 Published By:अतुल विनोद
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ब्रह्माँड के रहस्य -69 देवताओं का संघ- 5 रमेश तिवारी बहुत ध्यान से, मन से और रोचकता से पढ़ने और आत्मसात करने की आवश्यकता है। हम लोमहर्षक विषय पर हम चर्चा करने जा रहे हैं। आप सब पिछली पोस्टों पर दृष्टि केन्द्रित करेंगे, तब ही, यह विज्ञान आप समझ सकेंगे। सूर्य का गोला काला था। यह सुनते ही हमारा रूढ़िवादी सोच विद्रोह करने लग सकता है। किंतु यह सत्य है। ब्रह्माँड के रहस्य -55 यज्ञ विधि -13 पिछली अनेक पोस्टों में हमने पढा़ है कि सूर्य को मार्तंड भी कहते हैं। अर्थात् मृत पिंड। तो फिर सूर्य की किरणों से संवत्सर कैसे बना। संवत्सर से रात्रि और दिन, सप्ताह, पखवाडा़, अयन और वर्ष का क्या सरोकार.! किंतु यही तो हम बता चुके हैं कि अदिति अपने पुत्र मार्तंड को छोड़कर 7 पुत्रों को साथ में रखती है। इन्हीं 7 आदित्यों के प्रकाश से संवत्सर जीवंत है। प्राणों के प्रकार पोस्ट में हम बता चुके हैं कि मनुष्य में यही सात प्राण हैं। अदिति इन्हीं के चक्कर लगाती है। यही संवत्सर के, जीवन के और प्राणों के कारक हैं। सिर्फ इसी सूत्र को पकड़ कर हम समझ सकते हैं कि सूर्य काला गोला मात्र था। तब पुनः प्रश्न उठता है कि फिर सूर्य में ताप, चमक, प्रकाश और ये किरणें आईं कहां से। और सृष्टि के निर्माण से आज तक सूर्य की यही प्रतिष्ठा मौजूद है तो कैसे है? ब्रह्माँड के रहस्य -56: यज्ञविधि -14 आदित्यों में वरुण का स्थान सम्राट जैसा है। कंठ स्थान है वरुण का। वरुण हमारे कंठ स्थान पर विराजित हैं। यहीं से वाणी का व्यापार होता है। वे जलों के देवता हैं। किंतु अग्नि के देव भी हैं। समझें- जल में अग्नि भी होती है। अधिक दिन जल रुका रहे तो..! अधिक जल से हरे भरे जंगल भी जल जाते हैं। और जब हम ज्यादा बोलते हैं, तो शरीर भी शिथिल हो जाता है। कारण कि अधिक बोलने में हमारे शरीर की ऊर्जा भी अधिक लगती है। ऊर्जा, विद्युत है। विद्युत अग्नि है। इसीलिए अधिक बोलने से शरीर की अग्नि भी अधिक नष्ट हो जाती है। कहने का तात्पर्य बस यही कि जलों के अधिपति वरुण अग्नि के देवता भी हैं। उन्होंने ही इन्द्र (विष्णु,सूर्य) को प्रतिष्ठित कर रखा है। वे चाहें तो क्षणों में धराशायी कर सकते हैं। अब हम आते हैं,देवताओं की एक जुट होने और अपनी, अपनी महत्वपूर्ण वस्तुयें जमानत पर रखने और भविष्य में फिर कभी अलग न होने की शपथ पर। तो हम पूर्व में ही यह बता चुके हैं कि किस प्रकार इन चारों देवताओं-सोम, (आक्सीजन) इन्द्र (विद्युत) अग्नि (ताप) और वरुण (किरणें) ने, जो सभी 33 देवताओं के नेता हैं, अपनी प्रिय वस्तुयेंं (धामों) को इंद्र (सूर्य) को अपना नेता बनाकर सोम के समक्ष सौंप दी थीं। ब्रह्माँड के रहस्य -57 यज्ञ विधि, सोम -1 हम यह भी बता चुके हैं कि पृथ्वी के नीचे अग्नि का प्रभुत्व है। भूमि में भीतर ही भीतर आग धधकती रहती है। पृथ्वी की यही अग्नि काली किरणों के रुप में ऊपर जाती रहतीं है, सूर्य तक। यही अग्नि ताप उत्पन्न करतीं हैं। अब विज्ञान का नियम भी समझ लें। बिना घर्षण के ताप, प्रकाश, किरणें और चमक, कभी उत्पन्न ही नहीं होते। हम सुन चुके हैं कि सभी प्रमुख देवता शाक्वर (ब्रह्माँड, आक्सीजन में) सम हो गये। घुल मिल गये। विरुपता मिटाकर ही तो सम हुए थे। वे देवजम साम हो गये। सब देवताओं की समष्टि से ही तो सम या साम कहलाये। देवजम साम भी, इसी एकीभाव का नाम है। मुख्य चर्चा पर आते हैं। तो जो, सूर्य का काला गोला था। वह परिपूर्ण कैसे हुआ। इस प्रश्न का रोचक, वैज्ञानिक और चमत्कारिक उत्तर भी इसी शपथ, देवजम साम और घर्षण विज्ञान में छिपा है। सूर्य का काला गोला जब तक अकेला था! तो वह घर्षण किससे करता? बात तो ठीक है। अकेला चना भाड़ को कैसे फोड़ सकता है। किंतु जब संपूर्ण ब्रह्माँड में व्याप सोम ने सबकी गारंटी लेकर इंद्र को नेता मान लिया तब तो मार्तंड मृत पिंड (आदित्य) की भी बल्ले बल्ले हो गई। काले गोले को टकराने के लिए या यूं कहें की घर्षण के लिये वरुण, इन्द्र, अग्नि और सोम (वायु) सभी तो मिल गये। अंधा क्या चाहे! दो ही आंखें न? परन्तु यहां तो काले गोले को चार चार आंखें मिल गईं। किंतु प्रश्न वहीं खडा़ है कि सूर्य में- प्रकाश, ताप, चमक और किरणें आईं तो आईं कहां से.! तो उत्तर भी आज ही और अभी ही सुन लें। घर्षण के कारण- "वरुण से किरणें, इंद्र से प्रकाश, सोम से चमक और अग्नि से ताप प्राप्त किया। अग्नि के कारण अब मार्तंड धधकने लगा। स्वर्ण सदृश सोम से, चमकने लगा, वरुण की किरणों से सज्जित हो सहस्त्र रश्मियां बिखेरने लगा और इन्द्र (विद्युत) के प्रकाश से मानों नहा गया। यही सभी देवता आज तक अपनी अपनी शपथ, निभा रहे हैं। आज की कथा बस यहीं तक। तो मिलते हैं। तब तक विदा। धन्यवाद।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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