चिड़िया दूर-दूर तक जाती है, एक-एक तिनका खोजकर घोंसला बनाती है। उसका पल-पल परिश्रम, उसकी लगन और उसका मनोयोग ही एकाकार होकर घोंसले के रूप में प्रस्तुत होते हैं, जिसे देखकर हर किसी को प्रेरणा मिलती है, प्रसन्नता होती है।
प्रेरणाएँ और प्रसन्नताएँ सृष्टि की हर रचना में विद्यमान हैं। स्पष्ट है कि सृष्टि ने बड़ा भारी परिश्रम किया होगा, अपनी सारी शक्ति लगाई होगी, तब इस भव्य जगत का निर्माण संभव हुआ।
नन्हे से पक्षी बया के घोंसले को नष्ट कर देने वाला बिलाव हर किसी की निंदा का पात्र बनता है। तब फिर परमपिता परमात्मा द्वारा रचित इस संसार को बिगाड़ना, उसे नष्ट करना कोई अच्छी बात है?
हर वस्तु हमारी भलाई के लिए बनी है, हर जीव हमारे कल्याण के लिए बना है, हर मनुष्य हमारी आकांक्षाओं की पूर्ति में सहयोग देने वाला बनाया गया है, तब फिर किसी को सताना, कष्ट पहुँचना और ईश्वरीय कृति को विनष्ट करना क्या शोभा की बात है।
हम बना नहीं सकते तो बिगाड़ने का ही हमें क्या अधिकार है? आइए आज से अभी से परमात्मा के बनाए हुए इस संसार को बनाने की बात सोचें, बिगाड़ने की तो कभी कल्पना भी नहीं करनी चाहिए।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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