 Published By:दिनेश मालवीय
 Published By:दिनेश मालवीय
					 
					
                    इसमें भगवान् श्रीकृष्ण के महाकाल श्रीकृष्ण का उज्जैन से सिर्फ इतना ही सम्बन्ध नहीं है. बहुत से लोगों को यह जानकार आश्चर्य होगा, कि उज्जैन श्रीकृष्ण की ससुराल भी है. आठ पीढ़ी पहले उनके एक पूर्वज भी यहीं रहते थे, जिनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने महाकाल का भव्य मंदिर प्रकट किया. उनका नाम श्रीकर था. उन्होंने भगवान् श्रीमहाकाल की इतनी निष्ठा से आराधना कि, कि भगान उसे प्रसन्न हो गये और महाकाल मंदिर भी प्रकट किया. नगरी उज्जैन से गहरे सम्बन्ध के विषय में हम विस्तार से बताएँगे. श्रीकृष्ण ने मालवा की तीन बार यात्रा की थी.
भगवान श्रीकृष्ण के उज्जैन से सम्बन्ध को लेकर अधिकतर लोग सिर्फ यही जानते हैं, कि उन्होंने यहाँ अंकपात क्षेत्र में महर्षि सांदीपनी के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की थी. वह कंस का वध करने के बाद शिक्षा प्राप्त करने उज्जैन आये. उन्होंने बारह वर्ष की आयु में 64 दिन तक अपने भाई बलराम के साथ विद्या ग्रहण की. इसके अलावा कोई जानकारी बहुत कम लोगों को ज्ञात है. पुराणों के अनुसार इतनी छोटी-सी अवधि में उन्होंने 14 विद्याओं, चौसठ कलाओं और वेद-वेदांगों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था. उज्जैन के अंकपत क्षेत्र में यह आश्रम आज भी स्थित है, जिसे वर्तमान में बहुत सुंदर स्वरूप दिया गया है. यहीं उनकी मित्रता अपने रूममेट निर्धन ब्राह्मणपुत्र सुदामा से हुयी, जिसका उदाहरण आज भी दिया जाता है. इस आश्रम में निवास से अनेक कथाएं जुड़ी हैं, जिनका पुराणों में विस्तार से उल्लेख है.
श्रीकृष्ण की दूसरी मालवा यात्रा उज्जैन में मित्रविन्दा के स्वयंवर में भाग लेने के लिए हुई. मित्रविन्दा उनकी पाँचवीं रानी थीं. इस स्वयंबर में उन्होंने अपने पराक्रम से मित्रविन्दा को जीता था. श्रीकृष्ण के साथ उनका विवाह उनके भाइयों विन्द और अनुविन्द की इच्छा के विरुद्ध हुआ था. इसीलिए महाभारत युद्ध में दोनों भाई कौरवों की ओर से लडे थे. ये दोनों भाई दुर्योधन के मीर थे और अपनी परम सुंदरी बहन का विवाह उसीसे करना चाहते थे. उन्होंने स्वयंवर का आयोजन तो किया, लेकिन मित्रविन्दा को दुर्योधन के गले में वरमाला डालने के लिए दबाव बनाया. श्रीकृष्ण को जब यह बात पता चली, तो उन्होंने उसके मन की बात का पता लगवाया. उन्हें पता चला, कि वह श्रीकृष्ण को पति बनाना चाहती है. श्रीकृश्न्ने उसका बलपूर्वक अपहरण किया और उसके दोनों भाइयों को युद्ध में पराजित कर दिया.
महाभारत युद्ध में जिस प्रसिद्द अश्वत्थामा हाथी का विवरण है उसे बिन्द और अनुबिन्द उज्जैन से ही ले गये थे. इसी हाथी को भीमसेन ने मार डाला था और धर्मराज युधिष्ठिर ने जीवन में पहला और अंतिम झूठ बोला था. उन्होंने कहा घोषणा की कि अश्वत्थामा मारा गया, लेकिन इस बात को बहुत धीमे से कहा कि वह हाथी था. ये दोनों भाई महाभारत युद्ध में महाबलशाली भीमसेन के हाथों मारे गये. श्रीकृष्ण की तीसरी मालवा यात्रा तब हुयी, जब वह रुक्मणि को लेने जाते समय वह उस क्षेत्र से गुजरे, जो वर्तमान में धार जिले के अंतर्गत आता है. इसके अलावा, श्रीकृष्ण का उज्जैन से एक और सम्बन्ध है. उनके पूरे यादव वंश की कुलदेवी हरसिद्धि हैं, जिनका प्राचीन मंदिर उज्जैन में स्थित है. गुजरात के हरसद गाँव में उनका मूल स्थान है. सम्राट विक्रमादित्य ने उनकी आराधना कर उनसे उज्जैन आने का अनुरोध किया. हरसिद्धि देवी ने कहा, कि मैं अपना स्थान स्थायी रूप से नहीं छोड़ सकती, लेकिन मैं दिन में हरसद में रहूंगी और रात में उज्जैन में. माँ हरसिद्धि सम्राट विक्रमादित्य की भी आराध्य देवी थीं. पुराणों के अनुसार सती का जला हुआ शव लेकर जब भगवान शिव जा रहे थे तो शव की कोहनी इस स्थान पर गिरी और यह शक्ति पीठ बन गया.
सबसे बड़ी बात तो यह कि भगवान श्रीकृष्ण की आठ पीढ़ी पहले के एक पूर्वज उज्जैन में ही हुए थे, जिनका नाम श्रीकर था. वह अपनी विधवा माँ के साथ वहाँ रहते थे. जब वह पाँच वर्ष के थे तो राजा चंद्रसेन और अपनी माता को शिव-पूजा से प्रेरित होकर वह शिव की भक्ति करने लगे. उसकी मंत्र और विधानरहित लेकिन निश्छल भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने महाकाल का दिव्य और भव्य मंदिर प्रकट किया था. इसके बाद पवनपुत्र हनुमान ने इस बालक को वरदान दिया कि वह जीवन में सब सुखभोग करके आठ पीढ़ी बाद यादव वंश श्रीकर गोप के रूप में जन्म लेगा. उसके पुत्र नन्द के घर भगवान श्रीहरि श्रीकृष्ण के रूप में आएँगे. यह कुल इसके कारण प्रसिद्ध और गौरान्वित होगा. इस तरह हम देखते हैं, कि भगवान् श्रीकृष्ण का उज्जैन से बहुत गहरा सम्बन्ध है.
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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