भारत को 15 अगस्त 1947 को जो राजनीतिक आजादी मिली, उसकी नींव योद्धा सन्यासी स्वामी विवेकानंद ने ही डाल दी थी. उनके एक महामंत्र ने देश के युवाओं को आत्महीनता के बोध से निकालने का सबसे महत्वपूर्ण काम किया. हर महापुरुष अपने देश-काल और परिस्थितियों के अनुसार पुराने ग्रंथों और अवधारणाओं को नए सिरे से परिभाषित करता है. उन्होंने पाप और पुण्य को नई परिभाषा दी. उन्होंने भारत के युवाओं से कहा, कि “आत्मविश्वास ही धर्म है, आत्महीनता ही पाप”. उनके समय में भारत की लगातार परतंत्रता और अंग्रेजों द्वारा किये गये दुष्प्रचार से देश में लोगों, विशेषकर नौजवानों में इतनी आत्महीनता आ गयी,कि वे अपने अतीत और हर उस चीज़ से एक प्रकार से घृणा करने लगे, जिस पर गर्व किया जाना चाहिए. अंग्रेजों ने शिक्षा में ऎसी बातें शामिल कर के पढ़ाया गया, कि भारत पूरी तरह निराशा और आत्महीनता के ग़र्क में डूब गया. यह कितने आश्चर्य की बात है, कि जिस देश में श्रीमदभगवतगीता जैसा महाग्रंथ हो, वहाँ के लोग आत्महीन बन गये. इसमें लोगों का भी उतना दोष नहीं था. बहुत लम्बे समय तक अज्ञानी लोगों द्वारा इस ग्रंथ की व्याख्या लगातार जीवन को नकारने वाली की गयी. करीब एक हज़ार साल में स्वामी विवेकानंद ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने इस ग्रन्थ की ऎसी व्याख्या कि, कि जिससे लोगों में जीवन के प्रति सकारात्मक भाव और परतंत्रता की बेड़ियाँ तोड़ने का संकल्प जागा.
भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है, कि “अपयश का भागी होकर जीने की अपेक्षा मरना बेहतर है”. स्वामीजी ने बताया, कि गुलामी पाप है. गुलामी में जीने से मर जाना बेहतर है. स्वामी विवेकानंद ही नहीं, जितने भी महापुरुष हुए हैं, उनके जीवन को समझें तो, उन सभी ने “आत्मविश्वास” का ही महामंत्र दिया है. भगवान् श्रीराम तो आत्मविश्वास के साक्षात रूप थे. पिता के वचन का मान रखने के लिए वन को चल दिए. वहाँ अनेक प्रकार के कष्ट उठाये, लेकिन आत्मविश्वास नहीं खोया. ऋषि-मुनियों को सताने वाले राक्षसों को मारने का प्रण लिया. भुजा उठाकर शपथ ली, कि भूमि को राक्षसों से रहित कर दूंगा. ऐसा करके भी दिखाया. पत्नी सीता का अपहरण होने के बाद उन्होंने आत्मविश्वास नहीं खोया. वह किसीसे नहीं डरे. खर और और दूषण बल में रावण से किसी भी तरह कम नहीं थे. लेकिन उन्होंने अकेले ही उनकी सेना सहित उनका संहार कर दिया.
इसके बाद जब रावण से युद्ध ठन गया, तो ज़रा भी विचलित नहीं हुए. उन्होंने एक अच्छे योद्धा की तरह पहले रावण के आत्मविश्वास को डिगाया. वानर सेना के साथ समुद्र पर कर उन्होंने रावण को बुरी तरह हतोत्साहित कर दिया. रावण ने पहले उनका आत्मविश्वास कम करने के लिए चाल चली. उसने अपने महल की छत पर नाच-गाने का आयोजन कर यह बताने की कोशिश की, कि राम के आने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. भगवान् राम का आत्मविश्वास ज़रा भी नहीं डोला. उलटे उन्होंने एक तीर ऐसा चलाया,कि रावण का मुकुट और छत्र तथा दोदरी के कुंडल कटकर फर्श पर गिर गये. वह ऊपर से कुछ भी कहता रहां, लेकिन उसका आत्मविश्वास डोल गया.
