ब्रह्माजी इस विचार में पड़कर कि पृथ्वी तो रसातल में चली गयी है, इसे कैसे निकाला जाय, वे सर्वशक्तिमान् श्री हरि की शरण गये। उसी समय विचारमग्न ब्रह्माजी की नाक से अंगुष्ठ प्रमाण एक वराह बाहर निकल पड़ा और क्षणभर में पर्वताकार विशाल रूप गजेन्द्र-सरीखा होकर गर्जन करने लगा।
शूकर रूप भगवान् पहले तो बड़े वेग से आकाश में उछले। उनका शरीर बड़ा कठोर था, त्वचा पर कड़े-कड़े बाल थे, सफेद दाढ़ी थीं, उनके नेत्रों से तेज निकल रहा था। उनकी दाढ़ें भी अति कर्कश थीं। फिर अपने वज्रमय पर्वत के समान कठोर-कलेवर से उन्होंने जल में प्रवेश किया।
बाणों के समान पैने खुरों से जल को चीरते हुए वे जल के पार पहुँचे। रसातल में समस्त जीवों की आश्रयभूत पृथ्वी को उन्होंने वहां देखा। पृथ्वी को वे दाढ़ों पर लेकर बाहर आये।
जल से बाहर निकलते समय उनके मार्ग में विघ्न डालने के लिये महापराक्रमी हिरण्याक्ष ने जल के भीतर ही उन पर गदा से प्रहार करते हुए आक्रमण कर दिया। भगवान्ने उसे लीलापूर्वक ही मार डाला। श्वेत दाढ़ों पर पृथ्वी को धारण किये, जल से बाहर निकले हुए तमाल वृक्ष के समान नीलवर्ण वराह भगवान को देखकर ब्रह्मादिक को निश्चित हो गया कि ये भगवान ही हैं। वे सब हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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