भाग्य का अपना एक स्थान है प्रारब्ध और कर्मफल वर्तमान में भी प्रभाव डालते हैं। लेकिन हम अपने कर्मों की ताकत से प्रारब्ध के भारी अवरोधकों को भी हटा सकते हैं। लाइफ में हाथ पर हाथ रखे बैठे होने से कुछ नहीं होगा जीवन में आगे बढ़ने के लिए कुछ करना ही होगा।
॥ जीवन की बागडोर आपके हाथ में ॥
भाग्य ने जहां छोड़ दिया, वहीं पड़ गए और कहने लगे कि हम क्या करें, किस्मत साथ नहीं देती, सभी हमारे खिलाफ है, प्रतिद्वंद्विता पर तुले हैं, जमाना बड़ा बुरा आ गया है।
यह मानव की अज्ञानता के द्योतक पुरुषार्थहीन विचार हैं, जिन्होंने अनेक जीवन बिगाड़े हैं। मनुष्य भाग्य के हाथ की कठपुतली है, खिलौना है, वह मिट्टी है, जिसे समय-समय यों ही मसल डाला जा सकता है, ये भाव अज्ञान, मोह एवं कायरता के प्रतीक हैं।
अपने अंतःकरण में जीवन के बीज बोओ तथा साहस, पुरुषार्थ, सत्संकल्पों के पौधों को जल से सींचकर फलित-पुष्पित करो। साथ ही अकर्मण्यता की घास-फूस को छांट-कांट कर उखाड़ फेंको। उमंग उल्लास की वायु की हिलोरें उड़ाओ।
आप अपने जीवन के भाग्य, परिस्थितियों, अवसरों के स्वयं निर्माता है। स्वयं जीवन को उन्नत या अवनत कर सकते हैं। जब आप सुख-संतोष और सुख आप के मुखमंडल पर छलक उठता है। जब आप दुःखी, क्लांत रहते हैं, तो जीवनवृत्त मुरझा जाता है और शक्ति का ह्रास हो जाता है।
शक्ति की, प्रेम की, बल और पौरुष की बात सोचिए, संसार के श्रेष्ठ वीर पुरुषों की तरह स्वयं परिस्थितियों का निर्माण कीजिए। अपनी दरिद्रता, न्यूनता, कमजोरी को दूर करने की सामर्थ्य आप में है। बस केवल आंतरिक शक्ति प्राप्त कीजिए|
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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