दसवें सिख गुरु गोबिंदसिंहजी का आत्मविश्वास भी अद्भुत था. उन्होंने उस समय के सर्वशक्तिमान मुगलों से लोहा लेने के लिए अद्भुत आत्मविश्वास का परिचय दिया. उन्होंने पूरे देश में लोगों को आत्मविश्वास से भर दिया. उन्होंने कहा, कि “सवा लाख से एक लड़ाऊँ, तब गोविन्दसिंह नाम कहाऊँ”. यानी मेरा एक-एक सैनिक सवा लाख लोगों से लड़ेगा. महाराणा प्रताप का आत्मविश्वास क्या किसीसे कम था? अकबर ने उनके रिश्तेदार मानसिंह को आठ बार संदेश लेकर भेजा, कि वह उसके सामने समर्पण कर दें. मानसिंह ने प्रताप को अनेक तरह से समझाया. कहा, जब राजपूताने के लगभग सभी राजाओं ने समर्पण कर दिया है, तो तुम कैसे टिक पाओगे ? लेकिन प्रताप का आत्मविश्वास भी हिमालय जैसा था. वह नहीं झुके. शिवाजी ने औरंगज़ेब जैसे ताकतवर बादशाह का जिस तरह नाक में दम किया और “हिन्दू पादशाही” की स्थापना कर छत्रपति बने, वह इतिहास का अनूठा उदाहरण है.
चंद्रशेखर आज़ाद, सरदार भगतसिंह और उनके साथियों के पास आत्मविश्वास के सिवा क्या था? देश के बड़े नेता तक उनके साथ नहीं थे. लेकिन उनका आत्मविश्वास गज़ब का था. चंद्रशेखर ने हुंकार भरी कि, “मैं आज़ाद हूँ और आज़ाद ही रहूँगा”. भगतसिंह ने जब असेम्बली मब बम फैंका, तो उसके बाद वह वहाँ से भाग भी सकते थे. लेकिन उन्होंने गिरफ्तार होना सिर्फ इसलिए स्वीकार किया, ताकि देश के युवाओं में आत्मविश्वास जाग्रत हो. वह जानते थे, कि उन्हें फांसी होगी, लेकिन उन्होंने इसे हँसते हुए स्वीकार किया. यह युद्ध का बहुत पुराना नियम है, कि भी आक्रमणकारी सबसे पहले सामने वाले का आत्मविश्वास कम करने का प्रयास करता है. सेनाओं के साथ जो बाजे बजाने वाले चलते थे और आतिशबाजी की जाती थी, उनका उद्देश्य भी यही होता था. जितने ज़ोर से बाजे बजते थे, शत्रुपक्ष में उतनी ही खलबली मचती थी और उसका मनोबल गिरता था. मुस्लिम आक्रांताओं ने हिन्दुओं का आत्मविश्वास और मनोबल तोड़ने के लिए, उनके धर्मस्थलों को तोड़ा. अंग्रेजों ने चालाकी से शिक्षा में ऎसी व्यवस्था की, जससे भारतीयों का आत्मविश्वास टूटे.
आज भी भारत के दुश्मन जो आतंकवादी गतिविधियाँ कर रहे हैं, उनका मकसद हमारा आत्मविश्वास डिगाना ही है. कल कश्मीर में दो शिक्षकों और उसके कुछ दिन पहले कुछ कश्मीरी पंडितों और अन्य हिन्दुओं की हत्या की गयी, उसके पीछे भी यही मकसद है, कि लोगों का आत्मविश्वास टूटे और सरकार का मनोबल गिरे. आज भारत दुनिया में एक सैन्य और आर्थिक महाशक्ति बनकर उभर रहा है. यह इसके दुश्मनों की आँखों में खटक रहा है. वे हमारे आत्मविश्वास और मनोबल को तोड़ने कि हरचंद कोशिश कर रहे हैं. तरह-तरह की साजिशें कर रहे हैं. हमारे अपने ही कुछ लोगों को अपनी तरफ मिलाकर देश मेंजातीय या साम्प्रदायिक आधार पर विभाजन करने की चालें चल रहे हैं. लेकिन वे भूल रहे हैं, कि यह नया भारत है. इसका आत्मविश्वास और मनोबल फौलाद की तरह मजबूत है.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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