 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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                    15 जून बुधवार को सूर्य के मिथुन राशि में प्रवेश पर मिथुन संक्रांति मनाई जा रही है। भगवान सूर्य को समर्पित इस दिन दान व स्नान का विशेष महत्व है।
मिथुन संक्रांति के साथ ही आषाढ़ मास भी प्रारंभ हो गया। इस दिन से ही वर्षा ऋतु की शुरुआत हो जाती है। इस दिन को रज संक्रांति भी कहा जाता है।
इस दिन पुण्यकाल दोपहर 12 बजकर 18 मिनट से शुरू होगा जो कि शाम 07 बजकर 20 मिनट तक रहेगा। महापुण्य काल का समय दोपहर 12 बजकर 18 मिनट से 2 बजकर 38 मिनट तक रहेगा।
मिथुन संक्रांति के दिन उगते हुए सूरज को अर्घ्य देने और पूजा करने की परंपरा है। इस दिन तीर्थ और पवित्र नदियों में स्नान-दान और पितरों के लिए श्राद्ध भी किया जाता है।
सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तांबे के बर्तन का इस्तेमाल करना चाहिए। पानी में लाल चंदन और चावल मिलाकर सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए। इस दिन गेंहू, घी और अनाज आदि का दान करना शुभ माना गया है।
मिथुन संक्रांति के दिन सिलबट्टे की पूजा की परंपरा है। कई स्थानों पर ये त्योहार चार दिन पहले से शुरू हो जाता है। जिसमें माता धरती की विशेष पूजा की जाती है। माना जाता है कि कि प्रारंभ के तीन धरती मां के मासिक धर्म के होते हैं।
चौथा दिन धरती माता के स्नान का होता है। सिलबट्टे को धरती मां का रूप माना गया है। यही कारण है कि मिथुन संक्रांति के दिन सिलबट्टे को दूध व जल से स्नान कराया जाता है और इसकी पूजा की जाती है।
 
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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