साठ सत्तर वर्ष पहले भोजन में कुलथी की दाल खाई जाती थी। बाजार में मिलती थी। किंतु इधर लोगों ने उसको खाना बंद कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ है कि आज पथरी का रोग वेग से बढ़ रहा है।
यदि कुलथी का पानी भी पिया जाए तब इस रोग को या तो निकाला जा सकता है या गलाया जा सकता है। मूत्रवहा नाडी का पत्थर शीघ्र ही निकल जाता है। यदि यह वृक्क में हो जाता है तो देर लगती है; क्योंकि वहाँ से निकाला नहीं जा सकता। हाँ, गलाया जा सकता है। दोनों स्थितियों में शल्यकर्म की आवश्यकता नहीं रहती। कुलथी अपने प्रभाव से उस रोग को जड़ मूल से साफ कर देती है।
औषध एवं उसके सेवन की विधि इस प्रकार है:-
(1) हजरल जहूद भस्म -3 ग्राम, (2) श्वेत पर्पटी 3 ग्राम, (3) पाषाणभेद-3 ग्राम, (4) चन्द्रप्रभा वटी 4 ग्राम। इन सबकी 21 पुड़िया बनाएं।
सुबह-शाम एक एक पुड़िया निम्नलिखित काढ़ेसे लें काढ़ा – (1) कुलथी (या दाल) 100 ग्राम, (2) वरुण (वरुणा) की छाल 15 ग्राम, (3) गदहपूर्णाकी जड़ - 10 ग्राम, (4) छोटी गोखरू-6 ग्राम, (5) बड़ी गोखरू-6 ग्राम, (6) भिंडीका बीज 3 ग्राम, (7) पानी-500 ग्राम (आधा किलो) ।
इन सबको जौकूट (जौ के बराबर) चूर्ण कर लें। काढ़े की दवाओं को बहुत महीन न करें। जौकुट-चूर्ण को आधा किलो पानी में रात में भिगो दें। सबेरे धीमी आंच पर काढ़ा बनायें। शेष 100 ग्राम रहने पर उतार लें। 50 ग्राम काढ़ा सुबह एक पुड़िया खाकर पी लें।
पथ्य - नेनुआ, लौकी, परवल, पपीता, करेला आदि सब्जियों को हल्के तेल में जीरे से छौंक कर धनिया, हल्दी, काली मिर्च—इन मसालों को खाया जा सकता है। गरम मसाला न लें।
अपथ्य – कैल्शियम की वस्तुएं जैसे दूध और टमाटर न लें।
सूचना – यदि यूरेटर में बड़ा पत्थर होता है तो इन दवाओं से निकलते समय दर्द महसूस होता है, इस दर्द को शुभ लक्षण समझना चाहिए। क्योंकि पत्थर अपने स्थान से हटकर पेशाब के रास्ते निकलना चाह रहा है।
ऐसी स्थिति में बार-बार खूब पानी पीना चाहिये। इससे उसे निकलने में सुविधा होती है। यदि पथरी छोटी होती है तो तकलीफ नहीं होती, आसानी से निकल जाती है। बड़ी पथरी निकलने के बाद देखने में मांस का टुकड़ा लगता है; क्योंकि मांस को काटते हुए बाहर निकलता है, उसे रख दिया जाय तो बारह घंटे बाद वह पत्थर नजर आने लगता है। इस पत्थर का रंग हजरल जहूद पत्थर की तरह नीला होता है।
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