Published By:धर्म पुराण डेस्क

सीता: अमूर्त देवी का सर्वोत्तम प्रतीक

सीता, वेदों और पुराणों में उदाहरणीय दैवी पुरुष स्वरूप, श्री रामचन्द्रजी की सहारा देने वाली धर्मपत्नी, एवं सर्वगुण सम्पन्न अद्वितीय देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इस लेख में, हम सीता देवी के अद्वितीयता और उनके चरित्र की अध्ययन के माध्यम से उनकी महिमा को और विस्तार से जानेंगे।

सीता का अर्थ:

सीता शब्द का वाक्य सर्वलोकेश्वरी, जो सृष्टि, स्थिति, और संहार की शक्ति है, से सम्बंधित है। इसका प्रथम व्याख्यान 'सूयते इति सीता' अर्थात् जो सभी जगत को उत्पन्न करती है, उसका नाम 'सीता' है।

सीता के गुण:

सीता को साकार रूप में विशेष गुण धर्मों की धारिणी माना गया है। उन्हें लोकप्रियता प्राप्त है, क्योंकि वे आपत्तियों, परीक्षणों, और कठिनाइयों के बावजूद भी पतिव्रता रहती हैं।

ग्रंथों के साक्षात्कार:

पुराणों और ग्रंथों में सीता का स्वरूप अवतार पुरुष के रूप में उजागर होता है, जो समस्त लोकों की रक्षा करते हैं और धरती पर धर्म की स्थापना में सहायक होते हैं। उनकी सदैव संगीतमय वाणी और पतिव्रता स्वभाव ने उन्हें एक आदर्श पतिव्रता के रूप में प्रस्तुत किया है।

सीता मंत्र:

श्री सीताजी का नामार्थ "श्रीमत्" या "शोभन" है, जिससे स्पष्ट होता है कि वे समृद्धि और कान्हा पूर्ण लक्ष्मी हैं। सीता मंत्र भी एक महत्वपूर्ण मंत्र है जो श्री सीता जी की उपासना में प्रयुक्त होता है और उनके आशीर्वाद से भक्त श्री सीता जी के प्रेम में रात हो जाता है।

श्री सीता जी के चरित्र:

श्री सीता जी ने अपने जीवन में विभिन्न कठिनाइयों का सामना किया, परंतु उन्होंने हमेशा धर्म, पतिव्रता, और करुणा के पथ पर चलने का निर्णय लिया। उनका प्रेम पति श्री रामचन्द्रजी के प्रति अत्यधिक और अद्वितीय था।

इस रूप में, सीता को अनवरत भक्ति और पतिव्रता शक्ति का प्रतीक माना जाता है। उनका चरित्र एक आदर्श स्त्री और भक्त के लिए प्रेरणास्रोत है, जो उन्हें धर्म पथ पर स्थिर रहने के लिए प्रेरित करता है। 

श्री सीता जी के पावन चरणों की शरण लेकर ही व्यक्ति अपने जीवन को मार्गदर्शित कर सकता है और सच्चे धर्म का अनुसरण करके सफलता प्राप्त कर सकता है।

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