Published By:धर्म पुराण डेस्क

शिव का संदेश स्त्री की पूर्णता पुरुष के साथ विवाह कर मातृत्व की प्राप्ति में है, सन्तानोत्पत्ति में है। 

यह प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसके कल्याणकारी प्रभाव है। अत्याधुनिकायें इसे नकारती हैं, अनेक शारीरिक मानसिक विपत्तियों को आमंत्रित करती हैं, कष्ट भोगती हैं। अर्धवादी, भोगवादी जीवन दृष्टि का कुफल भोगने के लिये अभिषम हैं।

शिव जी को प्राप्त कर गंगा जल रूप में अवतीर्ण होकर भगीरथ के प्रयास से पृथ्वी लोक की मायापुरी में आयीं। सगर पुत्रों का उद्धार किया और जलनिधि सागर में मिलकर पाताल लोक तक के प्राणियों का कल्याण करने लगी। घनीभूत हिम को द्रवित कर, पृथ्वी पर जलापूर्ति का नया अध्याय प्रारंभ हुआ। 

सघन ठोस तरल द्रव में जल रूप में परिणत हो प्रवाह में आया। पृथ्वी पर सरिताओं की सृष्टि हुई। पृथ्वी का जल संकट दूर हुआ। प्राणियों का जीवन अस्तित्व सहज और सुखमय हुआ। सती के अंश रूप हिमालय पुत्री गंगा ने शिव जी को पतिरूप में पुनः प्राप्त कर मृत्युलोक का कल्याण किया।

सती ने अपने दूसरे पूर्णावतार रूप, स्त्री रूप में भी हिमवान् के घर जन्म लिया। नाम हुआ पार्वती, गौरी, उमा हिमवान् और मैना को अपने परम शक्ति दिव्य रूप का बोध कराया। हिमवान् हिमालय और पार्वती के पारस्परिक संवाद में, पंच भौतिक देह, उसके प्रकार; अण्डज, स्वेदज, उद्भिज और जरायुज भेद, मैथुनी सृष्टि में शुक्र-रज संयोग से देह (शरीर) की निर्मिति प्रक्रिया, स्त्रियों का ऋतुचक्र, गर्भाधान प्रक्रिया, गर्भ विकास, शिशु जन्म विधि तथा जन्मोपरांत क्रमशः शारीरिक-मानसिक विकास और अभिवृद्धि का वर्णन है। यह वर्णन आधुनिक भैषज्य विज्ञान के अनुरूप है। परन्तु कुछ विज्ञान की पहुँच से परे भी है।

स्त्री की पूर्णता पुरुष के साथ विवाह कर मातृत्व की प्राप्ति में है, सन्तानोत्पत्ति में है। यह प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसके कल्याणकारी प्रभाव हैं। अत्याधुनिकायें इसे नकारती हैं, अनेक शारीरिक मानसिक विपत्तियों को आमंत्रित करती हैं, कष्ट भोगती हैं। अर्धवादी, भोगवादी जीवन दृष्टि का कुफल भोगने के लिये अभिषम हैं।

पुरुष की स्थिति भी न्यूनाधिक वही है। शिव परम स्त्री रूप सती का ध्यान करके उन्हें पुनः पत्नी रूप में पाने के लिए तपस्या करते रहते हैं। चिरकाल तक योग चिंतन करने से विश्वनाथ का काम भाव नष्ट हो चुका है। अपने पूर्ण शक्ति सम्पन्नता वैभव भाव से नारी शक्ति रूपा पार्वती विश्वनाथ के निकट संघर्षरत् हैं। सबको विभोहित करने वाले कामदेव अवसर की प्रतीक्षा में हैं। उनके शरीर में प्रवेश का कोई अवसर मिल नहीं रहा है।

परम शक्ति का एक स्वरूप माया का है। स्त्री रूपी माया का, विश्वमोहिनी माया का पार्वती महामाया हैं। विज्ञान में 'शक्ति' और 'ऊर्जा' दो शब्दों का प्रयोग मिलता है, एक ओर शब्द है 'कार्य'। शक्ति बल आधारित होती है। कार्य, आरोपित बल और हुये विस्थापन का गुणन होता है। ऊर्जा (ENERGY) को कार्य करने की क्षमता को परिभाषित किया गया है। 

भारतीय प्राचीन शास्त्रों में ऊर्जा शब्द का प्रयोग कम मिलता है, जहां मिलता है बहुत उच्च भूमि पर। शक्ति शब्द का प्रयोग ऊर्जा के स्थान पर ही किया गया है, वह भी अधिकांश प्रसंगों में परम ऊर्जा (SUPREME ENERGY) के रूप में। 

