भगवान राम का आत्मानुशासन जनजीवन का आदर्श---दिनेश मालवीय
भगवान् राम के चरित्र की एक बड़ी खासियत यह है कि वह किसी के भी अधिकार की अवहेलना नहीं करते, यानी किसी की अथॉरिटी को डिसरिगार्ड नहीं करते. कोई कितना भी छोटा हो और उसके अधिकार कितनी भी सीमित हों, वह उसे पूरी मान्यता देते हैं, ताकि वह कर्तव्य को ठीक से निभा सके. उसे अपने छोटेपन का एहसास भी नहीं हो. भगवान राम के जीवन के कुछ प्रसंगों से हम उनके इस गुण को समझ सकते हैं.
जनकपुर में धनुष-यज्ञ प्रसंग में भाग लेने राम अपने गुरु के साथ जाते हैं. वह अपने गुरु के लिए पूजा के फूल लेने पुष्प वाटिका में जाते हैं. राम वहां मालियों से अनुमति लेकर ही फूल लेते हैं. कहने को तो इसमें कुछ खास बात नजर हीं आती, लेकिन इस आचरण में एक बड़ी बात छुपी है. इससे जहां उनके सेल्फ डिसिप्लिन का पता चलता है, वहीं दूसरे के अधिकारों के प्रति उनके मन में सम्मान का भाव भी सामने आता है. रामचरित मानस में उनके इस गुण का कई जगह परिचय मिलता है. उन्होंने कहीं भी किसी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया.
भगवान् राम चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे. वह मिथिला के राज्य अतिथि थे, जिसके राजा जनक भी चक्रवर्ती थे. पूरा जनकपुर उनके रूप, शील और आचरण पर मोहित था. वह चाहते तो बिना पूछे ही फूल तोड़ लेते, उन्हें रोकने वाला कौन था ? उन्हें यदि राजा का पुत्र होने का गर्व होता तो, वह मालियों जैसे छोटे कर्मचारियों की सहज ही अवहेलना कर सकते थे. इससे मालियों को भी कुछ अस्वाभाविक नहीं लगता, क्योंकि उनके लिए यह बहुत आम बात थी. लेकिन तब राम मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं होते.
सेना के साथ लंका जाने के लिए भगवान राम समुद्र से विनती करते हैं. वह चाहते तो इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी. वह सर्वशक्तिमान थे. जब समुद्र ने तीन दिन तक उनकी विनती को नहीं माना, तभी उन्होंने क्रोध किया.
वनवास के दौरान गंगा पार करने के लिए, केवट जैसा छोटा-सा नाविक शर्त रख देता है, कि वह उनके पांव धोये बिना नाव पर नहीं चढ़ने देगा. राम उसे झिड़क भी सकते थे. वह उस पर अपना रौब ग़ालिब कर सकते थे. लेकिन उन्होंने मुस्कुराके उसे ऐसा करने की अनुमति दी. राम के इस गुण को अगर हम थोड़ा-सा भी जीवन में उतार लें, तो इसमें हमारी शख्सियत में चार चाँद लग सकते हैं. साथ ही, हम अनेक परेशानियों से बच सकते हैं.
हमारे सामने अक्सर ऐसे प्रसंग आते हैं जहाँ लोग दूसरे के अधिकार की अवमानना करके अपने छोटेपन का सबूत देते हैं. वे दूसरों का अपमान करने से भी नहीं चूकते.
हम जरा सी पद-प्रतिष्ठा या धन-संपत्ति आ जाने पर अपने को बहुत ऊँचा मान कर यह समझने लगते हैं कि हमारे ऊपर कुछ भी नहीं है. घमंड में चूर होकर हम आत्मानुशासन की तो छोड़िये दूसरों के अनुशासन की भी अवहेलना करते हैं. किसी भी व्यक्ति और संस्था के नियमों और अनुशासन को हम कुछ समझते ही नहीं. उनका उल्लंघन करने में अपनी शान तक समझते हैं.
मेरे एक परिचित को सीने में दर्द उठा. उन्हें अस्पताल ले जाया गया. डॉक्टर्स ने उन्हें आई सी यू में रखा. उनके जान-पहचान वालों और परिजनों का अस्पताल में तांता लग गया. आई सी यू में गंभीर रोगियों को रखा जाता है. अपेक्षा की जाती है कि वहां कम लोगों की आवाजाही हो और शांति रहे. उनसे मिलने वाले धड़ाधड़ उनसे मिलने जाने लगे. जांच में उन्हें कुछ खास तकलीफ नहीं निकली थी. नर्स ने उनसे मिलने आने-जाने वालों से कहा कि आप ज्यादा संख्या में न आएं. कम बात करें, ताकि दूसरे मरीजों को तकलीफ न हो. इस पर आई सी यू में भर्ती मेरे परिचित नर्स पर बिगड़ गये. बोले कि "तुम जानती नहीं हो कि मैं कौन हूं”. यूं तो वह कुछ बहुत बड़े आदमी नहीं थे, लेकिन खुद को ऐसा मानते थे. इससे भी ज्यादा वह चाहते थे कि लोग उन्हें बहुत बड़ा आदमी मानें.
ट्रैफिक पुलिस द्वारा नियमों का उल्लंघन करने पर चालानी कार्यवाही की जाती है. हमें हर कहीं ऐसे लोग मिल जाएँगे जो पुलिसकर्मियों पर अपने किसी बड़े रिश्तेदार, नेता या अधिकारी से अपना कोई सम्बन्ध बताकर उन्हें डराते हैं. ऐसे लोगों को भगवान् राम के आचरण से सीखने की बहुत ज़रूरत है. टोल टैक्स चुकाने के समय भी ऐसे दृश्य देखने को मिल जाते हैं.
आज के समय की सबसे बड़ी विडंबना यही है, कि हर कोई अपने आपको "कुछ'' समझ कर खुद को सब नियम- कायदों से ऊपर मान रहा है. उसे लगता है कि इस दुनिया का कोई नियंता या नियामक नहीं है. सब कुछ अराजकता में चल रहा है. लेकिन अगर कोई आत्मानुशासन पाल ले तो उसे दुनिया का अनुशासन भी समझ आ जाएगा. उसे समझ आ जाएगा कि "देयर इज ए सिस्टम इन द मेडनेस'.
इस तरह आत्मानुशासन और दूसरे के अधिकारों का सम्मान करके जीवन में बहुत सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है. जब भी, जो भी, जहां भी महान बना है, उसने ऐसा खुद पर अनुशासन में रखकर ही किया है. खुद पर अनुशासन यानी सेल्फ डिसिप्लिन के बिना हम व्यक्ति दिशाहीन, बोधहीन और दृष्टिहीन होकर भटकते रहते हैं. हमें भगवान राम के आचरण से प्रेरणा लेकर खुद अपना अनुशासन पालना चाहिए. हम कोई भी हों, किसी भी क्षेत्र में हों, कुछ भी करते हों, खुद का अनुशासन सबसे एक बहुत बड़ी ताक़त दे सकता है
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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