मेरुदण्ड, जिसे कई धार्मिक और यौगिक परंपराओं में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, एक अनुपम सूर्यनाडी की भूमिका निभाता है। यह नृत्य के बीच स्थित है और मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण भौतिक तंतु है।
मेरुदण्ड का महत्व:
शक्ति संचार: मेरुदण्ड से होने वाली ऊर्जा की गतिविधियां जीवन के रूपों की उत्थान को संचारित करने में मदद करती हैं। इसमें प्राण, अपान, व्यान, उदान, और समान वायुओं की समन्वयित गतिविधियाँ होती हैं।
यौगिक साधना: मेरुदण्ड को यौगिक साधनाओं में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, जैसे कि कुण्डलिनी जागरण में। कुण्डलिनी शक्ति को मेरुदंड के माध्यम से ऊपर ले जाने का प्रयास किया जाता है।
चेतना और ऊर्जा संतुलन: मेरुदण्ड की सही गतिविधि से मानव शरीर का मानसिक और भौतिक संतुलन बना रहता है। यह चेतना और ऊर्जा को संतुलित रखता है।
स्वतंत्र नर्वस सिस्टम:
स्वतंत्र और सायत्य भाग: नर्वस सिस्टम को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है - स्वतंत्र और सायत्य। स्वतंत्र नर्वस सिस्टम अनचाहे शरीरी रिएक्शन्स को नियंत्रित करता है, जबकि सायत्य नर्वस सिस्टम स्वेच्छा से किए जाने वाले क्रियाओं को नियंत्रित करता है।
संचारित ऊर्जा: स्वतंत्र नर्वस सिस्टम के माध्यम से ऊर्जा को विभिन्न भागों में संचारित किया जाता है, जिससे शरीर की विभिन्न क्रियाएं होती हैं, जैसे कि हृदय की धड़कन, श्वास-प्रश्वास, और पाचन प्रक्रिया।
सामंजस्य बनाए रखना: स्वतंत्र नर्वस सिस्टम शरीर को विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार समायोजित करने में मदद करता है। यह विभिन्न तंतुओं को एक संतुलित स्थिति में रखकर सामंजस्य बनाए रखने में मदद करता है।
मेरुदण्ड और योग:
आसन और प्राणायाम: योग में, मेरुदंड को स्थिर और संजीव बनाए रखने के लिए आसन और प्राणायाम का अभ्यास किया जाता है। इससे योगी अपनी प्राणशक्ति को नियंत्रित कर सकता है।
कुंडलिनी जागरण: कुंडलिनी शक्ति को मेरुदंड के माध्यम से जागरण करने के लिए यौगिक प्रदर्शनों में मेरुदण्ड का महत्वपूर्ण स्थान है। यह शक्ति सुषुम्ना नाड़ी के माध्यम से ऊपर की दिशा में चलती है और योगी को उच्च स्तर की चेतना की प्राप्ति कराती है।
इस प्रकार, मेरुदण्ड और स्वतंत्र नर्वस सिस्टम का ठीक से संतुलन योगिक साधना में आवश्यक होता है, जो शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने में मदद करता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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