ॐ का यह एकाक्षरी-मन्त्र अप्रतिम है। यह जितना लघु रूप प्रतीत होता है, उतना ही अधिक प्रभावशाली हैं।
ॐ परमात्मा (ईश्वर) सर्वश्रेष्ठ, सर्वाधिक क्षमता सम्पन्न एक शक्तिशाली नाम है, इसे 'प्रणव' भी कहते हैं यह एक ऐसा बीज मंत्र हूँ जो अखिल ब्रह्माण्ड को स्वयं में समाहित किये हैं।
'अवे' धातु से निर्मित यह शब्द (ॐ) अनेकार्थ वाचक है इसके अर्थगत प्रभाव इस प्रकार कहे गये है- रक्षण, गति, व्याति, प्रीति, तृप्ति, अवगत, प्रवेश, श्रवण, स्वाम्यर्थ, याचन, इच्छा, दीप्ति, (अंत में स्वदर्शन), आलिंगन, हिंसा, दान, भोग, और वृद्धि। इन उन्नीस विषयों को अपने में सम्मिलित वाला, यह एकमात्र मंत्र है। स्पष्ट है कि इसका जप साधक को कितने ऊर्जा क्षमता और प्रदान करता होगा।
'अपनी व्यापकता के कारण ॐ मंत्र समस्त मंत्रों का शिरोमणि है। इसके अभाव में प्रत्येक मंत्र क्षीण माना जाता है और किसी भी मंत्र में इसे जोड़ देने से उसका 'प्रणव' सहित पाठ करने से) उसकी प्रभाव क्षमता बढ़ जाती है। की उक्ति 'मंत्राणां प्रणव सेतु का आशय किया जा सकता है। छान्दोग्य उपनिषद में लिखा है समस्त स्थावर जंगम प्राणियों और पदार्थों का रस (कारण) पृथ्वी है। पृथ्वी का रस जल है।
जल का रस औषधियाँ और औषधियों का रस (कारण) मानव-देह है मानव देह का रस वाणी, वाणी का सार ऋचा, ऋचा का सार सोम और सोम का सार उदगीथ अर्थात ओंकार है।
वैदिक-वांग्मय में समस्त कर्मकाण्डों का प्रारम्भ और उनकी व्याख्या - व्यवस्था 'ॐ' से प्रभावित है ॐ बहालीनता का बोधक, समाधि एवं मुक्ति की अवस्था में पहुंचाने में समर्थ और अनेक वैज्ञानिक चमत्कारों का जनक हैं। 'ॐ' की साधना, उपासना, चिन्तन, मनन और जप-सब कुछ कल्याणकारी है।
'ॐ' का जप करने से देव-दर्शन, आध्यात्मिक चेतना और ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति होती हैं। संसारी-जनों की लौकिक इच्छापूर्ति में भी यह मन्त्र परम सहायक होता हैं इसका साधना विधान बहुत ही सरल है केवल अडिग-आस्था, बस ! अपने इष्ट-देवता का चित्र कहीं पवित्र स्थान में लगाकर, उसकी धूप-दीप से पूजा करने के उपरान्त स्थिर मन से, पूर्ण तन्मयता के साथ माला पर 'ॐ' का जप करना चाहिए।
दैनिक-चर्या के रूप में यदि पूजा के समय, इस मन्त्र का 11 या 21 माला नित्य फेर ली जाय, तो थोड़े ही दिनों बाद साधक को इसके प्रभाव का अनुभव हो जाता हैं।
पंडित राज बिहारी धवन
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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