शरणागति संपूर्ण साधनों में श्रेष्ठ है। गीता के अंत में भी भगवान ने शरणागत की बात कही है और इसे 'सर्व गुह्यतमं' बताया है। भक्तों का उद्धार करके भगवान को बड़ी प्रसन्नता होती है। शरण में जाना भक्तों का काम है, उद्धार करना भगवान का काम है, और प्रेम करना भक्त व भगवान — दोनों का काम है।
शरण लेने का काम भगवान का नहीं है। भगवान ने अपने कल्याण के लिए जीव को स्वतंत्रता दी है। शरण होकर जीव निश्चिन्त, निःशोक, निर्भय और निःशंक हो जाता है। शरण होना गीता का अंतिम सिद्धांत है। शरणागति गीता भर की सार बात है। जब तक अपने बल, बुद्धि, विद्या, धन आदि का आश्रय रहता है, तब तक असली शरणागति नहीं होती।
शरणागति साधनों में सबसे श्रेष्ठ और महत्वपूर्ण है। गीता के अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने शरणागति का महत्व बताया है और इसे 'सर्व गुह्यतमं' घोषित किया है। भगवान के शरण जाना एक भक्त की अद्वितीय भावना होती है और इससे भगवान को प्रसन्नता प्राप्त होती है।
शरणागति करना भक्त का कर्म है, और इसके माध्यम से वह भगवान के प्रति अपने समर्पण और प्यार का अभिवादन करता है. शरणागति द्वारा भगवान के सम्मुख आने का संदेश होता है, और यह भगवान के अनंत दया और करुणा का आभास कराता है।
शरण लेना केवल भक्त का कर्म नहीं है, बल्कि भगवान का कार्य भी है. भगवान ने अपने भक्तों को स्वतंत्रता दी है कि वे उनके शरण आ सकते हैं और वहां निश्चिन्त, निःशोक, निर्भय और निःशंक हो सकते हैं।
जब तक व्यक्ति अपने बल, बुद्धि, विद्या, धन और अन्य वास्तविक सहायता के साथ आश्रय ढूंढ़ता है, तब तक वास्तविक शरणागति नहीं हो सकती है. शरणागति गीता की सारत्मक सिद्धांत है और यह हमें समझाता है कि असल सुख और मुक्ति केवल भगवान के शरण में ही प्राप्त हो सकते हैं।
इस विचार का महत्व:
शरणागति का आदान-प्रदान भक्ति मार्ग का महत्वपूर्ण हिस्सा है, और यह हमें अपने स्वार्थ और अहंकार का त्याग करके भगवान के प्रति अपनी अनुराग और समर्पण की दिशा में ले जाता है। इसके माध्यम से हम अपने जीवन में भगवान के प्रति अपने अद्वितीय संबंध की महत्वपूर्ण भावना का अभिवादन कर सकते हैं और इसके माध्यम से हमें शांति और सुख प्राप्त होता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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