ओल्ड एज में युद्ध-
शरीर के सभी अंगों के लिए और ज्यादा सचेत रहना पड़ता है। लेकिन बुढ़ापे में दांतों और मुंह की देखभाल और भी जरूरी हो जाती है। प्राचीन काल में दांतों की रक्षा के लिए अनेक प्रयोग किए जाते थे। दातुन की जाती थी नीम की पत्ती का सेवन किया जाता था और मुंह को साफ रखने के लिए कई तरह की औषधियों का सेवन भी किया जाता था।
आज भी बबूल और नीम की दातुन उपलब्ध होती है। आयुर्वेद में नीम और बबूल की दातुन के महत्व को देखते हुए अब पैकेट में नीम और बबूल की दातुन मिल जाती है। ब्रश करना भी जरूरी है लेकिन ब्रश बहुत ज्यादा समय तक नहीं करना चाहिए और बिल्कुल हल्के ढंग से करना चाहिए क्योंकि इससे दांतों के इनेमल घिसते हैं साथ ही मसूड़ों को भी नुकसान पहुंचता है तो आज हम आपको बताते हैं दातुन और ब्रश कैसे करें इसका आयुर्वेद में सही तरीका क्या बताया गया है।
दांत की रक्षा के उपाय-
1. प्रतिदिन 12 अंगुल लंबी हाथ की छोटी अंगुली के बराबर मोटी, गांठ रहित साफ दातुन करना चाहिए।
2. नीम, बबूल, महुआ या करंज की दातुन करना चाहिए। अर्जुन, मालती, कनेर अथवा मदार की दातुन भी की जा सकती है
3. जिस दिन दातुन का अभाव हो, उस दिन ब्रश का प्रयोग किया जा सकता है, पर मंजन खूब बारीक होना चाहिए तथा मसूड़ों को बिना बाधा पहुंचाए प्रयोग करना चाहिए।
4. हरड़, बहेड़ा, आंवला, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, वायबिडंग, नागकेसर, चित्रक तथा शहद मिलाकर लगाना, तेल और नमक मिलाकर लगाना, मालकांगनी के बीज का चूर्ण मलना, फिटकरी, माजूफल, सेंधा नमक, बादाम के जले छिलके मिलाकर लगाना, रास्ना, धनिया, कपूर कचरी, कूठ, बच, कपूर, गोरोचन, कंकोल, अकरकरा आदि मिलाकर मंजन बना सकते हैं।
5. बाजार में कई प्रकार के दंत-मंजन मिलते हैं, उनका प्रयोग ब्रश या अंगुली पर लगाकर किया जा सकता है।
6. ब्रश या दातुन प्रातः सायं दो बार की जाना चाहिए।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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