 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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भगवान शिव के भयंकर और उग्र अवतारों में से एक, श्री कालभैरव, कलियुग के जागृत देवता माने जाते हैं। काल का अर्थ है समय और भैरव का अर्थ है रक्षक, इसलिए कालभैरव को समय का रक्षक भी कहा जाता है।
उत्पत्ति:
स्कंद पुराण के अनुसार, ब्रह्मा जी के अहंकार को दूर करने के लिए भगवान शिव ने अपने क्रोध से भैरव को उत्पन्न किया था।
स्वरूप:
कालभैरव का स्वरूप भयंकर और विकराल होता है। वे कुत्ते की सवारी करते हैं, उनके हाथ में कपाल और त्रिशूल होता है, और उनके गले में नरमुंडों की माला होती है।
महत्व:
कालभैरव को भगवान शिव का पूर्ण रूप माना जाता है। वे तंत्र और मंत्र के देवता भी हैं।
पूजा:
कालभैरव की पूजा करने से भक्तों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं, जैसे कि:
शत्रुओं पर विजय,
नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा,
भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति,
रोगों से मुक्ति,
मनोकामना पूर्ति,
कालभैरवाष्टमी:
मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालभैरवाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भैरव की पूजा के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
मंत्र:
कालभैरव के अनेक मंत्र हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकालभैरवाय नम:,
ॐ क्रीं भैरवाय नम:,
ॐ नमः शिवाय वीरभद्राय भैरवाय कपाली महाकालाय त्रिनेत्राय नम:
निष्कर्ष:
कालभैरव शक्तिशाली देवता हैं जो अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। यदि आप उनकी कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो उनकी पूजा करें और उनके मंत्रों का जप करें।
अतिरिक्त जानकारी:
भारत में अनेक स्थानों पर भैरव के मंदिर हैं, जिनमें से कुछ प्रसिद्ध मंदिर इस प्रकार हैं:
काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी।
काल भैरव मंदिर, उज्जैन।
बटुक भैरव मंदिर, दिल्ली।
भैरवनाथ मंदिर, कन्नौज।
भैरव को प्रसन्न करने के लिए, आप उन्हें उड़द की दाल, काली मिर्च, और शराब चढ़ा सकते हैं।
भैरव की पूजा करते समय, आपको पवित्रता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
नोट:
यह लेख केवल जानकारी के लिए है। भैरव की पूजा करने से पहले किसी विद्वान से सलाह लेना उचित होगा।
 
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