Published By:धर्म पुराण डेस्क

दुख और उसके परिणाम: एक आत्मिक दृष्टिकोण

पृथ्वी पर, भली आत्माएं अपने प्रशिक्षण और अनुभव से गुजरती हैं, हार-जीत, सुख-दुःख के साथ। इसके बावजूद, बुरी आत्माएं अनैतिक रूप से सफल हो सकती हैं, लेकिन जीवात्मा जगत में उन्हें नीचे गिरना ही पड़ता है। 

यह एक आत्मिक न्याय की प्रक्रिया है, जो उन्हें सांसारिक बनाती है। भली आत्माओं को चुनौतियों से गुजरना पड़ता है, लेकिन इससे वे आगे बढ़ते हैं, और उनकी आत्मा में सुधार होता है। वे जीवात्मा जगत के उच्चतम स्तरों की ओर बढ़ती हैं, जहां शांति, प्रेम, और आनंद का अद्भुत संगम होता है।

विविध प्रशिक्षण और अनुभव से गुजरने के बावजूद, बुरी आत्माएं सांसारिक सफलता की दिशा में बढ़ सकती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे दुष्टप्रवृत्तियों में सफल हैं। उन्हें अपने कर्मों के अनुसार निक्षेप्त होना होगा, जिससे उन्हें जीवात्मा जगत में नीचे गिरना पड़ता है।

जीवात्मा जगत में आने पर बुरी आत्माओं को उनके कर्मों के नतीजे भुगतने पड़ते है, और इससे वे उच्चतम स्तरों की ओर नहीं बढ़ सकतीं। यह दिखाता है कि अनैतिकता और दुष्टप्रवृत्तियां सफलता लाने के बाद भी आत्मिक हानि का कारण बनतीं हैं।

आत्मिक दृष्टिकोण से हमें यह सिखना चाहिए कि भलाई का मार्ग आत्मा की सच्ची सुख-शांति की दिशा में होना चाहिए, जो सांसारिक सफलता से अधिक महत्वपूर्ण है। 

यह हमें यह भी बताता है कि दुःख और कष्ट एक आत्मिक यात्रा का हिस्सा हैं, जिससे हम अपनी आत्मा को सजग बना सकते हैं।

लेखक बुक “अद्भुत जीवन की और “

भागीरथ एच पुरोहित

धर्म जगत

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