Published By:अतुल विनोद

मन की तृप्ति और आत्मा तृप्ति। सुख और आनंद के भी पार ….अतुल विनोद

आनंद को लेकर अनेक प्रकार के शोध हुए हैं, आनंद की प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार की साधना का वर्णन किया गया, फिर भी शाश्वत आनंद मिलता नहीं।

इस दुनिया में शाश्वत तो परब्रह्म है। चेतना या चैतन्य शाश्वत नहीं है क्योंकि चेतना का स्वभाव है बदलना। आनंद भी कैसे शाश्वत हुआ? लेकिन सुख-दुख से तो बेहतर ही है।

दुनिया में अनेक मत हैं- कन्फ्यूशियस, हिंदू बौद्ध, जैन, सिख, पारसी यहूदी, मुस्लिम, क्रिश्चियन और भी अनेक मत पंथ संप्रदाय सब में आनंद के बारे में कुछ ना कुछ कहा गया है।

शाश्वत आनंद कहां है और यह कैसे मिलेगा जो मिलेगा परमानेंट हो नहीं सकता। इसलिए यदि आनंद भी मिलेगा तो परमानेंट नहीं होगा। फिर परमानेंट क्या है? 

भारतीय दर्शन कहता है कि आनंद भी हमेशा नहीं है, इसलिए आनंद से भी ऊपर उठो। लेकिन पहले आनंद तक पहुंचे आनंद के बाद ही परमानंद है। और परमानंद के बाद ही परमात्मा।

सबसे बड़ा सवाल है कि इस आनंद की प्राप्ति किस किसको हुई? कैसे हुई और कब हुई? क्या आज कोई ऐसा व्यक्ति है जिसे शाश्वत आनंद मिल गया है? 

कहते हैं कि सुख आनंद का क्षण भंगुर रूप है, सुख के भी तीन प्रकार हैं वह सुख जो जड़ से जड़ के मिलने पर होता है, एक वह सुख जो जड़ के चेतन से मिलने से होता है, और एक वह सुख जो चेतन से चेतन के मिलने से होता है। 

और जड़ से मिलकर बना सुख इंद्रियों का सुख कहलाता है, जड़ और चेतन के सहयोग से मिलने वाले सुख के बारे में कहा जाता है कि जड़ रूपी मन और चेतन रूपी आत्मा के मिलने से जो सुख होता है यानी समाधि का सुख उसे दूसरे प्रकार का सुख कहते हैं। लेकिन वेद कहते हैं कि चेतन के चेतन से संयोग होने पर जो सुख पैदा होता है वह असली सुख होता है। यानी आत्मा से परमात्मा का मिलन। 

आत्मा से परमात्मा के मिलन से पैदा होने वाला सुख आनंद कहलाता है। लेकिन जब आत्मा का अस्तित्व पूरी तरह खत्म हो जाता है परमात्मा शेष रहता है तब आनंद भी विलीन हो जाता है और जो कुछ शेष रहता है वह शाश्वत है।

पहले दूसरे और तीसरे प्रकार के सुख में मात्रा का अंतर हो सकता है। पहला कम समय के लिए दूसरा थोड़े और ज्यादा समय के लिए तीसरा बहुत ज्यादा समय के लिए।

यह सुख कर्म से पैदा होते हैं माया का प्रभाव तीसरे सुख को भी शाश्वत नहीं रहने देती। तीसरे सुख यानी चेतन के चेतन से मिलन से पैदा हुए सुख को भी माया एक समय बाद काट देती है। आनंद को भी खत्म कर देती है इसलिए कहा गया है कि मनुष्य आनंद के फेर में भी ना पड़े मनुष्य उससे भी आगे जाने की कोशिश करें।

 

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