 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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जीवात्मा जगत में, सात लोकों की एक रहस्यमय यात्रा है, जो आत्मा को उच्चतम सत्य की ओर ले जाती है। इन लोकों की सबसे निचली श्रेणी में है 'प्रथम लोक'। यह अधोत्तर और अंधकारपूर्ण होता है, जहां विकृत आत्माएं बंजर इलाकों में रहती हैं, अपने अंधकारित मन से दुष्टता और कुविचारों से भरी होती हैं।
दूसरे लोक में, भी भयानकता है, लेकिन अंधकार कम होता है और आत्माओं के शरीर हल्के होते हैं। यहां घृणा और असहिष्णुता की भावना रहती है, और वे पथरीली गुफाओं में बसी रहती हैं।
तीसरे लोक में, आत्माएं एक-दूसरे के प्रति दुर्भावनाओं से भरी होती हैं, और यहां भी अंधकार में हल्का उजाला होता है। वे आपसी नर्क में फंस जाती हैं और नई आत्माओं को अपने अधीन बना लेती हैं।
चौथे लोक में, मनुष्य की आत्मा अपनी यात्रा की शुरुआत करती है, जहां दिन और रात के दोनों होते हैं और उसे ऊपर या नीचे जाने का अवसर मिलता है।
पांचवा लोक स्वर्ग लोक है, जो धरती के सुंदर स्थान की तरह है, जहां आत्माएं एक-दूसरे की मदद करती हैं और उनके शरीर बहुत हल्के होते हैं।
छठे लोक में, यह सुंदरता का अद्वितीय स्तर है, जो सबसे हरित, भव्य, और प्रेमभरा होता है। आत्माएं यहां एक-दूसरे के साथ पूर्ण मेल-जोल में रहती हैं और सभी जीवों के साथ प्रेमपूर्वक आत्मा का अभ्यास करती हैं।
सातवें लोक को देखने का अवसर होता है, जो धार्मिकता, शान्ति, और पूर्णता का प्रतीक है। यह उच्चतम सत्य की ओर एक आध्यात्मिक यात्रा का समापन होता है, जिसमें आत्मा अपनी सच्ची धार्मिकता का आनंद लेती है और सबको प्रेम और शान्ति के साथ जीने की सीख देती है।
यह सात लोकों की यात्रा आत्मा को सत्य की ओर ले जाती है, जो अंत में सच्चे धर्म और प्रेम की अद्वितीयता में समाप्त होती है।
लेखक बुक “अद्भुत जीवन की ओर”
भागीरथ एच पुरोहित
 
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