Published By:दिनेश मालवीय

स्कंद पुराण संक्षेप, बुद्धावतार  का  विस्तार से वर्णन -दिनेश मालवीय

पुराणों की श्रृंखला में ‘स्कंद पुराण’ का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है. शिवजी के पुत्र कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है. यह शैव सम्प्रदाय का पुराण है. पुराणों में इसका आकार सबसे बड़ा है.  इसमें छह खण्ड हैं- महेश्वर खण्ड, वैष्णव खण्ड, ब्रह्म खण्ड, काशी खण्ड, अवंतिका खण्ड और रेवा खण्ड. इसमें में 81 हज़ार श्लोक हैं. इसका मुख्य विषय भारत के शैव और वैष्णव तीर्थो के महात्म्य का वर्णन करना है. इनके सम्बन्ध में पौराणिक कथाएं भी दी गयी हैं. अध्यात्म विषयक प्रकरण भी हैं. शिव के साथ ही इसमें विष्णु और राम की महिमा का सुंदर विवेचन किया गया है. “रामचरित मानस” पर इस पुराण बहुत प्रभाव है.

महेश्वर खण्ड

इस खण्ड में दक्ष-यज्ञ, सती दाह, देवताओं और शिवगणों में युद्ध, दक्ष-यज्ञ विध्वंस, लिंग प्रतिष्ठा, रावणोपाख्यान, समुद्र मंथन, लक्ष्मी की उत्पत्ति, अमृत विभाजन, शिवलिंग महात्म्य, राशि-नक्षत्र वर्णन, दान भेद, सुतनु-नारद संवाद, शिव-पूजन का महत्त्व, शिव तीर्थों सहित शक्ति पीठ, अरुणाचल स्थान का महत्त्व आदि का वर्णन है. इसमें विष्णु को शिव का ही रूप बताया गया है. इस खण्ड में अनेक छोटे-बड़े तीर्थों का वर्णन करते हुए शिव महिमा गयी गयी है. इसके अलावा, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इंद्र, गन्धर्व, ऋषि-मुनि, दानव-दैत्य आदि की सुंदर कथाएं इसमें दी गयी हैं. इसके “कुमारिका खण्ड” में एक ऐसी कथा दी गयी है, जिसमें सम्प्रदायों के नाम कर संकीर्ण विचार रखने वालों की बहुत भर्त्सना की गयी है. अधिकतर पुराणों में ‘बुद्धावतार’ का नाम देने के अलावा उनकी कोई भी चर्चा नहीं की गयी है, लेकिन ‘स्कंद पुराण’ में उनका ‘माया-मोह’ के नाम से विस्तृत वर्णन मिलता है. कलियुग प्रसंग में बुद्ध का विस्तार से वर्णन है और उन्हें विष्णु का अव्तार्र माना गया है. उनके माध्यम से अहिंसा और सेवा भाव का प्रसार किया गया है.

वैष्णव खण्ड

वैष्णव खण्ड में वेंकटाचल महात्म्य, वराह मन्त्र उपासना विधि, रामानुजाचार्य, भाद्र्मती ब्राहमण की महिमा, ब्रह्मा की प्रार्थना पर विष्णु का आविर्भाव, रथ निर्माण प्रकरण, जगन्नाथपुरी का रथ महोत्सव, बद्रिकाश्रम तीर्थ की महिमा, कार्तिक मास के व्रतों की महिमा का वर्णन, स्नान महात्म्य, ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का स्वरूप और कर्मयोग आदि का निरूपण है. इस खण्ड में गंगा, यमुना और सरस्वती खण्ड बहुत पवित्र और उत्कृष्ट हैं. इसमें तिरुपति बालाजी के प्रादुर्भाव की कथा कही गयी है. वहाँ की यात्रा का महत्त्व भी बताया गया है.  आकाशगंगा तीर्थ का वर्णन करते हुए पुराणकार ने विष्णु और रामानुजाचार्य की भेंट की बात कही है. रामानुजाचार्य ही वैष्णव स्म्परादाय के संस्थापक थे. सारे भारत में श्रीराम की पूजा के प्रसार का श्रेय इन्हें ही जाता है.

ब्रह्म खण्ड

ब्रह्म खण्ड में रामेश्वर क्षेत्र के सेतु और भगवान राम द्वारा बालुकामय शिवलिंग की स्थापना की महिमा बतायी गयी है. इस क्षेत्र के अन्य चौबीस तीर्थों के बारे में भी बताया गया है, जिनमें चक्र तीर्थ, सीता सरोवर तीर्थ, ब्रह्म कुण्ड, हनुमत्कुंड, अगस्त्य तीर्थ, राम तीर्थ, लक्ष्मण तीर्थ, अग्नि तीर्थ, शिव तीर्थ, शंख तीर्थ, गंगा तीर्थ, कोटि तीर्थ, मानस तीर्थ, धनुषकोटि तीर्थ आदि शामिल हैं. अश्वत्थामा द्वारा सोते हुए पांडव पुत्रों के वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए धनुषकोटि तीर्थ में स्नान करने की कहता भी इसमें है. इसमें पंचाक्षर मंत्र की महिमा का भी वर्णन है.

