर निश्चित किया गया है।

ये पर्व और त्यौहार चाहे किसी भी श्रेणी के हों तथा उनका बाह्य रूप भले भिन्न-भिन्न हो, परंतु उन्हें स्थापित करने के पीछे हमारे ऋषियों का उद्देश्य था - समाज को भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर लाना ।

अंतर्मुख होकर अंतर्यात्रा करना यह भारतीय संस्कृति का प्रमुख सिद्धांत है। बाहरी वस्तुएँ कैसी भी चमक-दमक वाली या भव्य हों, परंतु उनसे आत्मकल्याण नहीं हो सकता, क्योंकि वे मनुष्य को परमार्थ से हटाकर स्वार्थ की ओर ले जाती हैं। इसलिए हमारे पूर्वजों ने हमारे जीवन में अनेक पर्वों और त्यौहारों को जोड़कर हम हमारे उत्तम लक्ष्य की ओर बढ़ते रहें, ऐसी व्यवस्था बनाई है।

मनुष्य अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुसार सदा एक रस में ही रहना पसंद नहीं करता। यदि वर्षभर वह अपने नियमित कार्यों में ही लगा रहे तो उसके चित्त में उद्विग्नता का भाव उत्पन्न हो जाएगा। इसलिए यह आवश्यक है कि उसे बीच-बीच में ऐसे अवसर भी मिलते रहें, जिनसे वह अपने जीवन में कुछ नवीनता तथा हर्षोल्लास का अनुभव कर सके ।

जो त्यौहार किसी महापुरुष के अवतार या जयंती के रूप में मनाये जाते हैं, उनके द्वारा समाज को सच्चरित्रता, सेवा, नैतिकता, सद्भावना आदि की शिक्षा मिलती है। बिना किसी मार्गदर्शन अथवा प्रकाशस्तंभ के संसार में सफलतापूर्वक यात्रा करना मनुष्य के लिए संभव नहीं है। इसलिए उन्नति की आकांक्षा करने वाली जातियों अपने महान पूर्वजों के चरित्रों को बड़े गौरव के साथ याद करती हैं। जिस व्यक्ति या जाति के जीवन में महापुरुषों का सीधा-अनसीधा ज्ञान-प्रकाश नहीं, वह व्यक्ति या जाति अधिक उद्विग्न, जटिल व अशांत पायी जाती है। 

सनातन धर्म में त्यौहारों को केवल छुट्टी का दिन अथवा महापुरुषों की जयंती ही न समझकर उनसे समाज की वास्तविक उन्नति तथा चहुँमुखी विकास का उद्देश्य सिद्ध किया गया है।

लंबे समय से अनेक थपेड़ों को सहने, अनेक कष्टों से जूझने तथा अनेक परिवर्तनों के बाद भी हमारी संस्कृति आज तक कायम है तो इसके मूल कारणों में इन पर्वों और त्यौहारों का भी एक बड़ा योगदान रहा है।

हमारे तत्त्ववेत्ता पूज्यपाद ऋषियों ने महान उद्देश्यों को लक्ष्य बनाकर अनेक पर्वों तथा त्यौहारों के दिवस नियुक्त किये हैं। इन सब में लौकिक कार्यों के साथ ही आध्यात्मिक तत्वों का समावेश इस प्रकार से कर दिया गया है कि हम उन्हें अपने जीवन में सुगमतापूर्वक उतार सकें। सभी उत्सव समाज को नवजीवन, स्फूर्ति व उत्साह देनेवाले हैं। इन उत्सवों का लक्ष्य यही है कि हम अपने महान पूर्वजों के अनुकरणीय तथा उज्ज्वल सत्कर्मों की परंपरा को कायम रखते हुए जीवन का चहुँमुखी विकास करें।

हम सभी का यह कर्तव्य है कि अपने उत्सवों को हर्षोल्लास तथा गौरव के साथ मनाएं, परंतु साथ ही यह भी परम आवश्यक है कि हम उनके वास्तविक उद्देश्यों और स्वरूप को न भूलकर उन्हें जीवन में उतारें- 

ज्ञान की चिंगारी को फूंकते रहना। ज्योत जगाते रहना।

• प्रकाश बढ़ाते रहना। सूरज की किरण के जरिये खबर पा लेना सद्गुरुओं के प्रसाद के सहारे स्वयं सत्य सूरज की प्राप्ति तक पहुँच जाना। ऐसी हो मधुर दिवाली आपकी...


 

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