Published By:धर्म पुराण डेस्क

सूर्य साधना, रोगों से मुक्ति का सबसे आसान रास्ता 

एक रहस्य ऊर्जा का उत्पादक है सूर्य। यह एक विशाल पिंड है।

जब सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक विशाल धधकता पिंड था, क्रमश: ठंडा 1 और जब एक जबरदस्त धमाके के साथ हुआ फटा तब अनेक छोटे-बड़े टुकड़े यहां से वहां तक बिखर गये जो सूर्य, चन्द्र, तारागणों, निहारिका और ग्रहों में बदल गये। इन सबमें सूर्य ही सबसे अधिक तेजस्वी है। 

सूर्य में भी अपार क्षमता पाई गई है। सूर्य का हमारी जिंदगी में बहुत महत्व है जिसे नकारा नहीं जा सकता। क्या सूर्य के अभाव में कोई भी कल्पना संभव है? विज्ञान भी सूर्य स्नान का महत्व स्वीकार करता है। रंगों द्वारा चिकित्सा तो सूर्य की किरणों पर ही आधारित है। 

प्राकृतिक ऋषि एवं मुनियों ने तो सूर्य की उपासना द्वारा चिकित्सा की एक अलग ही शाखा स्थापित कर दी थी। आज सूर्य उपासना द्वारा रोग निवारण सर्वथा संभव है। 

सूर्य शक्ति का यह अद्भुत रहस्य हमारे ऋषि- मुनियों को पहले से ही मालूम था। ऋषियों सूर्य को इतना महत्व दिया कि उन्होंने एक स्वतंत्र शास्त्र की ही रचना कर डाली उसमें अपने अनुभवों को लिपिबद्ध कर दिया। इन्हीं से इन भूतों की उत्पत्ति होती है। इन्हीं से यज्ञ मेध आत्मा अविर्भूत होते हैं। 

हे आदित्य ! हम तुम्हें प्रणाम करते हैं। तुम्हीं कर्म और कर्त्ता हो, तुम ही ब्रह्म और विष्णु हो, तुम ही रुद्र और सम्पूर्ण धन रूप हो और सूर्य से वायु, भूमि, जल, ज्योति, आकाश और दिशायें उत्पन्न होती हैं। इस ब्रह्माण्ड को आदित्य ही तपाते हैं। वही ब्रह्मा हैं और वहीं अन्तःकरण रूप में कार्य करते हैं। 

सूर्य ही ज्ञान-विज्ञान से युक्त एवं आनन्द रूप हैं। हे सूर्यदेव मेरी रक्षा करो। सूर्य से ही सब चराचर प्राणियों की उत्पत्ति है। सबके धारण करने वाले सूर्य हमारे नेत्रों को शक्ति प्रदान करने वाले बनें। वे हमें दीर्घायु दें। 

आज पश्चिम देशों में भी सूर्य की महत्ता को स्वीकार किया है। अनेक अनुसंधान किये गये हैं और किये जा रहे हैं। सूर्य में जितनी रोगनाशक शक्ति है, उतनी संसार की किसी भी अन्य वस्तु में नहीं है। कैंसर, नासूर और भगंदर सूर्य किरणों का ठीक प्रयोग करने से अच्छे हो गये हैं। 

सूर्य शक्ति से बढ़कर और कोई औषधि नहीं है। रक्त का पीलापन, पतलापन, लोहे की कमी, नसों की दुर्बलता, कमजोरी, थकान, मांसपेशियों की शिथिलता आदि रोगों में सूर्य की सहायता से इलाज करना लाजवाब है।

सूर्य की धूप का यदि ठीक ढंग से प्रयोग किया जाये तो स्वास्थ्य स्थिर रह सकता है। रंग रूप निखर सकता है। ॐ घृणि सूर्य आदित्य नमः सूर्य की ओर मुख करके पाठ करने से अनेक रोगों से छुटकारा मिलता है दरिद्रता दूर होती है और समस्त पाप नष्ट होते हैं। 

सूर्य के हस्त नक्षत्र पर रहते हुए इसका जाप करने वाला महामृत्यु को लांघ जाता है। प्रातः स्नान आदि से निवृत्त होकर सूर्य की ओर मुख करके सूर्य मंत्र का नियमित जाप करना चाहिये। 

जाप करते समय यह भावना करनी चाहिये कि सूर्य के प्रभाव मेरे सारे शरीर में प्रवेश करने से कीटाणुओं का नाश होता जा रहा है। रोग एवं निर्बलता दूर होकर स्वस्थता और शक्ति का संचार हो रहा है। यह भावना जितनी तीव्र होगी, उतना ही मंत्र का प्रभाव अधिक होगा। 

सूर्य मंत्र की साधना से प्रत्येक व्यक्ति सदैव निरोग रह सकता है। सूर्य मंत्र की विधि के अनुसार सूर्य गायत्री का जप किया जाये तो वह भी लाभ करता है। इससे निरोगता और दीर्घ जीवन की प्राप्ति होती है। मंत्र इस प्रकार है-

ॐ भास्कराय विद्महे, दिवाकराय धीमहि। तन्नो सूर्यः प्रचोदयात् । 

सूर्योपासना एवं ओंकार ..

ॐ परमात्मा का वास्तविक नाम है वृक्षों और पत्तों की सांय-सांय नदी और समुद्र की लहरों की ध्वनि होती है। यह ब्रह्म का प्रतीक माना गया है। ॐ में समस्त विश्व निहित है। ॐ को प्रणव कहते हैं क्योंकि इसकी स्तुति होती है। इसलिये इसे बीज कहते हैं। 

सूर्य को प्रणव मान कर इसकी साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ बताया गया है। सूर्य के बिना अत्र पक कर तैयार नहीं हो सकता और उसके बिना कोई भी प्राण नहीं पा सकता है अतएव प्राण और सूर्य दोनों रूपों में उपासना करनी चाहिये। इसी के द्वारा सूर्य के रहस्य को समझा जा सकता है। यही पवित्र अक्षर है। इस अक्षर को जानकर मनुष्य जिसकी इच्छा करे, वह उसे प्राप्त हो जाता है। 

सूर्य साधना की जप-विधि :

सूर्य साधना की विधि का वर्णन करते हुए कहा गया है स्वच्छ एवं दोष रहित भू-भाग में पद्मासन या स्वस्तिकासन, में से किसी एक योगासन को लगाकर उत्तराभिमुख बैठें और मानसिक रूप से जप करें। फिर एक अंगुली से नाक के एक छिद्र को बंद कर, खुले छिद्र से वायु को खींचें। 

फिर दोनों छिद्रों को बंद कर वायु को रोकें और एकाक्षर ब्रह्म और रूप तेजोमय और शब्द प्रणव का चिंतन करें और इसी का चिंतन करते हुए वायु को निकाल दें। इस प्रकार पूर्ण रूप दिव्य नेत्र का अनेक बार प्रयोग द्वारा चित्त का मल दूर कर देना चाहिये। 

प्रणव के उच्चारण से सभी सूक्ष्म इन्द्रियों पर प्रभाव पड़ता है और वह स्वस्थ रखने में सहायक होता है। अतएव हमें नियमित ओंकार और सूर्योपासना करनी चाहिये। इस प्रकार जब हम एक ओर स्वस्थ रहते हैं वहां दूसरी ओर आध्यात्मिक ज्ञान की भी प्राप्ति होती है।


 

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