फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर होलिका दहन तक के समय को होलाष्टक माना जाता है। इस बार 27 फरवरी से होलाष्टक शुरू हो कर 8 मार्च तक मान्य रहेगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन दिनों में कोई भी शुभ मांगलिक कार्य करना निषेध माना गया है।
होलाष्टक की अवधि में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य यथा विवाह, मुंडन, उपनयन संस्कार, गृह प्रवेश आदि पर प्रतिबंध लग जाता है। होलाष्टक की अवधि में पूजा-पाठ का विशेष महत्व है, इसलिए इस अवधि में अधिक से अधिक भगवान का नाम स्मरण किया जाता है।
इस अवधि में हवन आदि का आयोजन भी शुभ माना जाता है। रोज सुबह सूर्य देव को अर्घ्य प्रदान करें और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। मान्यता है कि ऐसा करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। होलाष्टक के दौरान दान का विशेष महत्व है इसलिए इस दौरान विप्रजन या किसी जरूरतमंद को अन्न, धन या वस्त्र का दान करें।
एक पौराणिक कथा के अनुसार होलाष्टक से दुल्हेंडी तक के आठ दिन तक प्रहलाद के पिता राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को भगवान विष्णु से मोहभंग करने के लिए अनेक प्रकार की यातनायें दीं थीं। प्रत्येक बार भगवान अपने भगक्त प्रहलाद की रक्षा कर उसे बचा लेते थे। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को खत्म करने के लिए अपनी बहन होलिका को अग्नि स्नान करने को कहा। भगवान की ऐसी कृपा हुई कि होलिका तो जल गई मगर प्रहलाद का बालबांका भी नहीं हुआ।
होलाष्टक पूजन-
होलाष्टक के दिन से होलिका पूजन करने के लिए होलिका वाले स्थान को साफ कर सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी घास और होली का डंडा जमीन में दबा देते हैं और उसका पूजन किया जाता है। इस दिन आम की मंजरी तथा चंदन मिलाकर खाने का बड़ा महत्व है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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