इस वर्ष “गीता जयंती” 14 दिसंबर को पड़ रही है. इस बार इस अवसर पर हरियाणा में अंतर्राष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. इस आयोजन को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप देना सर्वथा उचित है. इसके अनेक कारण हैं. सनातन धर्म में जितने ग्रंथ हैं, उतने ग्रंथ संसार के किसी धर्म में नहीं हैं. यद्यपि वेद सनातन धर्म का मूल आधार है, लेकिन वेदों के सार को समझाने के लिए उपनिषद और उपनिषदों का सार समझाने के लिए श्रीमद्भागवतगीता है. यह सनातान धर्म के “प्रस्थानत्रयी” में शामिल है, जिसमें दो अन्य ग्रंथ “ब्रह्मसूत्र,“उपनिषद” हैं. यह एक ऐसा ग्रंथ है, जिसकी ख्याति सारे संसार में है.
अध्यात्म के इस सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ का संसार की अनेक भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है. पश्चिम के बड़े-बड़े दार्शनिकों और यहाँ तक कि मुस्लिम विद्वानों ने भी इसकी श्रेष्ठता को स्वीकारा है. बुखारा के राजकुमार अल बरूनी ने कैद में रहते हुए संस्कृत सीखी और श्रीमदभगवतगीता को पढ़कर इसकी बहुत तारीफ़ की. अकबर के दरबार में रहने वाले बहुत बड़े विद्वान अबुल पैजी ने इसका फारसी में अनुवाद किया. शारजहाँ के बेटे दाराशिकोह ने इस ग्रंथ की प्रस्तावना लिखी, जिसका फारसी में नाम सारे अकबर” रखा गया.
जर्मन विद्वान कॉल्टर शू ब्रिंग ने गीता की बहुत प्रशंसा की. जर्मनी के महान तत्वेत्ता दार्शनिक कांट और उनके प्रशंसक शोपेनहोवार तथा महान दार्शनिक हेगेल ने भी गीता की तारीफ़ में बहुत बहुमूल्य बातें कहीं. जर्मन के ही विद्वान हम्बोल्ट ने गीता को बहुत मनोयोग से पढ़ा. अमेरिकन लेखक राल्फ काल्डो एमरसन गीता के बहुत बड़े प्रशंसक थे. आयरिश कवि जी. डब्ल्यू रसल, यीट्स, फ्रेजर, टीएस इलियट, फर्क्युहर और भारत के गवर्नर जनरल रहे वारेन हेस्टिंग्स तक ने गीता को जीवन का सार बताया.
भारत में गीता की इतनी अधिक टीकाएँ और भाष्य लिखे गये, कि जिनकी गिनती करना मुश्किल है. यह है ही ऐसा ग्रंथ, कि जिसको पढ़ने के बाद कोई इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता. सात सौ श्लोक और अट्ठारह अध्याय के इस छोटे से ग्रंथ में सम्पूर्ण जीवन का सार निहित है. श्रीमद्भागवतगीता में इसकी प्रसिद्धि के विषयमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है, कि पश्चिम के देशों में ईसाई धर्म प्रचलित है. मुस्लिम लोग क़ुरान शरीफ को ही मानते हैं. श्रीमदभगवतगीता का प्रचार इसलिए नहीं हुआ, कि इसके अनुयायी विदेशों में थे. न ही यह किसी देश का राष्ट्रीय या राजकीय ग्रंथ है. भारत तक में ऐसा नहीं है. इसका प्रचार-प्रसार अपनी गुणवत्ता के बल पर हुआ. ऊपर पश्चिम के जिन विद्वानों के नाम दिये गये हैं, वे कोई मामूली लोग नहीं थे. उन्होंने अपना पूरा जीवन आध्यात्मिक खोज और अनुसंधान में लगाया था.
भारत में भी महात्मा गांधी, विनोबा भावे, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, गोपालकृष्ण गोखले, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविन्द, आदिशंकराचार्य जैसी दिव्य विभूतियों ने अपने जीवन और व्यक्तित्व के विकास में इस ग्रंथ के महत्त्व को स्वयं स्वीकार किया है. महात्मा गांधी तो श्रीमद्भागवतगीता को जीवन का संदर्भ ग्रंथ कहते थे. इनमें से अनेक ने गीताजी की सुंदर टीकाएँ और भाष्य लिखे हैं. इनमें महर्षि अरविन्द घोष, महात्मा गांधी, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, आदिशंकराचार्य के भाष्य विशेष रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं. स्वामी विवेकानंद ने गीता पर कोई स्वतंत्र भाष्य नहीं लिखा,लेकिन उन्होंने विभिन्न अवसरों पर इस ग्रंथ के बारे में जो बोला, वह पुस्तक के रूप में उपलब्ध है. महात्मा गांधी तो इसे अपने जीवन का “संदर्भ ग्रंथ” मानते थे.
लेकिन यह बहुत विचित्र बात है, कि जिस धरती पर श्रीमद्भागवतगीता की उत्पत्ति हुयी, वहाँ अधिकतर लोग इसे नहीं पढ़ते. इसके पीछे भी एक ठोस कारण है. न जाने कैसे अज्ञानवश अनेक लोगों ने इसे वैराग्य के ग्रंथ के रूप में प्रचारित कर दिया. यह धरना बन गयी, कि इसे पढ़कर व्यक्ति संसार और पारिवार से विमुख होकर वैरागी हो जाता है. इससे बड़ा झूठ कोई हो ही नहीं सकता. जिस ग्रंथ का उद्देश्य ही अपनर कर्म यानी कर्तव्य से विमुख हुए अर्जुन को कर्म में लगाना था, उसे वैराग्य का ग्रंथ कहना सर्वथा गलत है. श्रीकृष्ण ने इस उपदेश से अपने कर्तव्य के प्रति भ्रमित अर्जुन को उसके कर्तव्य का बोध कराया. गीता कर्ममय जीवन का संदेश देती है. लेकिन सिर्फ काम करना कर्म नहीं है. कर्म के गूढ़ रहस्यों को इस ग्रंथ को पढ़कर ही समझा जा सकता है. इस विषय को समझने में लोकमान्य तिलक की “गीता रहस्य” और महात्मा गांधी की “अनासक्त योग” बहुत उपयोगी हैं.
यह एक मात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसमें संसार की सारी समस्याओं और विकृतियों के समाधान के मंत्र निहित हैं. कम से कम हर हिन्दू को दिन भर में कुछ समय निकाल कर गीता अवश्य पढ़नी चाहिए. साथ ही बच्चों को भी बचपन से गीता के अध्ययन की ओर प्रेरित करना चाहिए. इससे जीवन में कभी अवसाद या निराशा नहीं होगी और कठिन से कठिन समय में धैर्य धारण करने का संस्कार विकसित होगा. जो लोग गीता को वैराग्य का ग्रंथ समझते हैं, वे बहुत अज्ञान में जी रहे हैं. यह कर्म और वीरता का ग्रंथ है.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024