सुमेरिया 2300-2150 : सुमेर सभ्यता को ही मेसोपोटामिया की सभ्यता कहा जाता है। मेसोपोटामिया का अर्थ होता है- दो नदियों के बीच की भूमि। दजला (टिगरिस) और फुरात (इयुफ़्रेट्स) नदियों के बीच के क्षेत्र को कहते हैं। इसी तरह सिन्धु और सरस्वती के बीच की भूमि पर ही आर्य रहते थे।
इसमें आधुनिक इराक, उत्तर-पूर्वी सीरिया, दक्षिण-पूर्वी तुर्की तथा ईरान के कुजेस्तान प्रांत के क्षेत्र शामिल हैं। इस क्षेत्र में ही सुमेर, अक्कदी, बेबिलोन तथा असीरिया की सभ्यताएं अस्तित्व में थीं। अक्कादियन साम्राज्य की राजधानी बेबिलोन थी अतः इसे बेबिलोनियन सभ्यता भी कहा जाता है। यहां के बाद की जातियां क्षेत्र तुर्क, कुर्द, यजीदी, आशूरी (असीरियाई), सबाईन, हित्ती, आदि सभी ययाति, भृगु, अत्रि वंश की मानी गई हैं।
सुमेरिया की सभ्यता और संस्कृति का विकास फारस की खाड़ी के उत्तर में दजला और फरात नदियों के कछारों में हुआ था। सुमेरियन सभ्यता के प्रमुख शहर ऊर, किश, निपुर, एरेक, एरिडि, लारसा, लगाश, निसीन, निनिवेह आदि थे। निपुर इस सभ्यता का सर्वप्रमुख नगर था जिसका काल लगभग 5262 ईपू बताया जाता है। इस नगर का प्रमुख देवता एनलिल समस्त देश में पूजनीय माना जाता था।
सुमेरिया निवासी भी आस्तिक और मूर्तिपूजक थे। वे भी मंदिरों का निर्माण कर उनमें अपने इष्ट देवताओं कि मूर्तियां स्थापित कर उसकी पूजा-अर्चना करते थे। हिन्दू (सनातन)संस्कृति पर आधारित यह सभ्यता ईसा पूर्व 2000 के पूर्व ही समाप्त हो गई।
सुमेरिया वालों का वर्ष हिन्दुओं (सनातनियों)जैसा ही 12 मासों का था। उनकी मास गणना भी चन्द्रमा की गति पर आधारित थी। इस कारण हर तीसरे वर्ष एक माह बढ़ता था, जो हिन्दुओं (सनातनियों)के अधिकमास जैसा ही था। हिन्दुओं (सनातनियों)के समान ही अष्टमी और पूर्णिमा का वे बड़े उत्साह से स्वागत करते थे।
सिमरिया वासियों का संबंध सिन्धु घाटी के लोगों से घनिष्ठ था, क्योंकि यहां कुछ ऐसी मुद्राएं पाई गई हैं, जो सिन्धु घाटी में पाई गई थीं। पश्चिम के इतिहासकार मानते हैं कि सिन्धु सभ्यता सुमेरियन सभ्यता का उपनिवेश स्थान था जबकि समेल लोग पूर्व को अपना उद्गम मानते थे। सुमेर के भारत के साथ व्यापारिक संबंध थे।
प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता लैंगडन के अनुसार मोहनजोदड़ो की लिपि और मुहरें, सुमेरी लिपि और मुहरों से एकदम मिलती हैं। सुमेर के प्राचीन शहर ऊर में भारत में बने चूने-मिट्टी के बर्तन पाए गए हैं।
मोहनजोदड़ो की सांड (नंदी) की मूर्ति सुमेर के पवित्र वृषभ से मिलती है और हड़प्पा में मिले सिंगारदान की बनावट ऊर में मिले सिंगारदान जैसी है। इन सबके आधार पर कहा जा सकता है कि सुमेर सभ्यता के लोग भी हिन्दू (सनातन)धर्म का पालन करते थे। ‘सुमेर’ शब्द भी हमें पौराणिक पर्वत सुमेरु की याद दिलाता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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