1. मिट्टी के बर्तन में 50 मि.ली. गोमूत्र तथा एक छोटी हरड़ रात्रि में भिगो दें। रोजाना प्रातः हरड़ खाकर गोमूत्र पिएं।
2. प्रवाल पंचामृत, गोक्षुरादि गुग्गुलु यवक्षार, गिलोयसत्व, पुनर्नवा मण्डूर वटी, मुक्ताशुक्ति पिष्टी 125-125 मि. ग्राम मिलाकर दिन में 3 बार शहद से लें।
गोमूत्र यह दूध पीने वाली बछिया का होना चाहिए। पथ्य-अनाज, जौ, ज्वार, चावल, साबूदाना फल-पपीता, नाशपाती, अमरूद। सब्जी मूली, पत्ता गोभी, मेथी के पत्ते, परवल, घीया, तुरई, टिंडा, आलू पेय-सम मात्रा में पानी मिला गाय का दूध देशी गाय की छाछ, लौकी का रस, जड़ी बूटियों की बनी चाय तथा गोमूत्र तथा दूध देशी गाय का ही प्रयोग करें।
विशेष- रोगी का नमक, मिर्च, तेल बिलकुल बंद रखें। सब्जी उबालकर पानी निकालकर देशी गाय के एक चम्मच घी से बघार कर दें। मेरे पुत्र को गुर्दा रोग हो गया था। ब्लड यूरिया, सीरम, क्रिएटिनीन, एलब्युमिन, हीमोग्लोबिन में खराबी आ गई थी। मैंने यह प्रयोग दो माह करवाया और वह ठीक हो गया। जांच रिपोर्ट सामान्य थी। अब वह स्वस्थ है।
योग- ताल मखाना 50 ग्राम, जायफल 25 ग्राम, गिलोय सत्व 25 ग्राम, मिश्री 100 ग्राम को बारीक पीसकर चूर्ण तैयार करें। इसे 3 से 10 ग्राम तक 240-240 मि. ग्राम प्रवाल पिष्टि मिलाकर दिन में एक या दो बार गाय के दूध से सेवन करें।
लाभ- यह चूर्ण रक्त में स्थित विष को रूपांतरित करता है एवं मूत्र की मात्रा बढ़ाकर शेष रहे दोष को जल्दी निकाल देता है, जिससे गुर्दों, मूत्राशय एवं मूत्र नलिका आदि की श्लैष्मिक कला का प्रदाह दूर होकर मूत्र में वीर्य श्लेष्म, पित्त और क्षार जाना बंद हो जाता है।
गोमूत्र- देशी गाय की दूध पीने वाली बछिया का गोमूत्र तथा तृण पंचमूल क्वाथ 25-25 मि.लीटर दिन में 3 बार सेवन करना चाहिए। यह आयुर्वेदिक डायलेसिस है। इससे खून शुद्ध होता है तथा हृदय व गुर्दा रोगों में जादुई लाभ होता है। यह अद्भुत योग है।
आयुर्वेद के अनुसार गोमूत्र सेवन करने से त्वचा कृमि, कुष्ठ, प्रमेह, डायबिटीज एवं प्लीहा रोग में लाभ होता है। गोमूत्र गुर्दा रोगों में बहुत उपयोगी माना गया है। यह गुर्दों को कार्य योग्य बनाए रखता है, जिससे गुर्दा-प्रत्यारोपण की आवश्यकता से काफी हद तक बचा जा सकता है।
गोमूत्र में कार्बोलिक एसिड, पोटेशियम, फास्फेट, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटाश, अमोनिया, नाईट्रोजन, क्रिएटिन लैक्टोज, हार्मोन्स (पाचक रस) तथा अनेक प्राकृतिक लवण पाए जाते हैं, जो मानव शरीर की शुद्धि और पोषण करते हैं। कार्बोलिक एसिड होने के कारण गोमूत्र से कुल्ला करने पर दांतों का दर्द ठीक होता है। गोमूत्र में कैल्शियम होने से यह बच्चों के सूखा रोग में लाभप्रद है।
गोमूत्र का लैक्टोज बच्चों, बूढ़ों को प्रोटीन प्रदान करता है। हिस्टीरिया जनित मानस रोग तथा मिर्गी, सिफिलिस, गोनोरिया जैसे संक्रामक रोगों में पंचगव्य घृत विशेष लाभप्रद है। गोमूत्र को गिलोय स्वरस एवं अनंतमूल के 3 ग्राम चूर्ण के साथ सेवन करने से रक्तदोष एवं त्वचा रोगों में लाभ मिलता है। बच्चों के कृमि रोग, सूत्र कृमि में एक चम्मच गोमूत्र को शहद के साथ पिलाने से लाभ होता है। पेट के विकार, गैस्ट्रिक एवं पैप्टिक अल्सर में भी यह लाभप्रद है।
वैद्य हरिश्चन्द्र गर्ग
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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