Published By:धर्म पुराण डेस्क

नवरात्रि का छठा दिन, मां कात्यायनी का स्वरूप, पूजा विधि और स्तुति मंत्र

नवदुर्गा के छठे दिन माँ कात्यायनी के स्वरूप की पूजा की जाती है. कात्यायन ऋषि के घर माता कात्यायनी की पूजा की जाती थी. इसलिए ये माँ कात्यायनी कहलाती हैं. उनकी चार भुजाओं में अस्त्र, एक शस्त्र और एक कमल का फूल है. इनका वाहन सिंह है. ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं.

गोपियों ने उन्हें प्राप्त करने के लिए कृष्ण की पूजा की थी. वैवाहिक समस्याओं के लिए माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है. इनकी कृपा से योग्य और मनचाहा पति प्राप्त होता है. ज्योतिष शास्त्र में इनका बृहस्पति से संबंध बताया गया है.

कृपा प्राप्त होने से कौन-सी मनोकामना होगी पूर्ण?

कन्याओं के शीघ्र विवाह के लिए माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है. पसंदीदा वर और प्रेम विवाह के लिए भी इनकी पूजा की जाती है. दांपत्य जीवन के लिए भी इनकी पूजा फलदायी होती है. यदि कुण्डली में विवाह योग न हो तब भी इनकी पूजा करने से विवाह योग बन जाता है.

मां को लगाये शहद का भोग-

नवरात्रि के छठे दिन मां को शहद का भोग लगाया जाता है. देवी को शहद चढ़ाने के बाद उसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है. जिससे आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी.

माँ कात्यायनी पूजा अनुष्ठान-

माँ कात्यायनी की पूजा पीले या लाल वस्त्र पहनकर करनी चाहिए. उन्हें एक पीला फूल और एक पीला वस्त्र अर्पित करें. पूजा के समय शहद अर्पित करना बहुत शुभ होता है. माता को सुगंधित पुष्प चढ़ाने से शीघ्र विवाह के योग बन जाते हैं. साथ ही प्रेम संबंधित परेशानी भी दूर होने लग जाती हैं.

शीघ्र विवाह का उपाय-

गोधूलि के समय पीला वस्त्र धारण करें. मां के सामने दीपक जलाएं और उन्हें पीले फूल अर्पित करें. इसके बाद तीन साबुत हल्दी चड़ाए. फिर माता कात्यायनी के मंत्र का जाप करें. पूजा के बाद हल्दी को अपने पास रख लें.

मंत्र है-

"कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी।

नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।"

माँ कात्यायनी की कथा-

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक वन में कत नाम के एक ऋषि थे. उनका कात्या नाम का एक पुत्र था. उसके बाद कात्या गोत्र में महर्षि कात्यायन का जन्म हुआ. उनकी कोई संतान नहीं थी. माँ भगवती को अपनी पुत्री के रूप में पाने की इच्छा से उन्होंने देवी पराम्बा की घोर तपस्या की.

महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया. कुछ समय बाद राक्षस महिषासुर का अत्याचार बढ़ने लगा. तब देवी के तेज से एक कन्या उत्पन्न हुई और उसका वध कर दिया. कात्यायनी गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ा.


 

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