सृष्टि रचना का रहस्य
"ना खाली तब हवा सुंन, नाहीं ला मकान।
ना कछु किया तब हुकुम, ए जो कह्या कुन सुभान।।" (मारफत सागर -1-9)
ना खाली ..
जब हम सिनेमा हॉल में फ़िल्म देखने जाते हैं तो पहले सिनेमा हॉल के प्रकाश को बंद कर अंधेरा किया जाता है फिर उसके पश्चात पर्दे पर फिल्म दिखाई जाती है।
उसी प्रकार अक्षर भगवान के चित्त रूपी पटल पर असत सृष्टि का खेल दिखाने के पूर्व चित्त में जो सत्य रूपी प्रकाश था उसे अक्षर भगवान के द्वारा हटा लिया जाता है।
प्रकाश को हटाने पर चित्त खाली हो जाता है, फिर उसमें असत सृष्टि की रचना हेतु माया तथा काल का मिलन कराया जाता है। जिससे खाली चित्त में अंधकार उत्पन्न हो जाता है। इस अंधकार को ही संतों ने भव सागर, मोह-सागर, मोह-जल अथवा नींद कहा है।
जब महाप्रलय के पश्चात चित्त खाली हो जाता है तथा सृष्टि की पुनः रचना होती है तब चित्त में फिर अंधकार उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार यह सृष्टि रचना का खेल अनवरत बनता एवं मिटता रहता है। अतः जब प्रथम बार सृष्टि की रचना हुई थी, उस समय चित्त खाली नहीं था।
तब हवा सुंन ..
यहां इस पद में निराकार को हवा तथा नींद को सुंन कहा गया है। रचना के पूर्व जब चित्त खाली नहीं था तब निराकार रूपी माया तथा काल नहीं थे, जो अंधकार को उत्पन्न करने के लिए उत्तरदाई होते हैं तथा सुंन रूपी नींद भी नहीं थी।
नाहीं ला मकान ..
यहां ला (क्षर) का अर्थ है - नश्वर तथा मकान का अर्थ है - सृष्टि अर्थात् मिटने वाले स्वप्न की सृष्टि का विस्तार नहीं हुआ था।
ना कछु किया तब हुकुम ..
अक्षरातीत पूर्णब्रह्म परमात्मा एवं उनके परमधाम में इच्छा (माया) नहीं है, क्योंकि वह माया रहित है। इसलिए उन्होंने अपने ही सत अंग अक्षर ब्रह्म को अपनी ब्रह्मात्माओं को दुख का नश्वर संसार दिखाने हेतु इस असत्य के संसार को रचने का आदेश दिया। अतः जब चित्त खाली नहीं था तब अक्षरातीत पूर्णब्रह्म परमात्मा ने अक्षर पुरुष को असत सृष्टि की रचना हेतु हुकम (आदेश) नहीं दिया था।
ए जो कह्या कुन सुभान ..
'कुन' शब्द का अर्थ होता है 'हो जा'। सभी संत एवं शास्त्र कहते हैं कि इस सृष्टि की रचना 'शब्द ब्रह्म' से हुई है। कुरान के अंदर इसी 'शब्द ब्रह्म' को अरबी भाषा में 'कुन' कहाँ है। शास्त्रों में इसी 'शब्द ब्रह्म' को 'एक हूं अधिक हो जाऊं' कहा है। अतः जब चित्त खाली नहीं था तब इस 'शब्द ब्रह्म' की उत्पत्ति नहीं हुई थी।
बजरंग लाल शर्मा
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