राधा-कृष्ण की जोड़ी में बांसुरी भी प्रेम का प्रतीक बन जाती है। जब राधा कृष्ण एक पेड़ पर बने हिंडोला पर झूल रहे होते हैं, तो हर जगह मनमोहन की बांसुरी की आवाज सुनाई देती है।
बांसुरी की मधुर ध्वनि गोपियों, गायों, चरवाहों को मंत्रमुग्ध कर देती है। बांसुरी की ध्वनि ब्रह्मांड में विलीन हो जाती है। जिससे मधुर सरगम निकलता है और वातावरण दिव्य हो जाता है। यदि भगवान कृष्ण के एक हाथ में सुदर्शन चक्र है, तो वही हाथ मधुर बांसुरी भी बजा सकता है। सुदर्शन विनाश का प्रतीक है जबकि बांसुरी संगीत का निर्माता है।
बांसुरी अंदर से खोखली होती है। यह दर्शाता है कि कुछ भी ध्यान में नहीं रखा जाना चाहिए। मौखिक या कटु वचनों का उच्चारण कर अपने मन में बुरे विचार न रखें। जो बांसुरी के समान बनते हैं। भगवान उन लोगों को मानता है।
बांसुरी अपने आप नहीं बजती। इसे बजाने के लिए किसी मालिक या कलाकार की जरूरत होती है। इसलिए हमें वही बोलना चाहिए जो हमारा ईश्वर हमें बुलवाता है। कुछ भी कहने से पहले सात बार सोचना चाहिए। प्रभु की इच्छा के अनुसार बोलना चाहिए।
सुनने वाले को बांसुरी मधुर लगती है इस तरह हमें भी ऐसा बोलना चाहिए जो आकर्षक लगे।
बांसुरी की आवाज अनंत से चलती है। बांसुरी के गुणों को अपनाकर जीवन को धन्य बनाया जा सकता है।
बांसुरी के अन्य नामों में बंसी, बांसुरी, मुरली, मोरली, वेणु शामिल हैं। बांसुरी को हमारे देश के महान संगीतकारों ने लोकप्रिय बनाया है। जिसमें रोनू, मजूमदार, हरिप्रसाद चौरसिया आदि का विचार किया जा सकता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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