Published By:धर्म पुराण डेस्क

निज शुद्धात्मा में विशुद्धता का अनुष्ठान ही अध्यात्म है

आध्यात्मिक ज्ञान के प्रारम्भिक अध्ययन में आत्मा के स्वरूप और परमात्मा के स्वरूप को समझने का महत्व है। आत्मा के अध्ययन से ही आध्यात्मिक ज्ञान की शुरुआत होती है, और यह अध्यात्म के विभिन्न पहलुओं को समझने की ओर बढ़ने में मदद करता है।

आप अपनी आत्मा की अद्वितीयता को जानने के लिए ध्यान और मेधावी साधना कर सकते हैं। आप आध्यात्मिक ग्रंथों को पढ़कर और आध्यात्मिक गुरुओं के मार्गदर्शन से आध्यात्मिक ज्ञान का अध्ययन कर सकते हैं।

आध्यात्मिक ज्ञान की शुरुआत आत्मा के अध्ययन से होती है, और यह आपके आध्यात्मिक सफर की मानदंड हो सकती है। ध्यान और साधना के माध्यम से आप अपनी आत्मा की अद्वितीयता और परमात्मा के स्वरूप को अध्ययन करने का सामर्थ्य विकसित कर सकते हैं।

आध्यात्मिक ग्रंथों का पठन भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे आपको आध्यात्मिक ज्ञान और उपदेश प्रदान कर सकते हैं। संतों और आध्यात्मिक गुरुओं के मार्गदर्शन में भी आपको आध्यात्मिक ज्ञान का सहयोग मिलेगा।

(1) आत्मानं देहमिन्द्रियादिकं क्षेत्रज्ञं ब्रह्म वा अधिकृत्य।

अर्थात् आत्मा अथवा ब्रह्म को अधिकार (विषय) बनाकर की गई चर्चा या आत्म विषयक चर्या।

(2) अधीयते आत्मानं सततं मिति अध्यात्मम्। 

अर्थात् निरन्तर आत्मा का अध्ययन करना ही अध्यात्म है।

(3) अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते।

अर्थात् कभी भी नष्ट न होने वाला तत्व ब्रह्म है और प्रत्येक वस्तु के निजभाव को स्वभाव कहते हैं। उसी स्वभाव का नाम अध्यात्म है।

(4) आत्मानं देहम अधिकृत्य प्रत्यगात्मतया प्रवृत्तं परमार्थ ब्रह्मावसानं वस्तु स्वभावो अध्यात्मम् उच्यते अध्यात्म शब्देन अभिधीयते। 

अर्थात् शरीर के अन्दर किन्तु शरीर से भिन्न जो परमार्थ ब्रह्म या आत्मा निवास करता है, उसी तत्त्व को निश्चय से अध्यात्म कहते हैं।

(5) " आत्मादि विषये ज्ञानम् अध्यात्मज्ञानम्।

अर्थात् आत्मादि विषयक ज्ञान को अध्यात्मज्ञान कहते हैं।

इस प्रकार यह सुस्पष्ट है कि अध्यात्मविद्या के लिए सर्वप्रथम आत्मा का स्वरूप भलीभाँति जानना अत्यन्त आवश्यक है, उसके बिना कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार से आध्यात्मिक नहीं हो सकता। तथा आत्मा के साथ-साथ परमात्मा के भी समीचीन स्वरूप को समझना अध्यात्मविद्या का अनिवार्य अंग है।

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