Published By:धर्म पुराण डेस्क

शिव जी तूं शिव जी तूं

‘शिव जी तूं शिव जी तूं' नाम का मधुर आलाप करोगे तो आपके जन्म-जन्म के बंधन कट जाएंगे|

मैं प्रातःकाल हर रोज की तरह घूमने निकला। आज कुछ जल्दी निकल पड़ा था, इसलिए मैने सोचा, थोड़ा आगे जाकर बगीचे की सैर कर इस सुहाने मौसम का आनन्द लेना चाहिए। बगीचे में जैसे ही मैं आगे बढ़ा तो कुछ मत पूछो। पेड़-पौधों व फूलों से ठण्डी- ठण्डी सुगन्धित प्यारी-प्यारी मन को मोहित करने वाली हवा चल रही थी व उस हवा से मीठे-मीठे स्वर गूँज रहे थे और तन मन को अलौकिक आनन्द दे रहे थे।

कुछ आगे बढ़ा तो मेरे कदम यकायक रुक गये। हर तरफ इन कुदरती नजारों को देखकर मैं तो खुद को ही भूल गया। नज़ारों के साथ-साथ मुझे अनेक पंछियों की मधुर-मधुर संगीत भरी सुरीली आवाज़ ने मोह लिया। 

ऐसा लग रहा था जैसे संगीतज्ञ अपने साजों एवं मधुर आवाज़ से स्वर्गमय माहौल हो गया हो। किसी एक साज़ का नाम लूँ, ये हो नहीं सकता। बीन, वीणा, बांसुरी, एकतारा, तबला इत्यादि हर साज़ की मधुर मस्ती भरी आवाज़ गूँज रही थी। 

मैंने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि समस्त पंछियों ने मुझे उस संगीत सभा का सभापति चुन लिया और मुझे उनमें से किसी एक सर्वश्रेष्ठ को चुनना था। हर पक्षी अपने मधुर कण्ठ से मुझे रीझाने की कोशिश कर रहा था और आशा भरी निगाहों से निहार रहे थे ताकि इनाम उसे ही मिले। आखिर में मैं समझ नहीं पा रहा था कि वास्तव में इनाम का हकदार कौन है? 

सभी को शांत रहने के लिये आग्रह किया। सभी शांत हो गये परन्तु पंछियों में एक पंछी जिसका नाम गेरा था, अपनी ही धुन में व्यस्त था और इनाम की कोई परवाह नहीं थी। वास्तव में मेरी नज़र में वही एक उस इनाम का हकदार था।

मैने उठकर सभा को उत्साह देकर कहा, आज मैं बेहद खुश हूँ जो आपने मेरे रूह को अपनी मधुर आवाज से मोह लिया एवं मेरा रोम-रोम आनन्द से भर दिया। इसलिए मैं आपका शुक्रगुजार हूँ मैं देख रहा हूँ आप सभी मेरा नतीजा सुनने के लिए बेताब हैं। 

जैसा कि इनाम केवल एक को ही मिलेगा परन्तु बाकी पक्षी ये नहीं समझें कि उन्होंने बेसुरा गाया मेरे देखा आपकी आवाज में भी मधुरता थी परन्तु उसके साथ-साथ जो मधुरता एवं एकाग्रता इस पक्षी में है यदि आप भी ऐसी ही लय और एकाग्रता लाने की कोशिश करते तो मुझे पूरा विश्वास है कि आप भी आने वाली प्रतियोगिता में प्रथम आ सकते हैं व इनाम पा सकते हैं। 

अब मैं आपको उस खुशनसीब पक्षी का नाम बताता हूँ, जिसका कंठ आप जितना ही मधुर है परन्तु वह उत्साह एवं एकाग्रता से परिपूर्ण है। इसीलिए इस सभा का इनाम मेरा पक्षी को दिया जाता है। मेरा नतीजा सुनकर सभी पक्षी शोर मचाने लगे और कहने लगे कि गेरा पक्षी इनाम का इकदार कैसे हो सकता है। वह बेसुरा अभी तक चिल्ला रहा है। 

मैंने सभी को शांत करवा कर कहा, शोर मचाने से कुछ नहीं होगा, मैं आपको बताता हूँ कि गेरा पक्षी में ऐसी कौन सी खासियत है जिसके कारण उसे संगीत सभा का इनाम मिला है।

आप ये तो देख रहे हैं कि गेरा पक्षी अभी तक अपनी मस्ती में मस्त है। उनकी आवाज़ को ध्यान से सुनिए कि वह क्या गा रहा है? मैं तो यही सुन रहा हूं कि वह 'शिव जी तूं शिव जी तूं' की धूनी जप रहा है। उसके स्वर में कितनी मधुरता और एकाग्रता है, उसके साथ-साथ शिव भगवान की धुनी। कितना आत्मिक आनन्द मिल रहा है। 

यही कारण है कि इसके भगवन् धुनी को सुनने के लिये स्वयं ब्रह्मा, विष्णु, महेश एवं समस्त देवी-देवता अपनी सुद्धि-बुद्धि बिसिरा कर तन्मय के साथ सुन रहे हैं। वास्तव में ऐसा लग रहा है जैसे ब्रह्मनाद बज रहा हो और सभी उसमें लीन हो गए हैं।

मैं आपको यह भी सुनाना चाहूंगा कि गेरा पक्षी पूर्व जन्म में एक महर्षि थे। वे हज़ारों वर्षों से भगवान की तपस्या में लीन थे। एक दिन भगवान शिव शंकर माता पार्वती के साथ उसी वन में रटन करने आ गए जहाँ महर्षि तपस्या कर रहे थे। शिव-पार्वती की आहट से ऋषि की समाधि खुल गई। सामने माता पार्वती को देखकर उसकी सुन्दरता पर मोहित हो गए। 

अंतर्यामी शिव भगवान ऋषि की गुस्ताखी से बेहद नाराज हो गए और ऋषि को श्राप देकर कहा कि जाओ और गेरा पक्षी बन जाओ। ऋषि घबरा गए और शिव भगवान नीलकंठ के चरणों में गिरकर विनती की कि हे-  जटाधारी, गंगाधर, मेरी भूल को क्षमा करें। मैं आपका और माता पार्वती का गुनहगार हूँ। माता पार्वती के आग्रह पर शिव भगवान ने श्राप तो वापस नहीं लिया परन्तु कहा कि तुम सदैव मेरा नाम जपते रहोगे और 'शिव जी तूं शिव जी तूं' कहते रहोगे। इससे ही तुम्हें मुक्ति मिल जाएगी।

अंत में मैंने कहा मित्रों आप भी शिवभक्त गेरा की तरह ‘शिव जी तूं शिव जी तूं' नाम का मधुर आलाप करोगे तो आपके जन्म-जन्म के बंधन कट जाएंगे और आप भी ब्रह्म स्वर में लीन हो जाओगे|

विनय रूप


 

धर्म जगत

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