 Published By:दिनेश मालवीय
 Published By:दिनेश मालवीय
					 
					
                    
पाप और पुण्य की परिभाषा लोग अपनी-अपनी सुविधा के हिसाब से करते रहते हैं. यह सामान्य प्रवृत्ति है, कि पाप करने वाले लोग अपने पाप कर्म को सही ठहराने के लिए बहुत प्रयास करते हैं. कई लोग तो यहाँ तक कहते हैं, कि पाप जैसी कोई चीज होती ही नहीं है. किसी परिस्थति या सन्दर्भ विशेष में कोई चीज पाप होती है और किसी अन्य परिस्थति या सन्दर्भ में पुण्य. यह बात भी अपनी जगह काफी हद तक सही है. लेकिन भारतीय शास्त्रों में दस कर्मों को पाप की श्रेणी में रखा गया है, जिन्हें किसी भी परिस्थिति या सन्दर्भ में पूरी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता. ये व्यक्ति के पतन का कारण बनते ही हैं. ये पाप इस प्रकार हैं-
1. बिना मूल्य दिए हुए दूसरे की वस्तु लेना
2. शास्त्रों में वर्जित हिंसा करना
3. परस्त्री गमन
4. कटु बोलना
5. असत्य बोलना
6. परोक्ष में किसी के दोष कहना यानी निन्दा-चुगली करना
7. बिना कारण बकवास करना
8. दूसरों के पैसे को अन्याय से लेने का विचार करना
9. मन से दूसरों का अनिष्ट चिन्तन करना
10. नास्तिक बुद्धि रखना
पहले तीन पाप शरीर से सम्बंधित हैं. इसके बाद के चार पाप वाचिक और शेष तीन मानसिक पाप हैं.
इसके अलावा कुछ और बातें भी कही गयी हैं, जिनकी जीवन और स्वस्थ समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका है.
शिवपुराण में कहा गया है कि-
अपूज्या यत्र पूज्यन्ते पूजनीयो न पूज्यते
त्रीणि तत्र भविष्यन्ति दारिद्रयं मरणं भयम.
अर्थात- जहाँ अपूज्य व्यक्ति पूजे जाते हैं और पूजनीय व्यक्तियों का निरादर होता है, वहाँ दरिद्रता, मरण और भय- ये तीन उपद्रव आगे चलकर अवश्य होते हैं.
आज हमारे समाज में व्यक्ति की आर्थिक स्थति, सामाजिक हैसियत और रसूख को देखकर सम्मान दिया जाता है. हालाकि ऐसा नहीं है कि पहले स्थिति एकदम अलग थी. ऐसी अनेक सूक्तियां मिलती हैं, जिनके अनुसार धन ही मनुष्य को समाज में मान- प्रतिष्ठा दिलवाता हैं.- धनवान बलवान्ल्लोके सर्व: सर्वत्र सर्वदा. अर्थात सारे धनवान लोग संसार में सब जगा और सदा बलवान होते हैं. धनवान व्यक्ति के अवगुण भी गुण बन जाते हैं और गरीब के गुण भी अवगुण माने जाते हैं.
लेकिन ऐसा नहीं है कि गुणवान व्यक्ति को सम्मान पाने के लिए धनवान होना अनिवार्य है. अनेक ऐसे गरीब और साधनहीन व्यक्ति भी हुए हैं और आज भी हैं, जिन्हें सिर्फ उनके गुणों के कारण सम्मान मिला है. जिस समाज में सच्चे गुणवान लोगों का सम्मान नहीं होता, उस समाज को पतन की ओर जाने से कोई नहीं रोक सकता.
शास्त्रों में सर्प, अग्नि, राजा, दुर्जन और शेर के साथ छेड़छाड़ न करने यानी आज की भाषा में पंगा न लेने का सुझाव दिया गया है. ये बहुत खतरनाक होते हैं. बिगाड़ जाने पार यमराज साबित होते हैं. चाणक्य नीति में कहा गया है कि सोये हुए सांप, शेर, राजा, दुर्जन और बच्चे को नहीं जगाना चाहिए. बच्चे को इसलिए शामिल किया गया है कि कच्ची नींद में उसे उठाने पर वह रो-रो कर आसमान सिर पर उठा लेगा. उसे समझाना बहुत कठिन हो जाएगा. साथ ही समाधि में लीन तपस्वी, हारते हुए जुआरी, झुंझलाए हुए शस्त्रधारी, पागल, वैश्य या निर्लज्ज स्त्री और शिथिल पड़ी अग्नि को नहीं छेड़ना चाहिए.
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024 
                                यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024 
                                लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024 
                                संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024 
                                आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024 
                                योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024 
                                भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024 
                                कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                