Published By:बजरंग लाल शर्मा

अभिलाष गुरुदेव साहेब जी का आध्यात्मिक चिंतन…

अभिलाष साहेब ने धर्म ग्रंथो में वर्णित ज्ञान को ऋषि मनीषियों की कल्पना मात्र माना है । 

आपके अनुसार यह दृश्य जगत तथा जीव जड़ चेतन के संयोग से बना है । जड़ का मूल माया है तथा चेतन का मूल ब्रह्म (आत्मा) है । माया तथा ब्रह्म दोनों ही अनादि हैं। आपके अनुसार आत्मा जब इस दृश्य जगत में जड़ से मिलकर शरीर धारण करती है तो वह विकार युक्त होकर जीव बन जाती है । जीव अथवा आत्मा से ऊपर कोई नहीं है, यह सर्वोपरि है ।

आप चेतन को दो प्रकार का मानते हैं एक चेतन वह है, जो विकार रहित होता है, जिसे आत्मा की संज्ञा दी जाती है । दूसरा चेतन वह होता है जो विकार युक्त होता है, जिसे जीव कहा जाता है । जीव जड़ तथा विकार युक्त चेतन का गठबंधन है और जब उसकी यह गांठ खुल जाती है तो जीव पुन: विकार रहित होकर आत्मा बन जाता है ।

अभिलाष साहेब सृष्टि की रचना के विषय में शास्त्रों तथा संतो के इस विचार से सहमत नहीं है कि यह संसार स्वप्न है ।

इस दृश्य जगत को स्वप्न नहीं मानने पर कुछ संशय उत्पन्न हो जाते हैं जिसका निराकरण आवश्यक है । 

1- विकार रहित आत्मा विकार रुपी जड़ से मिलकर किस प्रकार दूषित हो सकती है? क्योंकि आत्मा निर्लिप्त है, न जलती है, न कटती है, न मरती है एवं सदा एक समान रहती है ।

2- आत्मा के गुण तथा जड़ पदार्थ के गुण भिन्न है और जब दोनों के गुणों में समानता नहीं  है तब वे आपस में किस प्रकार मिल सकते हैं ?

3- आत्मा सत्य है प्रकाश स्वरूप है तथा जड़ असत्य है अंधकार स्वरूप है फिर  ये आपस में किस प्रकार मिल सकते हैं ?

4- जड़ का मूल माया है तथा माया को अनादि कहा गया है । आत्मा तथा परमात्मा को माया रहित कहा गया है, फिर यह माया सृष्टि की रचना के पूर्व कहां थी, इस सम्बन्ध में क्या कहा जाए ?

5- आत्मा इस दृश्य जगत में जड़ से मिलकर जीव का शरीर  प्राप्त  करता है । जीवों की संख्या तो अनगिनत हैं । अत: आत्मा भी अनेक हुई तो क्या परमात्मा भी अनेक है। यदि परमात्मा एक माने तो क्या उसे खंडित किया जा सकता है ?

6- यदि आत्मा का कोई कारण नहीं है और आत्मा ही सर्वोपरि है फिर यह दृश्य जगत कैसे बना ? आत्मा तो इच्छा रहित है ।

7- आत्मा सर्वोपरि है उसके ऊपर कोई नहीं है और यह स्वयं जड़ से मिलकर जीव का शरीर धारण करती है और अनेकों दुखों को भोगती है । आखिर यह आत्मा जीव बनकर दुःख को क्यों भोगना चाहती है?

8- आत्मा का स्वरूप जब निराकार है तो उसने इस साकार जगत को किस प्रकार बनाया यह सिद्धांत के विपरीत है क्योंकि निराकार में साकार की रचना का गुण नहीं होता है । 

" निराकार निर्गुण भगवाना, जग साकार बनाया । 

भारी अचंभा भया ब्रह्म में, विपरीत भाव दिखाया ।। "

जड़ चेतन के संयोग से इस दृश्य जगत तथा जीव को क्यों बनाया गया ?  किसके आदेश से बनाया गया तथा किस प्रकार बनाया गया ? इसका उल्लेख अभिलाष साहेब ने कहीं नहीं किया है । 

आपने अपने वचनों में यह अवश्य कहा है कि बिना कारण के कार्य नहीं होता है परंतु इस सृष्टि की रचना का कारण क्या है ? इस पर आपने अपना मत प्रकट नहीं किया  है ।

कबीर जी ने अपनी वाणी में सृष्टि रचना किस प्रकार हुई ? इसका उल्लेख किया है परंतु आप कबीर जी के विचार से भी सहमत नहीं है ।

बजरंग लाल शर्मा 

 


 

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