Published By:धर्म पुराण डेस्क

पूर्वकाल में किसी पर्व, तीर्थयात्रा या अवसर विशेष पर ही समुद्र स्नान का अवसर मिलता था परंतु आजकल समुद्री किनारों का पर्यटन बढ़ गया है और संभवतः दुर्घटनाएँ भी। पूर्णिमा और अमावस्या को समुद्र में स्वतः उत्पन्न हुए ज्वार-भाटे से सामान्य जन तक भी परिचित है। समुद्री यात्रा में इन तिथियों का विशेष ध्यान रखा जाता है।
धर्मशास्त्र सूर्य और चंद्रमा की स्थिति और ज्योतिष के परिप्रेक्ष्य में बताते हैं कि पूर्णिमा, अमावस्या, संक्रांति, उत्तरायण, दक्षिणायन या अन्य किसी खगोलीय पर्व पर समुद्र जल से स्नान करना चाहिए।
समुद्र अथाह जलराशि और अनंत औषधियों से परिपूर्ण है और इन विशेष खगोलीय व ज्योतिषीय पर्वों पर सूर्योदय के साथ ही ये औषधियां समुद्र के गर्भ से निकल कर तटीय भागों पर आती हैं इसलिए इन पर्वो पर समुद्री तटों पर स्नान करना स्वास्थ्यवर्द्धक माना जाता है।
शुक्रवार और मंगलवार को समुद्री यात्रा का प्रारंभ और समुद्री तटों का पर्यटन व समुद्र स्नान भी नहीं किया जाता, ऐसा करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है क्योंकि इन वारों में समुद्री क्षार अत्यधिक मात्रा में उत्सर्जित होता है। लेकिन सेतुबंध रामेश्वर तीर्थ पर स्थित हिन्द महासागर की तीर्थ यात्रा व स्नान में वार विशेष के नियम नहीं लगते। धार्मिक मान्यता है कि भगवान राम के द्वारा समुद्र बंधन (पुल बांधकर) करके वहाँ स्वयं भगवान शंकर की स्थापना व उसी समुद्री जल से अभिषेक करने से वहाँ का समुद्री जल शुद्ध हो गया है। आप परीक्षण भी कर सकते हैं- मुंबई के समुद्री जल में, रामेश्वर धाम पर स्थित समुद्री जल की अपेक्षा अधिक क्षार मिश्रित होता है।
समुद्र साक्षात् वरुणदेव के प्रतिरूप ही हैं। आज अत्याधुनिक परिवेश में भी जबकि समुद्री बीच का पर्यटन करने आप जाएं तो शुक्रवार व मंगलवार को आपको त्याग देना भी अनेक प्रकार से स्वास्थ्य के लिए शुभ होता है अन्यथा जलदूषण से उत्पन्न रोगों को संभावना रहती है अतः शुक्रवार और मंगलवार को समुद्री तटों पर ना जाएं और कोशिश करें कि पर्वकाल में आप समुद्र स्नान करें।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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