महाभागवत् में वास्तव में परम शक्ति, परम ऊर्जा है। ऊर्जा अदृश्य होती है, शब्द स्त्रीलिंग है। अत: परम शक्ति श्री रूपा है। वैज्ञानिक ऊर्जा के अनेक प्रकार, उपप्रकार बताते हैं। हमारे शास्त्रों ने स्त्री रूपिणी शक्ति को सहस्र नामों से संबोधित किया है। ऊर्जा अनन्त और अविनाशी है, उसका रूपान्तरण होता रहता है। परम शक्ति रूपा स्त्री भी अनन्त और अविनाशी है, अनेकानेक रूपों में यधानुकूल अवतरित होती है।

परम शक्ति सती हिमालय पुत्री पार्वती के रूप में अवतरित होती हैं। उद्देश्य है शिव में क्रियाशीलता लाना, गतिशीलता लाना। यह जड़त्वावस्था (INERTI OF REST) में हैं, उन्हें गल्यावस्था में (DYNAMISM: INERTIA OF MOTION) में लाना। शिव में क्रियाशक्ति (POWER OF ACTION) और इच्छाशक्ति (POWER OF WILL) दोनों का अभाव हो गया है। 

हजारों वर्ष से शिव, पार्वती रूपी क्रियाशक्ति, पार्वती रूपी इच्छा शक्ति को, परम शक्ति को पाने के लिए तपस्या कर रहे हैं परन्तु उसके स्वरूप को प्रत्यक्ष होने पर भी स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। परमशक्ति का कार्य है क्रियाशीलता देना, गतिशीलता देना, अवस्था परिवर्तन करना। शिव का जड़त्व समाप्त होगा। जड़ता में चेतनता का स्फुरण होगा; परम चेतना का स्फुरण होगा। 

ऊर्जा द्रव में संघनित होगी, द्रव्य ऊर्जा में रूपान्तरित होगा। दोनों की समरस युति में ही सृजन होगा, संहार होगा। शिव को सृजन भी करना है, शिव को संहार भी करना है। पार्वती, गौरी, उमा को महेश्वर की अर्द्धांगिनी बनना है। उनकी सहचरी बनना है। शिव को सक्रिय, क्रियाशील करना है। 

विष्णु चिंतित हैं, ब्रह्मा चिंतित है, जयलोक चिंतित है। परम शक्ति, परम ऊर्जा कभी निष्क्रिय नहीं होती। अपने अचिंतनीय वैभव विराटता के साथ दिव्य रूप में पार्वती शिव के प्रत्यक्ष हुई। परम सूक्ष्म, परम स्थूल रूप में उपस्थित हुआ। शिव में चेतनता आई कह उठे-

चिरं त्वद्विरदेहेणं निर्दग्धं हृदयं मम। 

त्वमन्तर्यामिनी शक्तिर्हृदयस्था महेश्वरी।। 

आराध्य त्वत्पदाम्भोजं कृत्वा हृदयपंकजे त्वद्विच्छेदसमुत्तप्तं हृत्करोमि सुशीतलम्।। 

इच्छाशक्ति का प्रादुर्भाव हुआ। महेश्वर आनन्दमग्न हुये। शव रूप शिव में शक्तिपात हुआ। ऊर्जा चेतना जाग्रत हुई। वाहन महाकाली तो आद्याशक्ति है, परम शक्ति है, पराशक्ति है। मैं शक्तिविहीन शिव मात्र शव होकर रहा गया हूँ। मैं शक्ति का वर्णन करूँगा। पार्वती से विवाह करूँगा। पार्वती का सन्निकट सहचर्य प्राप्त करूंगा। 

द्रव्य और ऊर्जा की समरस अन्योनाश्रिता में ही सतत् गतिशीलता, सतत् क्रियाशीलता है। देवाधिदेव महादेव शिव ने हिमवान् पुत्री पार्वती का पाणिग्रहण किया। काम भस्मक शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित किया, रति का मनः लोक प्रफुल्लित हुआ हिमालय के उच्च मनोरम शिखर कैलाश पर महेश्वर शिव परम शक्ति पार्वती के साथ रमण करने लगे, युगनद्ध हुए। स्थूल रूप में भी, सूक्ष्म रूप में भी पूर्णाप्रकृति और पूर्ण पुरुष तदाकार हुए, एकाकार हुये। सम्पूर्ण जगत् शिवशक्त्यात्मक हुआ-

अहर्निशं नुस्मृत्य पार्वतीला कारणम्। 

तपः क्लेशं महादेवस्तस्यां प्रीतिकरोऽभवत् ॥

सद्वाक्य श्रवणे करणी लोचनं रूपदर्शने। 

तन्मनोरञ्जने चेतः सन्नियोज्य निरन्तरम्॥

स्वामी विजयानंद


 

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