काशी खण्ड

इसमें तीर्थों, गायत्री महिमा, वाराणसी के मणिकर्णिका घाट के आख्यान, गंगा महिमा, दशहरा स्तोत्र कथन, वाराणसी महिमा, ज्ञानवापी महात्म्य, योगाख्यान, दश्सश्वमेध घाट की महिमा, त्रिलोचन आविर्भाव तथा व्यास भुजस्तम्भ आदि का उल्लेख है. इस खण्ड में बताया गया है कि काशीपुरी में पापकर्म करने वाला व्यक्ति पिशाच योनि में जन्म लेता है. बड़े से बड़ा पाप करने वाला भी यहाँ शिव के दर्शन कर पापमुक्त हो जाता है. यहाँ शरीर त्याग कर देना ही दान होता है. यही सबसे बड़ा तप है.

अवंतिका खण्ड

इस खण्ड में महाकाल की प्रशंसा, अग्नि स्तवन, विद्याधर तीर्थ, दशाश्वमेध महात्म्य, वाल्मीकेश्वर महिमा, गणेश महिमा, सोमवती तीर्थ, रामेश्वर तीर्थ, सौभाग्य तीर्थ, गया तीर्थ, नाग तीर्थ, गंगेश्वर तीर्थ, प्रयागेश्वर तीर्थ आदि का वर्णन है. साथ ही क्षिप्रा नदी की महिमा, विष्णु स्तोत्र, कुतुम्बैश्वर वर्णन, अखंडेश्वर महिमा, हनुमात्केश्वर महिमा, शंकरादित्य महिमा, विष्णु महिमा और अवंतिका महिमा आदि का विस्तार से वर्णन है. अवंतिका खण्ड में गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, गोदावरी, वितस्ता, चन्द्रभागा आदि की महिमा भी गयी गयी है. इसमें अग्नितुल्य ‘महाकाल’ की वंदना की गयी है. इसमें सनत्कुमार क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित अवंतिका तीर्थ के बारे में कहते हैं कि इस तीर्थ के दर्शन मात्र से मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है.

रेवा खण्ड

इसमें पुराण संहिता का विस्तार से वर्णन है. इसके अलावा, रेवा महात्म्य, नर्मदा, कावेरी और संगम की महिमा, शूलभेद प्रशंसा, कालरात्रि कृत जगत संहार वर्णन, श्रृष्टि संहार वर्णन, शिव-स्तुति, वराह वृत्तान्त, सत्यनारायण व्रत कथा, रेवाखंड पुस्तक दान का महत्त्व आदि शामिल हैं. इसके अलावा, इसमें विविध तीर्थों का महत्त्व बताया गया है. इनमें मेघनाद तीर्थ, नारदेश्वर तीर्थ, दीर्घ स्कंद और मधुस्कंद तीर्थ, सुवर्ण शिला तीर्थ, करंज तीर्थ, कामद तीर्थ, भादारी तीर्थ, स्कंद तीर्थ, अंगिरस तीर्थ, कोटितीर्थ, केदारेश्वर तीर्थ, पिशाचेश्वर तीर्थ, अग्नि तीर्थ, सर्प तीर्थ, श्रिकपाल तीर्थ और जमदग्नि तीर्थ आदि शामिल हैं. सभी तीर्थों की महिमा के साथ कोई कथा जुडी हुयी है. हिमालय से कन्याकुमारी तक और अटक से कामाख्या देवी के मंदिर तक ऐसा कोई प्रदेश नहीं है, जहाँ प्राचीनतम भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई तीर्थ न हो. इस पुराण में निष्काम कर्मयोग पर विशेष बल दिया गया है. धर्म का मुख्य लक्षण परपीड़ा निवारण होना चाहिए.

‘स्कंद पुराण’में दरुकवन का उपाख्यान है. इसमें विष्णु और ब्रह्मा शिवलिंग का ओर-छोर सात आकाश तथा सात पाताल पार करने के बाद भी नहीं जान पाते. इस अवसर पर ब्रह्मा का झूठ उन्हें स्तुति से वंचित करा देता है. उनके दो गवाह सुरभि गाय और केतकी का फूल अपवित्र मान लिए जाते हैं. सुरभि गाय ने जिस मुख से झूठ बोला, वह मुख अपवित्र हो गया और केतकी का पुष्प शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए वर्जित हो गया. ‘स्कंद पुराण’के अरुणाचल रहस्य वर्णन में करीब 140 महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध ऋषि-मुनियों के नाम गिनये गये हैं. ब्रह्मा के मानसपुत्र सनक, नारद, सनातन, सनत्कुमार, पुलह, पुलस्त्य, वशिष्ठ, भृगु, पराशर, व्यास, भरद्वाज, याज्ञवल्क्य, चरक, सुश्रुत आदि  हैं. इस पुराण में दूसरे के दुःख में दुखी होने, सदाचार, अहिंसा, दरिद्र, रोगी और विकलांगों की मद्द्पर जोर दिया गया है. कहा गया है कि जो भी इन लोगों के दुःख से दुखी नहीं होता, वह राक्षस है.   

 

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