Published By:धर्म पुराण डेस्क

शरणागति: गीता का सार

गीता में श्रीकृष्ण द्वारा उपदिष्ट 'शरणागति' के सिद्धांत का महत्वपूर्ण रूप से वर्णन है। इस सिद्धांत को 'सर्वगुह्यतम' भी कहा गया है, जिसका अर्थ है कि यह सबसे गोपनीय और महत्वपूर्ण है। शरणागति का अर्थ है भगवान की शरण में जाना, उसकी पूजा करना और समर्पण करना।

भक्त के उद्धार के लिए शरणागति का महत्वपूर्ण कारण है। भगवान उसे संसार के बंधन से मुक्ति दिलाते हैं, जैसा कि गीता में कहा गया है, "हे पार्थ! मैं उन भक्तों का उद्धार करने वाला हूं जो मेरे में चित्तस्य हैं और जल्दी ही संसार सागर से पार कराता हूं" (गीता 12.7)।

शरणागति का सिद्धांत यह सिद्ध करता है कि भक्त का कार्य सिर्फ शरण लेना है, उद्धार करना भगवान का कार्य है, और इसमें प्रेम और समर्पण का भाव होता है। भगवान ने जीवात्मा को स्वतंत्रता दी है और उसे अपनी शरण में आने का ज्ञान दिया है।

शरणागति में जाने से जीव निश्चिन्त, निःशोक, निर्भय, और निःशंक हो जाता है। यह गीता का अंतिम सिद्धांत है और इसके अनुसार ही सब कुछ संभव है। जब तक व्यक्ति अपने बल, बुद्धि, विद्या, धन, आदि का आश्रय लेता है, तब तक असली शरणागति नहीं हो सकती। इस सिद्धांत को अपनाकर व्यक्ति अपने जीवन को भगवान के साथ समर्पित कर सकता है और उच्चतम आदर्शों की प्राप्ति में सफल हो सकता है।

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