 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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बुजुर्गों से मिला स्नेह और संबल हर परिवार की रीढ़ है। उनका अनुभव और साथ ऐसा सपोर्ट सिस्टम है जो हर हाल में घर के छोटे सदस्यों को थामे रखता है। लेकिन कई बार बड़ों के व्यवहार की कुछ बातें का कारण भी बनती हैं।
हालांकि उनकी ऐसी बातों में भी स्नेह और चिंता ही समाई रहती है पर समय के साथ विचार और व्यवहार में बदलाव लाना नई पीढ़ी के लिए ही नहीं बड़ी पीढ़ी के लिए भी आवश्यक है। रिश्तों में स्नेह और समझ को कायम रखने 'के लिए आपसी तालमेल बेहद जरूरी है।
शिकायतों से बचें, स्नेह बांटे..
कई बार मन परेशान हो जाता है। अपनों को लेकर कई शिकायतें मन में दस्तक देने लगती हैं। लेकिन आस-पड़ोस या रिश्तेदारी में इन बातों को जाहिर करने से बचें। जिंदगी को प्रैक्टिकल अप्रोच के साथ देखें और यह समझें कि आपके अपनों से जुड़ी समस्याओं का हल किसी और के पास नहीं हो सकता। इसलिए शिकायतों से बचें और स्नेह भरा भाव अपनाएं।
जो कुछ कहना है वो स्पष्टता के साथ अपने घर के सदस्यों के साथ शेयर करें। छोटे सदस्यों को लेकर जो नाराजगी आपके मन है वो उन्हें खुलकर बताएं। दूसरे के जरिए उन तक आपके मन की बात पहुंचने पर उसके मायने ही बदल जाते हैं। साथ ही लोगों को अपने मन की तकलीफ कहने का आपका यह नासमझी भरा व्यवहार नई पीढ़ी का मन भी दुखाता है।
नई पीढ़ी की परेशानियां भी..
आपके पास उम्र के इस पड़ाव पर काफी खाली समय है जबकि घर के छोटे सदस्य घरेलू जिम्मेदारियों की आपाधापी और करियर के मोर्चे पर जद्दोजहद को जी रहे होते हैं।
ऐसे में बड़े होने के नाते आप उनकी परेशानियां भी समझें। उन्हें भावनात्मक संबल दें। संभव हो तो घर के छोटे-मोटे कामों में मदद भी करें। ऐसा करने से आप व्यस्त और सक्रिय रहेंगे और रिश्तों में सहजता भी बनी रहेगी। उनकी तकलीफों को समझते हुए यूं उनका साथ देना उन्हें स्नेह की डोर से बांधेगा ना कि जबरदस्ती सम्मान देने की जिम्मेदारी से।
यह सही है कि बड़े अनुभवी होते हैं। जीवन को व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखते हैं लेकिन घर के छोटे सदस्यों के लिए हर काम, हर बात में मीन-मेख निकालना सही नहीं है। किसी कमी की ओर इशारा करना भी हो तो बहुत पॉजिटिव ढंग से अपनी बात कहने की कोशिश रिश्तों में सहजता लाती है।
नई पीढ़ी में भरोसा जताएं..
हर चीज में कमियां ना देखें..
हर बात में कमियां ढूंढने से रिश्तों में दूरी आती है। इसलिए नई पीढ़ी की कोशिशों को सराहने का प्रयास भी करना होगा। उनके लिए जिंदगी के कई पहलू नए होते हैं। जीते हुए सीखना और सीखते हुए जिंदगी जीना, उनका हक है। इसलिए जब भी उनके विचार-व्यवहार की दिशा जाने-अनजाने गलत होने लगे तो बड़ों को सीधे तरीके से अपनी बात करनी चाहिए।
बुजुर्गों को कुछ चीजों के मामले में बार-बार अपनी राय रखने से बचना चाहिए। आजकल नए बेटा-बहू हों या नाती-पोते सभी की जीवनशैली काफी बदली हुई है।
कई बदलाव इस मौजूदा दौर के लिए बेहद जरूरी भी हैं। जैसे कामकाजी कपल्स में बेटा-बहू की मदद करे तो 'यह तुम क्यों कर रहे हो' या 'यह भी कोई तुम्हारा काम है'? जैसी बातें ना करें। जहां पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं वहां मिलजुलकर जिम्मेदारियां निभानी ही पड़ती हैं।
इतना ही नहीं बच्चों के भी ट्यूशन या स्कूल कॉलेज जाने के समय की ज्यादा तहकीकात ना करें। कई बार उनका अपनी जरूरतों के लिए घर से बाहर निकलना आवश्यक होता है। हां, अपनी चिंता जताएं और संभलकर रहने की सलाह भी दें। पर कुछ फैसले उन पर भी छोड़ें ताकि वे जिम्मेदार, आत्मनिर्भर और एक-दूजे के सहयोगी बनें। इस तरह आप घर की नई पीढ़ी में भरोसा जताकर उनका स्नेह भरा विश्वास जीत सकते हैं।
 
 
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