क्या आप जो खा रहे हैं उसे खाने का सही उपयुक्त समय है। खानपान का समय से बहुत गहरा ताल्लुक है।
आयुर्वेद में हर तरह के आहार और द्रव्यों को खाने का समय निर्धारित किया गया है। अच्छा पाचन और पोषण चाहते हैं तो आयुर्वेद में खानपान के जो नियम बताए गए हैं उनका ध्यान रखें।
आयुर्वेदाचार्य ओपी वर्मा के अनुसार ..
आहार एवं द्रव्यों का पाचन समय-मात्राशी स्यात्! आहारमात्रा पुनराग्नि बलापेक्षिणी। यावद्वयस्नाशनमशितमनुपहत्य प्रकृति यथाकालं जरां गच्छति तावदास्य मात्राप्रमाणं वेदितव्यं भवति।
अर्थात उपर्युक्त परिणाम से ही भोजन करना चाहिए। आहार की मात्रा जठराग्नि के बल की अपेक्षा रखती है। अर्थात यदि जठराग्नि निर्बल है, तो मात्रा अपेक्षाकृत कम होगी। यदि बलवान है तो मात्रा अधिक होगी। जितने परिणाम में व्यक्ति (भोक्ता) का खाया हुआ भोजन प्रकृति का उपघात न करके यथा समय जीर्ण हो जाता है, पच जाता है, उतना ही उस भोक्ता के लिए इस आहार की उचित मात्रा का प्रमाण जानना चाहिए।
यथाकाल पर इसलिए लिखा गया है कि भिन्न-भिन्न आहार द्रव्यों के पचने का समय अलग-अलग होता है। किन्हीं द्रव्यों का परिणाम (पाचन) आधे घंटे में होता है और किन्हीं का तीन चार घंटे में तथा दूसरे अन्य द्रव्यों का इससे भी अधिक। गुरु (भारी) द्रव्यों का पाक (पाचन) देर से होता है और लघु द्रव्यों का पाचन शीघ्र होता है।
कर्तव्यों को समझें-
औषधियों की खोज में राजवैद्य चरक अपने शिष्य के साथ जंगल में घूम रहे थे। तभी वैद्यराज की नजर खेत में लगे सुन्दर फूल की ओर गई। यह कोई नया फूल था। उनका मन उसे पाने के लिए उत्सुक हो उठा, किन्तु उनके पैर आगे नहीं बढ़ रहे थे। शिष्य ने पूछा- गुरुदेव वह फूल ले आऊं। फूल तो चाहिए लेकिन खेत के मालिक की अनुमति के बिना फूल तोड़ना चोरी है" वैद्यराज ने कहा।
शिष्य बोला- गुरुदेव आप तो राजाज्ञा है कि आप कहीं से भी कोई भी वस्तु इच्छानुसार बिना किसी की अनुमति ले सकते हैं। इस पर गुरुदेव बोले- राजाज्ञा और नैतिकता में अंतर है शिष्य वो क्यों ? शिष्य ने पूछा, चरक बोले यदि अपने आश्रितों की संपत्ति हम स्वच्छता से व्यवहार में लाएंगे तो लोगों में आदर्श कैसे जागृत करेंगे।
आइए हम भी दुआ करें कि हमें भी अच्छी संगति मिले और अधिक से अधिक अपने कर्तव्य पर ध्यान दें।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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