Published By:धर्म पुराण डेस्क

आदि गुरु शंकराचार्य रचित शिवाष्टकम्

तस्मै नम: परमकारणकारणाय दिप्तोज्ज्वलज्ज्वलित पिङ्गललोचनाय।

नागेन्द्र हारकृतकुण्डलभूषणाय ब्रह्मेन्द्र विष्णु वरदाय नमः: शिवाय॥1॥

कारों के भी परम कारण, दीप्त उज्जवल एवं पिङ्गल नेत्रों वाले, सर्पों के हार-कुंडल आदि से विभूषित, तथा ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्रादि को भी वर देने वाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

श्रीमत् प्रसन्नशशिपन्नगभूषणाय शैलेन्द्र जावदन चुम्बित लोचनाय।

कैलासमन्दरमहेन्द्रनिकेतनाय लोकत्रयार्तिहरणाय नम: शिवाय॥2॥

निर्मल चन्द्र कला तथा सर्पों द्वारा पोषित एवं शोभायमान, शैलेन्द्र के मुख से चुम्बित लोचनों वाले, कैलाश एवं महेन्द्रगिरि निवासी तथा जो त्रिलोक के दुखों को हरने वाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

पद्मावदातमणिकुण्डलगोवृषाय कृष्णागरुप्रचुरचन्दनचर्चिताय।

भस्मानुषक्तविकचोत्पलमल्लिकाय नीलाब्जकण्ठसदृशाय नम: शिवाय॥3॥

स्वच्छ पद्मराग मणि के कुण्डली से किरणों की वर्षा करने वाले, अगर तुम चन्दन से चर्चा तथा भस्म से विभूषित, प्रफुल्लित कमल और जूही से सुशोभित, नीलकमल सदृश कण्ठ वाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

लम्बवत पिङ्गल जटा मुकुटोत्कटाय दंष्ट्रा कराल विकटोत्कट भैरवाय।

व्याघ्राजिनाम्बरधराय मनोहराय त्रिलोकनाथनमिताय नम: शिवाय॥4॥

पिङ्गलवर्ण जटाओं के मुकुट धारण करने से जो उत्कट जान पड़ते वाले, तीक्ष्ण दाढ़ों के कारण अति विकट और भयानक प्रतीत होने वाले, व्याघ्रचर्म धारण करने वाले अति मनोहर, तथा तीनों लोकों के अधीश्वर को भी अपने चरणों में झुकाने वाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

दक्षप्रजापतिमहाखनाशनाय क्षिप्रं महात्रिपुरदानवघातनाय।

ब्रह्मोर्जितोर्ध्वगक्रोटिनिकृंतनाय योगाय योगनमिताय नम: शिवाय॥5॥

दक्ष प्रजापति के यज्ञ को विध्वंस करने वाले, अत्यंत विकट त्रिपुरासुर दानव का वध करने वाले तथा ब्रह्मा के दर्पयुक्त ऊर्ध्वमुख (पञ्चम सिर) को काट देने वाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

संसारसृष्टिघटनापरिवर्तनाय रक्ष: पिशाचगणसिद्धसमाकुलाय।

सिद्धोरगग्रहगणेन्द्रनिषेविताय शार्दूलचर्मवसनाय नम: शिवाय॥6॥

संसार में घटित होने वाले समस्त घटनाओं में परिवर्तन करने में सक्षम, राक्षस, पिशाच से ले कर सिद्धों द्वारा घिरे रहने वाले, सिद्ध, सर्प, ग्रह-गण एवं इन्द्रादि से सेवित, तथा बाघम्बर धारण करने वाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

भस्माङ्गरागकृतरूपमनोहराय सौम्यावदातवनमाश्रितमाश्रिताय।

गौरीकटाक्षनयनार्धनिरीक्षणाय गोक्षीरधारधवलाय नम: शिवाय॥7॥

जिन्होंने भस्म लेप द्वारा श्रृंगार किया हुआ है, जो अति शांत एवं सुन्दर वन का आश्रय करने वालों (ऋषि, भक्तों) के आश्रित (वश में) हैं, जिनका श्री पार्वतीजी कटाक्ष नेत्रों द्वारा निरीक्षण करती हैं, तथा जिनका गोदुग्ध की धारा के समान श्वेत वर्ण है, उन शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

आदित्य सोम वरुणानिलसेविताय यज्ञाग्निहोत्रवरधूमनिकेतनाय।

ऋक् सामवेद मुनिभि: स्तुति युताय पापाय गोपनमिताय नम: शिवाय॥8॥

सूर्य, चन्द्र, वरुण और पवन द्वारा सेवित, यज्ञ एवं अग्निहोत्र धूम निवासी, ऋक-सामादि, वेद तथा मुनिजन द्वारा स्तुत्य, नन्दीश्वर द्वारा पूजित, गौओं का पालन करने वाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

 

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