रावण को ब्रह्मा जी से हमेशा जीवित रहने का वरदान मिला था, लेकिन जब रावण के पाप बढ़ गए, तो भगवान ने धरती पर अवतार लिया और भगवानश्रीराम ने रावण का वध किया। तब से हम बुराई पर अच्छाई की जीत के उत्सव के रूप में दशहरा का त्योहार मनाते हैं। विजयादशमी पर देश के कोने-कोने में रामलीला का आयोजन किया जाता है और फिर रावण दहन किया जाता है।
रावण में कई लोगों की आस्था-
राजधानी दिल्ली से महज 22 किलोमीटर दूर बागपत के रावण उर्फ बड़ागांव में न रामलीला और न ही रावण का पुतला दहन किया जाता है। यहां के लोगों की रावण में आस्था है, क्योंकि यहां के लोग रावण को देवता मानते हैं।
रावण की होती हैं पूजा-
आखिर क्यों बड़ागांव के लोग रावण की पूजा करते हैं। रावण का पुतला क्यों नहीं जलाया जाता है? इसके पीछे एक कहानी है। उस कहानी से पहले आइए जानते हैं मनसा देवी के मंदिर के बारे में..!
जानिए रहस्य-
इस मंदिर में आने वाले सभी लोगों की मुश्किलें दूर होती हैं। उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। क्योंकि आस्था की देवी मां मनसादेवी स्वयं यहां निवास करती हैं। ग्रामीणों का कहना है कि मनसा देवी के इस बड़ागांव यानी रावण के गांव पहुंचने की कथा यह है कि रावण ने सैकड़ों वर्षों तक आदि शक्ति की तपस्या की थी। इसीलिए माँ का निवास इस गांव में हैं।
भगवान विष्णु ने धोखे से स्थापित की मां की मूर्ति
देवी ने प्रसन्न होकर रावण से वरदान मांगा, रावण ने कहा कि मैं तुम्हें लंका ले जाना चाहता हूं और तुम्हें स्थापित करना चाहता हूं और देवी ने तथास्तु से कहा कि मेरे रूप में मेरी यह मूर्ति जहां भी रखोगे वहां स्थापित हो जाएगी और फिर इसे कोई भी नहीं हटा सकता है। इस वरदान के बाद देवलोक में कोहराम मच गया और देवता घबरा गए और भगवान विष्णु के पास पहुंचे।
भगवान विष्णु गाय के रूप में आए-
भगवान विष्णु ने ग्वाले का वेश बनाया और रावण को शंकालु बना दिया। जंगल में चरवाहे को देखकर रावण ने आदि शक्ति की मूर्ति चरवाहे को सौंप दी और भगवान विष्णु ने चरवाहे के रूप में इस मूर्ति को जमीन पर रख दिया और जब रावण ने मूर्ति को उठाया तो वह वहां से नहीं हिली और इस प्रकार माता बागपत के इस बड़ागांव उर्फ रावण के गांव में मूर्ति स्थापित हो गई।
ग्रामीणों के लिए रावण एक देवता है-
यहां मां मनसा देवी के मंदिर में आने वाले भक्तों का कहना है कि आदि शक्ति के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं, लेकिन लंकापति रावण की वजह से ही मां यहां आकर बस गई और यह सब लंकेश की वजह से हुआ। यहाँ माता स्वयं विराजमान हैं जो सच्चे हृदय से माँ की पूजा करता हैं, माँ उनकी हर मनोकामना पूर्ण करती हैं और इसलिए यहाँ के लोग कहते हैं कि उन्हें रावण पर बहुत विश्वास हैं, इसीलिए वे माता को यहां लाए थे।
रावण का वंशज कैसे बने?
बागपत के बड़ागांव का पुरातात्विक और धार्मिक दृष्टि से भी काफी महत्व है। कई किंवदंतियाँ, अवशेष, सैकड़ों साल पुरानी मूर्तियां और मंदिर इस गाँव को प्रसिद्ध रखते हैं। इतिहासकार बताते हैं कि मूर्ति की स्थापना के बाद रावण ने यहां एक तालाब खोदा और तपस्या करने से पहले उसमें स्नान करते थे।
रावण के वंशज होने पर गर्व-
इस तालाब का नाम रावण कुंड है। आसपास के क्षेत्रों में भी ग्रामीण इस दिन रावण दहन नहीं करते हैं, क्योंकि यह उनके लिए दुख का समय है और यह कोई नई परंपरा नहीं है, लेकिन यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। हर व्यक्ति, बूढ़ा हो या जवान, हर कोई रावण को अपना वंशज मानने में गर्व महसूस करता है।
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