सूर्य-चन्द्र ग्रहण विचार-
ऋग्वेद के एक मंत्र में यह चमत्कारिक वर्णन मिलता है। कि 'हे सूर्य! असुर राहु ने आप पर आक्रमण कर अन्धकार से जो आपको विद्ध कर दिया- ढक दिया, उससे मनुष्य आपके रूप को पूरी तरह से देख नहीं पाये और अपने-अपने कार्यक्षेत्रों में हतप्रभ से हो गये। तब महर्षि अत्रि ने अपने अर्जित सामर्थ्य से अनेक मंत्रों द्वारा (अथवा यंत्र से) छाया का दूरीकरण कर सूर्य का उद्धार किया।'
अगले एक मंत्र में यह आता हैं कि 'इन्द्र ने अत्रि की सहायता से ही राहु की माया से सूर्य की रक्षा की थी।' इसी प्रकार ग्रहण के निरसन में समर्थ महर्षि अत्रि के तपःसन्धान से समुद्भूत अलौकिक प्रभावों का वर्णन वेद के अनेक मंत्रों में प्राप्त होता हैं।
किन्तु महर्षि अत्रि किस अद्भुत सामर्थ्य से इन अलौकिक कार्यों में दक्ष माने गये, इस विषय में दो मत हैं- प्रथम परंपरा प्राप्त यह मत कि वे इस कार्य में तपस्या के प्रभाव से समर्थ हुए और दूसरा यह कि वे कोई नया यंत्र बनाकर उसकी सहायता से ग्रहण से उन्मुक्त हुए सूर्य को दिखलाने में समर्थ हुए।
यही कारण है कि महर्षि अत्रि ही भारतीयों में ग्रहण के प्रथम आचार्य माने गये तथा इससे स्पष्ट है कि अत्यन्त प्राचीन काल में भारतीय सूर्यग्रहण के विषय में पूर्णतः जानते थे।
ग्रहण-काल की अवधि-
खगोल-शास्त्रियों ने गणित से निश्चित किया है कि 18 वर्ष 18 दिनों की अवधि में 41 सूर्यग्रहण और 29 चन्द्रग्रहण होते हैं। एक वर्ष में 5 सूर्यग्रहण तथा दो चन्द्रग्रहण तक होते हैं। किन्तु एक वर्ष में दो सूर्यग्रहण तो होने ही चाहिए।
हाँ, यदि किसी वर्ष दो ही ग्रहण हुए हो तो दोनों ही सूर्यग्रहण होंगे। यद्यपि वर्ष भर में 7 ग्रहण तक संभव हैं, फिर भी चार से अधिक ग्रहण बहुत कम देखने में आते हैं। प्रत्येक ग्रहण 18 वर्ष 11 दिन बीत जाने पर पुनः होता है। किन्तु वह अपने पहले के स्थान में ही 'हो-यह निश्चित नहीं है; क्योंकि सम्पाद-बिन्दु बदलता रहता है।
साधारणतया सूर्य ग्रहण की अपेक्षा चन्द्रग्रहण अधिक देखे जाते हैं, पर सच तो यह है कि चन्द्र ग्रहण से कहीं अधिक सूर्य ग्रहण होते है। तीन चन्द्र ग्रहण पर चार सूर्य ग्रहण का अनुपात आता है।
चन्द्रग्रहणों के अधिक देखे जाने का कारण यह होता है कि वे पृथ्वी के आधे से अधिक भाग में दिखलायी पड़ते हैं, जबकि सूर्यग्रहण पृथ्वी के बहुत थोड़े भाग में प्रायः सौ मील से कम चौड़े और दो हजार से तीन हजार मील लम्बे भूभाग में दिखलायी पड़ते हैं।
मुंबई में खग्रास सूर्यग्रहण हो तो सूरत में खंड सूर्यग्रहण दिखाई देगा और अहमदाबाद में दिखाया ही नहीं पड़ेगा।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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