शनिदेव जो स्वयं न्यायाधीश व दंडाधिकारी है उन्हें स्वयं भी शाप युक्त होकर अपंगता का शिकार होना पड़ा। शनिदेव की पंगुता या लंगड़ा पन के नेपथ्य में दो कथाएं मुख्य रूप से प्रचलित है।
भगवान गणेश को गजानन बनाने के पीछे भी शनिदेव की दृष्टि को ही श्रेय जाता है। पुत्र प्राप्ति की इच्छा से भगवान शिव व माता पार्वती ने “पुण्यक व्रत” का आयोजन किया था।
इसी पुण्यक व्रत के प्रभाव स्वरूप माता पार्वती को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इस पुत्र प्राप्ति के उपलक्ष्य में शिव लोक में समारोह का आयोजन किया गया जिसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया। सभी ने शिव-पार्वती पुत्र को अनेको उपहार तथा आशीर्वाद दिए।
सभी देवी-देवता इस मांगलिक उत्सव पर अत्यंत प्रसन्न थे। इस समारोह में शनिदेव भी आए थे और वे नेत्र झुकाए हुए थे तथा मन ही मन शिव पुत्र को आशीर्वाद दे रहे थे। उसी समय माता पार्वती की दृष्टि शनिदेव पर प़डी और उन्होंने शनिदेव को नीचे दृष्टि किए हुए देखा।
यह देखकर माता पार्वती को अपने पुत्र का अपमान लगा और उन्होंने शनिदेव से अपने पुत्र को न देखने का कारण पूछा। शनिदेव ने कहा कि मैं अपनी पत्नी के शाप (तुम जिसकी ओर देखोेगे वह नष्ट हो जाएगा) से अभिशप्त हू। माता! इसी कारणवश मैं, पुत्र गणेश की ओर दृष्टिपात नहीं कर रहा हू।
माँ पार्वती ने इस बात को हंसी में उड़ा दिया और कहा कि मेरे पुत्र को सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त है और आपकी दृष्टि मेरे पुत्र का कुछ भी अमंगल नहीं कर सकती।
माता पार्वती के हठ के परिणामस्वरूप शनिदेव ने ज्यों ही पुत्र गणेश पर दृष्टि डाली त्यो ही उनका सिर धड़ से अलग हो ब्रह्माण्ड में विलीन हो गया। शिव लोक में हाहाकार मच गया और माँ पार्वती पुत्र वियोग में विलाप करने लगी और मूर्छित हो गई।
तभी भगवान विष्णु उत्तर दिशा की ओर निकल पड़े और उन्होंने एक हथिनी जो अपने नवजात शिशु के साथ उत्तर दिशा में सिर करके सो रही थी, उस गज शिशु का मस्तक भगवान विष्णु ने काट लिया और शिव पुत्र के धड़ पर जोड़ दिया। होश में आने पर मां पार्वती ने शनिदेव को श्राप दे दिया, किन्तु सभी देवताओं ने शनिदेव का पक्ष लिया कि शनिदेव ने अपने हठ के कारण ही आपके पुत्र पर दृष्टिपात किया था।
माँ पार्वती को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने उस श्राप को शनिदेव के एक पैर की विकलता के रूप में बदल दिया तब से ही शनिदेव लंगड़े पन के शिकार हो गये।
शनिदेव के लंगडापन के पीछे दूसरी पौराणिक कथा यह है कि – ऋषि विश्रवा के दो पत्नियां थी – “इडविडा” और “कैकसी”। इडविडा ब्राह्मण कुल से थी, जिनसे “कुबेर” और “विभीषण” नामक दो संतान उत्पन्न हुई थी और असुर कुल में उत्पन्न दूसरी पत्नी कैकसी से “रावण”, “कुंभकर्ण” और “सूर्पणखां” नामक तीन संताने थी।
कुबेर ने धनाध्यक्ष की पदवी प्राप्त कर ली थी, जिसके कारण रावण तथा उसके भाईयों को बहुत ईष्र्या हुई और अपना तपोबल बढ़ाने के लिए रावण ने भाइयों सहित ब्राह्मण की पूजा कर वरदान प्राप्त कर लिए और परम शक्ति का स्वामी बना गया।
रावण की पत्नी मंदोदरी जब गर्भवती हुई तो रावण ने अपराजेय तथा दीर्घायु पुत्र की कामना से सभी ग्रहों को अपनी इच्छानुसार स्थापित कर दिया।
सभी ग्रह भविष्य में होने वाली घटनाओं को लेकर चिंतित थे लेकिन रावण के भय से वही ठहरे रहें लेकिन जब मेघनाद का जन्म होने वाला था, उसी समय शनिदेव ने स्थान परिवर्तन कर लिया जिसके कारण मेघनाद की दीर्घायु, अल्पायु में परिवर्तित हो गई।
शनि की बदली हुई स्थिति को देखकर रावण अत्यंत क्रोधित हुआ और उसने शनि के पैर पर अपनी गदा से प्रहार कर दिया जिसके कारण शनिदेव लंगड़े हो गए।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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