भारतीय संस्कृति और धार्मिक वांग्मय में शब्द को ब्रह्म कहा गया है. जिन लोगों को शब्द की शक्ति और उसके मोल का पता नहीं होता वे, चाहे जब चाहे जो कुछ बोलते रहते हैं. ज्ञानियों ने कहा है कि इतना और ऐसा बोलो कि लोग आपके बोलने का इन्तजार कहें; इतना और ऐसा मत बोलो कि लोग आपके चुप होने की प्रतीक्षा या इच्छा करें.
शब्दों के समूह से मंत्रों का निर्माण होता है. शब्द कभी कहीं विलय नहीं होता. आपका बोला हुआ शब्द हमेशा ब्रह्माण्ड में मौजूद रहता है. बोला हुआ शब्द कभी वापस नहीं लिया जा सकता. आपके शब्दों से किसीको तलवार से भी ज्यादा चोट लग सकती है और अच्छे शब्दों से किसीको बहुत सुख मिल सकता है. दुनिया में अधिकतर झगड़े-फसाद की जड़ में बोल ही होते हैं.
इस विषय में बहुत से दृष्टांत मिलते हैं. लेकिन स्वामी विवेकानंद का एक दृष्टांत बहुत प्रसिद्ध और विचारणीय है. स्वामीजी कहीं प्रवचन करते हुए कह रहे थे, कि भगवान के नाम का बहुत महत्त्व है. व्यक्ति को अधिक से अधिक समय ईश्वर का नाम लेना चाहिए. तभी एक कुतर्की श्रोता बोल उठा, कि शब्दों में क्या रखा है? उन्हें बार-बार रिपीट करने से क्या होगा?
स्वामीजी कुछ देर मौन रहे. इसके बाद उन्होंने उस व्यक्ति से कहा, कि तुम तो बहुत मूर्ख और नीच हो. वह व्यक्ति बहुत गुस्सा हो गया. उसने कहा कि मैंने तो आपके बारे में बहुत कुछ सुन रखा था कि आप बहुत बड़े संत और विद्वान हैं. आपकी वाणी में ईश्वर का स्वर है. लेकिन आप तो मुझे गाली दे रहे हैं. स्वामीजी ने कहा कि मेरे बुरे शब्दों के कारण आपको क्यों बुरा लगा? आखिर मैंने जो कहा वह शब्द ही तो हैं? शब्दों का क्या महत्व?
उस व्यक्ति को अपनी भूल का अहसास हुआ. तब स्वामी विवेकानंद ने उसे समझाया कि जब बुरे शब्दों का इतना गहरा असर होता है, तो अच्छे शब्दों और भगवान के नाम उच्चारण का कितना महत्त्व होता होगा, इसका अनुमान आप ख़ुद लगा लीजिये. इसीलिए संतों और शास्त्रों ने कहा है, कि व्यक्ति को तोल मोल कर बोलना चाहिए. कोशिश यह करनी चाहिए, कि मुँह से कोई बुरा शब्द नहीं निकले. लेकिन बुरा शब्द तो तभी निकलेगा जब आपके मन में बुराई होगी. इसलिए यदि आप चाहते हैं कि कोई बुरा शब्द आपके मुख से न निकले तो अपने मन को बुरे विचारों से मुक्त करने का प्रयास करते रहना चाहिए. इसके लिए अभ्यास करने की ज़रूरत होती है. इसमें सबसे कारगर उपाय यह है, कि आप अच्छे लोगों के साथ उठें-बैठें. आप जिन लोगों के साथ रहते हैं, उनके गुण-अवगुण आपमें अपने आप आ जाते हैं.
इसका दूसरा उपाय है कि आप अच्छा साहित्य पढ़ते रहिये. इससे आपके मन को अच्छा सोचने का प्रशिक्षण मिलता रहेगा. सबसे अच्छा उपाय तो यह है कि भगवान के नाम का अधिक से अधिक उच्चारण करते रहिये. मन ही मन इसे रटते रहिये. जब आपके मन में बुरे विचार ही नहीं होंगे तो वे शब्द बनकर आपके होंठों पर आएँगे ही नहीं.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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