Published By:धर्म पुराण डेस्क

ई सिगरेट से ज्यादा खतरनाक है धूम्रपान

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धूम्रपान के धुएं में दम तोड़ता इंसान लीड धूम्रपान एक वैश्विक खतरा है। समय से पूर्व मौत के मामलों का यह एकमात्र सबसे बड़ा कारण माना जाता है। 

सिगरेट, पाइप, सिगार, हुक्का, शीशा पीने और तंबाकू चबाने और सूंघने जैसे तंबाकू 'सेवन के अन्य तरीके खतरनाक और व्यसनी होते हैं। तंबाकू में मौजूद निकोटिन मस्तिष्क में डोपामाइन एवं एंड्रोफाइन जैसे केमिकल्स का स्तर बढ़ा देता है, जिससे इसकी लत लग जाती है। 

ये केमिकल्स आनंद का अहसास कराते हैं और इसलिए तंबाकू उत्पादों की ललक बढ़ जाती है। तो उसे चिड़चिड़ाहट, बेचैनी, अवसाद और एकाग्रता की कमी जैसी परेशानियों से गुजरना पड़ता है। 

वर्तमान में आंकड़ों पर जोर दिया, जिसके अनुसार तंबाकू कई भारतीयों की जानें ले रहा है। हर हफ्ते लगभग 1.3 मिलियन भारतीयों की मौत होती है, जिसमें 25 हजार जानें तंबाकू के कारण जाती हैं। 2 में से एक व्यक्ति की मौत धूम्रपान के कारण ही होती है।

कई वैज्ञानिक संस्थानों ने यह स्वीकार किया है कि परंपरागत सिगरेट या बीड़ी की तुलना में इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम (ईएनडीएस) स्वास्थ्य को कम नुकसान पहुंचाती हैं। 

69 देश ईएनडीएस का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें 36 ओईसीडी देशों में से 34 शामिल हैं। विशिष्ट देशों का उदाहरण देते हुए विशेषज्ञों ने यूके और कनाडा जैसे देशों का उल्लेख किया, जो सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों के साथ ईएनडीएस का इस्तेमाल भी करते हैं। 

जबकि यूएई ने इस श्रेणी पर बैन लगा दिया था, लेकिन स्वास्थ्य के बढ़ते मामलों को ध्यान में रखते हुए उसने बैन को फिर से हटा दिया। इस बात का पता लगाना आवश्यक है कि स्वास्थ्य के जोखिम को धूम्रपान ज्यादा बढ़ा रहा है या ई-सिगरेट।

परंपरागत सिगरेट पर रोक लगाए बिना ई- सिगरेट पर बैन लगाना उचित नहीं है। ईएनडीएस भारत में धूम्रपान की दर में गिरावट के लिए एक बेहतरीन अवसर प्रदान करती है। जो लोग धूम्रपान को छोड़े की इच्छा रखते हैं, लेकिन लत के कारण छोड़ नहीं पा रहे हैं, ईएनडीएस उनके लिए धूम्रपान के ऐसे विकल्प उपलब्ध कराती है, जो कम हानिकारक हैं। 

आमतौर पर सिगरेट नहीं पीने वालों के मुकाबले सिगरेट पीने वालों में कोरोनरी आर्टरी रोगों से होने वाली मृत्यु दर 70 प्रतिशत अधिक रहती है।

गर्भकाल के दौरान मां के धूम्रपान की लत के कारण समय पूर्व बच्चे का जन्म, बार-बार गर्भपात की घटनाएं, मृत शिशु का जन्म और बच्चे का कम वजन होने का खतरा रहता है। धूम्रपान के कारण पुरुषों में फेफड़े के कैंसर के 90 प्रतिशत मामले जबकि महिलाओं में 80 प्रतिशत मामले देखे गए हैं। 

तंबाकू का धुआं नॉन-स्मोकर्स और खासकर बच्चों के लिए भी उतना ही खतरनाक होता है। धूम्रपान करने वाला कोई व्यक्ति न सिर्फ खुद की सेहत को खतरे में डालता है, बल्कि उसके आसपास मौजूद लोगों, मसलन सहकर्मियों और परिवार के सदस्यों, की जिंदगी भी खतरे में डाल देता है और उन्हें कैंसर, हृदय रोग तथा स्ट्रोक एवं फेफड़े का संक्रमण का खतरा बहुत ज्यादा रहता है।

धूम्रपान करने वालों के बच्चों में अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, साइनस संक्रमण और मानसिक थकान जैसी समस्याएं बढे का खतरा अधिक रहता है। धूम्रपान करने की लत अमूमन किशोरावस्था में ही लगती है और वयस्क होते- होते लोग इसके आदी हो जाते हैं। इसकी लत की चपेट में आने वाले व्यक्तियों को इस बात का अहसास नहीं होता कि वे क्या कर रहे हैं या किस चीज का इस्तेमाल कर रहे हैं। उनकी लत इस हद तक पहुंच जाती है कि यह उनके शरीर के लिए नुकसानदेह बन जाती है। 

बाद में देखा गया कि धूम्रपान की लत प्रोफेशनल्स में बढ़ी है। संभवत: वे बहुत ज्यादा तनाव और काम के दबाव में रहने तथा आर्थिक एवं व्यक्तिगत समस्याओं से घिरे होने के कारण ऐसा करते हैं। भले ही वे कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन खुद का और अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए उनके पास धन पर्याप्त नहीं होता है।

आंख खोलकर लें फैसला-

अपनी नौकरी बनाए रखने के लिए अपना लक्ष्य पूरा करने का दबाव भी उन पर अधिक रहता है। वे देर रात तक काम करते हैं या शिफ्ट में नौकरी करते हैं इसलिए उनकी नींद भी पूरी नहीं हो पाती है। इनमें से कई प्रोफेशनल्स ऑफिस जॉब करते हैं और ज्यादातर वक्त ऑफिस के अंदर ही सिमटे रहते हैं। ऐसे लोगों में सुकून का अहसास पाने या कठिन दौर से उबरने के लिए धूम्रपान की प्रवृत्ति देखी गई है।

धूम्रपान से छुटकारा पाने के लिए दवाइयां और व्यवहार थेरेपी भी एक उपचार विकल्प हो सकता है। हालांकि धूम्रपान त्याग ने में सफलता पाने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति सबसे जरूरी होती है। इन सभी बातों को देखा जाए तो इस बुराई से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका इससे बचना ही है। 

जागरूकता बढ़ाने के लिए एक मजबूत एंटी-स्मोकिंग मीडिया कैंपेन एक अच्छा प्लेटफॉर्म हो सकता है। स्कूलों में धूम्रपान न करने की शिक्षा भी दी जानी चाहिए जहां बच्चे बड़ी आसानी से प्रभावित हो जाते हैं। 

अपने घरों, सार्वजनिक स्थलों, सिनेमाघरों, रेस्तराओं, सार्वजनिक वाहनों में धूम्रपान पर प्रतिबंध जैसी सामाजिक पहल से जागरूकता बढ़ाई जा सकती है कि तंबाकू का सेवन एक लत है और इससे धूम्रपान के सेवन में कमी लाई जा सकती है। हमें धूम्रपान त्याग ने की शपथ खुद के लिए, अपने देश के लिए और अपनी आगामी पीढ़ी के लिए। जरूर लेनी चाहिए।


 

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