 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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मौन, एक अत्यधिक महत्वपूर्ण और आध्यात्मिक अभ्यास है जो हमें आंतरिक शक्तियों की संचय करने में मदद करता है और हमारे जीवन को सार्थक बनाता है। "मौन" शब्द की संधि विच्छेद से "म+उ+न" बनता है, जिसका अर्थ होता है - मन को उत्कृष्ट न करने देना। इससे स्पष्ट होता है कि मौन निरंतर मन की ओर दिशा लेने में मदद करता है और हमें आत्मा के स्वरूप में लीन करने में सहायक होता है।
वाणी के संयम के लिए मौन की आवश्यकता ..
मनुष्य की वाणी विशेष रूप से उसकी शक्तियों को खपत कर सकती है, जैसे कि अन्य इन्द्रियों के उपयोग से होता है। मनुष्य की शक्तियों का विकास करने के लिए मौन आवश्यक होता है क्योंकि मौन द्वारा हम अपनी शक्तियों को संचित कर सकते हैं और उन्हें सही दिशा में प्रयोग कर सकते हैं।
नौ गुण जो मौन से प्राप्त होते हैं ..
मौन अचानक लाभ ही नहीं प्रदान करता, बल्कि नौ गुण भी हमें प्राप्त होते हैं:
* किसी की निंदा नहीं होती।
* असत्य बोलने से बचाता है।
* किसी से वैर नहीं होता।
* किसी से क्षमा मांगने की आवश्यकता नहीं होती।
* बाद में पछताना नहीं पड़ता।
* समय की बेकारी नहीं होती।
* किसी कार्य की बंधन नहीं होती।
* अपने वास्तविक ज्ञान की रक्षा होती है, और अपना अज्ञान मिटाता है।
* आंतरिक शांति बनी रहती है।
मौन का महत्व और आदर्श महापुरुषों का उदाहरण ..
मौन का महत्व विशेषकर आध्यात्मिक सफलता प्राप्त करने में है। प्रमुख संतों ने भी मौन का पालन किया है और उनके आदर्श से ही हमें इसकी महत्वपूर्णता प्राप्त होती है।
संक्षिप्त में ..
मौन, आंतरिक शक्तियों का संचय करने में महत्वपूर्ण रूप से मदद करता है। यह वाणी की शक्ति को संयमित करके हमें आत्म-विकास में मदद करता है और आंतरिक शांति की प्राप्ति कराता है। इसे पालन करके हम नौ गुण प्राप्त कर सकते हैं, जो हमारे जीवन को समृद्धि और सार्थकता से भर देते हैं।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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