 Published By:अतुल विनोद
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तो फिर सूर्य में चमक, ताप, किरणें और प्रकाश आया कहाँं से। हम इस अविश्वसनीय से लगने वाले रोचक और महत्वपूर्ण विषय पर प्रामाणिक चर्चा करेंगे। परन्तु हम पहले सोमयाग में वायु रुपी घृत के उपयोग और उससे बनने वाले वायु के प्रकारों को भी समझ लें। देवताओं में सोम (आक्सीजन) के कारण ही तो विग्रह हुआ था। और अब जब पुनः सभी देवता एक हो गये। संकल्प ले लिया। सबने अपनी अपनी प्रिय वस्तुओं और धामों को जमानत में रख दिया। तब समस्या यह हुई कि वायु तो दिखाई ही नहीं देती। वायु को पकड़ भी तो नहीं सकते। फिर सोमयाग कैसे करें? तो रास्ता भी यहीं से निकाला गया। घृत भी तो अग्नि है। आहूतियों के पश्चात वह भी तो वायु बन कर अंतरिक्ष में आवृत्त हो जाता है। तो क्यों न घृत को ही साक्षी मानकर सभी ऋतिज्व यज्ञ करें। चूंकि समस्त देवतागण, इन्द्र की मातहती स्वीकार कर ही चुके थे, अतः मुख्य यजमान जो कि इन्द्र ही बना होता है, अतः सभी ऋतिज्व अपनी अपनी स्रुवा का घृत इस इन्द्र को दे देते हैं और फिर मुख्य यजमान घृत की आहूति डाल देता है। ब्रह्माँड के रहस्य -65 देवताओं का संघ -1 घृत रूपी वायु का सीधा प्रभाव मन और प्राण पर पड़ता है! देखें- तनूनप्ता वायु (जो घृत से बनती है)। वह दो प्रकार की होती है "मनोवायु" और "प्राणवायु"। मनोवायु को "परिपति" और प्राणवायु को "आपति" वायु कहते हैं। अब देखें कि मन और प्राणों का संचार होता कैसे है। और करता कौन है? मन में अनंत इच्छायें होतीं हैं। मन विकासी है। मन चारों ओर विकसित होकर इच्छा स्वरुप में परिणित होता है। इसकी कोई निश्चित दिशा नहीं है। मन सर्वतोदिक है। मन का कारण यही "तनूनप्ता वायु" है। और प्राण.! प्राण को प्रेरित करने वाला जो वायु है, वह आपति वायु है। प्राण एक तरफ होकर ही अपना प्राण व्यापार करता है। घृत से शरीर में बल आता है। जो मनुष्य बलिष्ठ होता है, उसमें आत्म गौरव होता है। वह बुरे काम नहीं करता। निर्बल आदमी बुरे काम करता है। घृत से समस्त दोष हठ जाते हैं। तनूनपात "अप्रतिहतगति" (शक्तिशाली) है। नीचे नहीं गिरने देता। शाक्वर (सोमवायु) भी शक्तिशाली है। क्रंदसी वायु (मस्तिष्क की वायु) जो शाक्वर भी कहलाती है शरीर की रक्षा करती है। ब्रह्माँड के रहस्य -62….सोम सम्राट का सिंहासन शाक्वर वायु में ही देवताओं की जमानत रखी है। फिर देवताओं की प्रिय वस्तु यही, शाक्वर सोम वायु ही है। हमारे पूरे शरीर में आग्नेय 33 देवता रहते हैं। शरीर में जहाँ भी छुओ, गर्म लगता है। और जिस शीतल वायु के बहने से तबियत हरी हो जाये वही प्राणवायु शक्वर है, जिससे श्वांस और प्रश्वांस चलतीं हैं। पूरे शरीर में शक्वर वायु संचरित रहती है। वायु के संचरण से ही मांस और अस्थियां बनतीं हैं। यह वायु एक तरह से शरीर की संपूर्ण जानकारी रखती है, और इस सूचना को सभी देवताओं को देती रहती है। देवताओं के सब काम दुबारा एक जुट होने के कारण ही सुचारू रुप से चलते रहते हैं। चूंकि सूक्ष्म तरंगों से ही मन की बात जानी जा सकती है। सोम की बूंदों से बना पलाश……ब्रह्माँड के रहस्य -58 यज्ञ विधि, सोम-2 फिर यह वायु तो स्वयं भी 24 घंटे निगरानी रखता है। तो! जो वायु विज्ञान है,हमारे ऋषियों की बहुत बडी़ खोज है। शरीर विज्ञान की सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारियों को कितने हजारों वर्षों में खोज पाये होंगे? कल्पना से भी परे है। हमने पिछली पोस्टों में 9 लोकों की चर्चा करते हुए, तीन त्रिलोकियों- रोदसी, क्रंदसी और संयती, का विस्तार से वर्णन किया था। उसी तारतम्य में हम आगे रोदसी त्रिलोकी (पृथ्वी,अंतरिक्ष और स्वर्ग लोक) की वायु की बात करेंगे और यह भी कि सूर्य के काले गोले को ताप, चमक, प्रकाश और किरणें कैसे मिलीं। आज बस यहीं तक। तो मिलते हैं। तब तक विदा। धन्यवाद।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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