 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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बचपन से लेकर आज तक हमारा शरीर इतना बदल गया कि उसको पहचान भी नहीं सकते, फिर भी हम वही हैं- यह हमारा अनुभव कहता है। बचपन में मैं खेलता-कूदता था, बाद में मैं पढ़ता था, आज मैं नौकरी-धंधा करता हूँ। सब कुछ बदल गया, पर मैं वही हूँ। कारण कि शरीर एक क्षण भी ज्यों-का-त्यों नहीं रहता, निरंतर बदलता रहता है।
तात्पर्य यह हुआ कि जो बदलता है, वह हमारा स्वरूप नहीं है। जो नहीं बदलता, वही हमारा स्वरूप है। हमने अब तक असंख्य शरीर धारण किये, पर सब शरीर छूट गये, हम वही रहे। मृत्युकाल में भी शरीर तो यहीं छूट जाएगा, पर अन्य योनियों में हम जाएंगे, स्वर्ग-नरक आदि लोकों में हम जाएंगे, मुक्ति हमारी होगी, भगवान के धाम में हम जाएंगे।
तात्पर्य है कि हमारी सत्ता (होनापन) शरीर के अधीन नहीं है। शरीर के बढ़ने-घटने पर, कमजोर - बलवान होने पर, बालक-बूढ़ा होने पर अथवा रहने न रहने पर हमारी सत्ता में कोई फर्क नहीं पड़ता।
जैसे हम किसी मकान में रहते हैं तो हम मकान नहीं हो जाते। मकान अलग है, हम अलग हैं। मकान वहीं रहता है, हम उसको छोड़कर चले जाते हैं। ऐसे ही शरीर यहीं रहता है, हम उसको छोड़कर चले जाते हैं। शरीर तो मिट्टी हो जाता है, पर हम मिट्टी नहीं होते।
हमारा स्वरूप गीता ने इस प्रकार बताया है:
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः॥
हमारा जीवन हमें अनगिनत अनुभव दिलाता है, और हमारा शरीर इस समय कई बार बदल जाता है, लेकिन वास्तविक आत्मा में कोई परिवर्तन नहीं होता। हम बचपन में खेलते और बढ़ते हैं, फिर पढ़ते और नौकरी करते हैं, लेकिन हमारा आत्मा वही रहता है।
जब हम किसी शरीर को त्यागते हैं, तो हमारी सत्ता उसके साथ नहीं जाती। हमने अनगिनत शरीर धारण किए हैं, परंतु हम वही रहते हैं। मृत्यु के बाद भी हम अन्य शरीरों में जाते हैं, लेकिन हमारी आत्मा हमेशा वही रहती है। हम नित्य मुक्त हैं, और अपने आत्मा के स्वरूप में हमें कभी भी कोई परिवर्तन नहीं होता।
इसलिए, हमें शरीर के परिवर्तनों में न जुटकर अपने आत्मा के स्वरूप को भूलने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। हमारा असली जीवन और आत्मा हमारे शरीर से परे है, और हमें इस अद्वितीयता को समझना चाहिए। हम वही हैं, और हमारी आत्मा हमेशा स्वतंत्र और अद्वितीय रूप में बनी रहती है।
इस तरह, हमें हमारे आत्मा के अद्वितीय स्वरूप को समझने की महत्वपूर्ण जरूरत है ताकि हम शरीर के परिवर्तनों में उलझने की बजाय हमारे असली आत्मा की अद्वितीयता को महसूस कर सकें।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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