Published By:धर्म पुराण डेस्क

टेंशन और डिप्रेशन

चिंता और अवसाद एक नहीं होते ! चिंता कोई बीमारी नहीं है। यह एक ऐसी भावना है जिसमें आप मानसिक और भावनात्मक रूप से उत्पीड़ित महसूस करते हैं, यह किसी भी स्थिति या कारण से हो सकता है। 

किसी से कोई उम्मीद पूरी न होने या खुद से दूर हो जाने के कारण भी लोग चिंतित हो जाते हैं। स्ट्रेस, टेंशन, एंग्जायटी शब्द आज की रोजमर्रा की जिंदगी में आम हो गए हैं, क्योंकि आजकल हर कोई इन्हीं समस्याओं से घिरा नजर आता है। 

डिप्रेशन एक प्रकार का तनाव है जिससे व्यक्ति लंबे समय तक पीड़ित रहता है। इसमें व्यक्ति बहुत उदास और उदास महसूस करता है। जिस घर में स्त्री या पुरुष डिप्रेशन के रोग से ग्रसित होते हैं, उस घर में कभी भी शांति नहीं रहती है। एक व्यक्ति के पीछे पूरा परिवार सहता है। चिंता और अवसाद दोनों ही मानसिक विकार हैं और इनके लगभग एक जैसे लक्षण होते हैं। हालांकि, दोनों एक दूसरे से बहुत अलग है।

चिंता या तनाव एड्रेनालाईन के स्तर को बढ़ाता है, लेकिन अवसाद मस्तिष्क की थकान को बढ़ाता है। चिंता कम होने पर भी यह फायदेमंद साबित हो सकता है, लेकिन डिप्रेशन नुकसानदायक होता है। चिंता के कारण स्पष्ट हैं, लेकिन अवसाद का कोई भी कारण हो सकता है। हर समस्या सुलझेगी अगर व्यक्ति उलझना छोड़ दे ; हर राह कटेगी यदि वह भटकना छोड़ दे. 

मानव मन की रुग्णता ने सामाजिक स्वस्थता पर अनेक प्रश्न-चिह्न उभारे हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने क्षेत्र में नम्बर-वन बनना चाहता है। इस दौड़ ने टेंशन और डिप्रेशन की अनेक नई व्याधियां उत्पन्न की है। निश्चित रूप से हर समस्या सुलझेगी अगर व्यक्ति उलझना छोड़ दे ; हर राह कटेगी यदि वह भटकना छोड़ दे।

महावीर की पञ्च- सूत्री योजना के अंतर्गत युग-युग की समस्याओं का उचित समाधान खोजा जा सकता है। ये सूत्र हैं -- ऋजुता, असंगता, सहिष्णुता, जागरूकता और मित्रता। 

ऋजुता अर्थात सरलता ; आज समाज में सरलता का अवमूल्यन हो रहा है। कुटिलता मूल्यवान बन रही है। आज का जमाना है मिलावट का, दिखावट का, सजावट का और बनावट का। इसलिए हर जगह अकुलाहट और उथल-पुथल है। 

आज मनुष्य जिस कृत्रिमता के साथ जी रहा है। उसकी असलियत का पता लगाना भी मुश्किल हो जाता है। अत: अपेक्षा है ऋजुता अर्थात सहज और सरल वृत्ति के विकास की। 

जितना छल-छद्म ; उतना ही भय एवं उतनी ही सिकुडन। जितना स्पष्ट चिन्तन, सहज व्यवहार होगा उतना ही व्यक्ति अभय होगा और उतना ही उन्मुक्त होगा। भय हमेशा अंधेरे में होता है, प्रकाश में नहीं। इस प्रकार ऋजुता या सरलता जीवन का प्रथम सोपान है। 

असंगता सुख का स्रोत है। दुःख का मूल है- संग एवं आसक्ति। आसक्ति का अर्थ है इन्द्रिय पर मन का बाह्य पदार्थों में केन्द्रित हो जाना। पदार्थ पर आधारित चेतना आनन्द का अनुभव नहीं करा सकती। अनासक्त व्यक्ति असंगता के साथ पदार्थ का उपयोग करता है, पर वह भोग नहीं करता-- चाह गयी चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह। जिसको कछु न चाहिए, सो ही बादशाह।

सहिष्णुता का अर्थ है-- सहनशीलता। यदि सुखी रहना है तो सहन करना सीखना होगा। असंतुलित चित कभी सुखी और संतुष्ट नहीं रह पाता। प्रतिकूल परिस्थितियों को सहना उसके लिए बहुत कठिन होता है। आशा बहुत बड़ा आश्रय है, वह जटिल-से-जटिल आपदाओं को सहना जान जाता है; एक दिन तो हर मुसीबत से छुटकारा मिल ही जाएगा। परिवर्तन जगत का शाश्वत नियम है ही। 

जागरूकता का अर्थ है - सजगता। जागृति जीवन है, सुषुप्ति मृत्यु है. प्रतिक्षण सजग रहने वाला नहीं अतीत की स्मृतियों का भार डोता है, न भविष्य की कल्पनाओं के जाल में उलझता है। वह वर्तमान में जीता है। यही सच्चे अर्थों में जागरूकता है। मित्रता अर्थात सब के प्रति मैत्री-भाव और द्वेष-मुक्त होना ही है। 

उपनिषद के अनुसार व्यक्ति सब ही को मित्रता भाव से देखे और उसे भी सब उसी प्रकार मित्रता-भाव से देखें। मित्रता से विष अमृत में बदल जायेगा और खार -खार में बदल जायेगा। ये पञ्च - सूत्र जीवन में टेंशन और डिप्रेशन को मुक्त करने में सहायक सिद्ध होते हैं। इस पथ पर चल कर जीवन सहज और सरल हो जाता है। पालन और अभ्यास यह तो स्वयं ही करना होगा। इसे स्व - अनुभूत बनाना होगा.

VIDHYALANKAR


 

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